तीखे नैन हिरनी जैसे
इधर उधर कुछ टोह रहे हैं,
कारे कारे चमक रहे जो
मोती को भी छोड़ रहे हैं।
कारे कारे केश सलोने
धीमे धीमे ऐसे नभ पर
कोमल नृतकी के जैसे
धीरे धीरे डोल रहे हैं।
कोमल कोमल गाल रंगीले
कमल पुष्प से जल के मध्य में
वरुण देव भी ऐसे उनसे
हो प्रफुल्लित खेल रहे हैं।
लाल रंग से रंगे अधर भी
सबके मन को मोह रहे हैं।
पतली सी है कोमल कमरी
धीरे धीरे डोल रही है
चलते चलते हिलती पल भर
सबके हृदय को तोड़ रही है।
पुष्प सी नाजुक दुइ कलाई
खन खन करती चकमक चूड़ी से
सबके मन को भीतर तक
जोरों से झकझोर रही है।
छम छम करती तेरी पजबियाँ
तानपुरे के इक इक रेशम को
हौले हौले मद्धम मद्धम
एक एक करके तोड़ रही है।
@Devendra “nishpran” Gamthiyal and special thanks to mr. Divyanshu tripathi
बहुत ही अद्भुत कविता लिखी है आपने। सुंदरता का ऐसा वर्णन की दिल को छू जाए।
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बहुत धन्यवाद त्रिपाठी जी
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Bahut sundar.. devendra ji .. aisi hi kavitaon ki demand badhti ja rahi hai aap se..
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