जरूरी है

खतों के रास्ते ही हो

पर पैगाम जरूरी है

वतन के वास्ते ही है

ये ज्ञान जरूरी है

सरहदों पर हैं खड़े कब से

पहचान जरूरी है

एक बंदूक से न हो कुछ भी

सब सामान जरूरी है

हैं खड़े उस ओर नापाक, सब

उनको ये ऐलान जरूरी है

मरोगे डर डर के टुकड़ों में

अगर जान जरूरी है

कहते हो कि तुम सब हो

तो फिर आतंक के साये में

क्या छिपना जरूरी है

देख लेंगे तुम्हारी हदों को हम

तुम्हें ये सुनना जरूरी है

बन्द कर दो ये भ्रम अपना

अगर आसमान जरूरी है

तुम्हारे उतरेंगे कपड़े भी

ये सरे आम जरूरी है

पड़े हैं जो घर के कोने में

वो आवाज ये करते हैं

छेड़ो ना गुनाहगारों को

हर वो भाई जरूरी हैं

कह दो उनको अब तुम

साथ हो गर तुम गुनाहों के

ना बख्शेंगे तुम्हें भी हम

ये ऐलान जरूरी है

ना देखो दर्द इनका अब

ये बेईमान हमेशा हैं

बिठाओ पलकों पर उनको तुम

क्योंकि ये जवान जरूरी हैं

क्योंकि ये जवान जरूरी हैं

Published by Devendra Gamthiyal

वर्णों से बनकर उपन्यास की ओर

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