स्थान दिल्ली

शाम के सात बजे–-

दिल्ली की अँधेरी गलियों में कोई बेतहाशा दौड़ रहा था क्योंकि मौत उसके पीछे पड़ी थी– तिरंगा के रूप में!

तिरंगा के हाथ में अजीब सा धारदार हथियार था जो अंधेरे में पूरी तरह नहीं दिख रहा था।

तिरंगा :- रुक जा बे…रुक! अबे किधर भागता है साले चोरकट रुक जा!

तिरंगा पूरी जी-जान लगा कर दौड़ रहा था किंतु उस व्यक्ति को छू पाने में भी उसके हाथ पाँव फूल गए थे।

तिरंगा :- 💭 बहूहू। घुटनों में घटिया मेरा मतलब गठिया हो गया है…बहुत तेज़ दर्द हो रहा है भैंsssss। कैसे दौडूं?💭

तभी उसे एक आईडिया आया।

तिरंगा :- अरे भाईसाब आगे चालान हो रहा है! तनिक रफ्तार कम करो……… नहीं तो तुम्हारा काट दिया जाएगा।

वह व्यक्ति इतनी तेजी से रुका कि कुछ दूरी तक ब्रेक लगाती कार की तरह फिसल गया।

तिरंगा ने फौरन उसे धर दबोचा।

तिरंगा :- साले! चालान गाड़ी का हो रहा है…इंसानों का नहीं।

व्यक्ति चौंक गया और फिर उसे अपनी गलती पर बहुत तेज़ गुस्सा आया।

तिरंगा(गुर्राते हुए) :- साले! मेरे दो रुपए दिए बिना भाग रहा था? नाक में पलटा घुसा दूँगा।

तिरंगा ने हाथ में थमा हथियार लहराते हुए कहा। ओह्ह! वह तो पलटा था…कोई हथियार नहीं!

व्यक्ति :- अरे भाई दो रुपए छुट्टे नहीं हैं…..होते तो मैं दे नहीं देता! बहूहूहू।

तिरंगा :- अबे तो जितने हैं सारे मुझे दे दे। कल आके छुट्टे ले जइयो। हीहीही।

व्यक्ति :-(रोते हुए) अरे साहब एक रुपया भी नहीं है। केवल वही दस रुपए थे जिससे मैंने आपकी चाट-टिकिया खाई….लेकिन मुझे क्या पता था कि आप बाकियों से दो रुपए ज्यादा लेते हो।

तिरंगा :- साले सुपरहीरो के हाथ से बनी चाट-टिकिया खाएगा तो कुछ तो एक्सट्रा चार्ज लगेंगे न!

व्यक्ति :- काहे का चाट-टिकिया! ऐसा लग रहा था जैसे गटर में उगाए गए आलू से बनाया हो। मुँह का स्वाद ही बिगड़ गया…अब चार दिन तक यह स्वाद मुँह में ही रहेगा। गुर्र।

तिरंगा :- क्या कहा?

व्यक्ति :- क…..क कुछ भी तो नहीं। वाकई बहुते मस्त थी आपकी चाट। मैं तो चाट चाट के चट कर गया हिहि।

तिरंगा :- अगर तेरे पास एक भी रुपए नहीं थे तो तू भाग क्यों रहा था?

व्यक्ति :- (धीरे से बुदबुदाकर) अभी पता चल जाएगा।

तिरंगा :- अब क्या बड़बड़ाए बे ससुर के नाती?

व्यक्ति :- क….कुछ नहीं। मैं दरअसल डर गया था…..आप इतनी बुरी तरह हड़का कर पैसे माँग रहे थे इसलिए।

तिरंगा :- मैं कुछ नहीं जानता…..दो रुपए दे वर्ना जाने नहीं दूँगा!

व्यक्ति :- भैंsssss अरे साहब कुछ तो दया करो। मेरी एक विधवा बीवी है…उसका क्या होगा? बहूहू।

तिरंगा :- अबे तू ज़िंदा है तो फिर तेरी बीवी विधवा कैसे हो गई?

व्यक्ति :- साहब मौत का कोई भरोसा नहीं कब आ जाए। इसलिए मैं हमेशा खुद को मरा हुआ ही मानता हूँ…..तो हुई न मेरी बीवी विधवा।

तिरंगा :- हाँ बात तो सही कह रिया है तू! मैं भी सोच रहा मरे हुए को क्या मारूँ। चल एक काम कर। अपनी पैंट उतार!

व्यक्ति डर के मारे काँपने लगा।

व्यक्ति :- अरे साहब ये क्या कर रहे हो?

तिरंगा (चमाट लगाते हुए) :- गुर्र! अबे शक्ल से दीपक कलाल दिखता हूँ क्या तेरे को साले ज्यादे इधर-उधर न जा……मैं तेरी पैंट मांग रहा हूँ कुछ और नहीं! गुर्र! चुपचाप पैंट दे दे।

व्यक्ति पैंट उतारने लगा। गली में पूरी तरह अंधेरा था। लेकिन ‘वह’ उस अंधेरे में भी देख सकता था। ‘वह’ जिसे लोग कहते हैं दिल्ली की आंख…..

परमाणु :- ….. साला इसकी माँ की आँख। आज मेरा टास्क नहीं पूरा हो पाएगा लगता है। सुबह से पाँच ही ऑर्डर मिले हैं। लगता है ये जोमैटो से भी निकलूंगा मैं। गुर्र।

अरे बाप रे! परमाणु डिलीवरी बॉय? कान विश्वास नहीं करते अगर आँखें परमाणु की पीठ पर जोमैटो का बैग न टँगा देखतीं तो।

परमाणु उसी गली के ऊपर से गुज़रा और तभी उसकी निगाह नीचे पड़ गई– वह ठिठक कर रुक गया।

परमाणु :- अबे साला। ई का हो रहा है इंहा। (माथे पर हाथ रगड़ते हुए) अबे ये तो तिरँगा है। साला चाट का ठेला छोड़कर यहाँ गलत हरकत कर रहा है।

परमाणु धीरे-धीरे नीचे उतरने लगा।

नीचे तिरंगा उस व्यक्ति की पैंट उतरवाने में लगा था और तभी–

परमाणु :- अबे तिरंगे ये क्या कर रहे हो बे?

तिरंगा झट से पलटा और सामने खड़े परमाणु को देखकर चौंक गया।

तिरंगा :- अरे परमाणु! आओ…..तुम भी आओ…..इस साले की शर्ट भी उतरवाते हैं अब।

परमाणु :- छीsss मुझसे भी यह अपराध करवाना चाहता है…..गुर्र।

तिरंगा :- ठीक है तू मत कर। लेकिन मैं तो करूँगा। इस कमबख्त ने दो रुपए लिए हैं मेरे…दो रुपए।

परमाणु पहले तिरंगा फिर उस आदमी को घूरने लगा।

परमाणु :- साला कैसा आदमी है…..दो रुपए के लिए?

तिरंगा वापस पलटा। उसने परमाणु को गौर से घूरा।

तिरंगा :- अबे परमाणु क्या बोला तू अभी?

परमाणु :- वही जो तूने सुना! गुर्र। थू है तेरे ऊपर।

तिरंगा ने ज़ोर से अपना सिर पीटा।

तिरंगा :- अबे सुतरी के! तू एक डिलीवरी बॉय है। तू अच्छी तरह जानता होगा कि मेहनत का एक एक रुपया कीमती होता है और यहाँ तो दो रुपए की बात है।

परमाणु :- (अपनी ही धुन में गुर्राते हुए) अबे तो अपने दो रुपए ऐंठने के लिए तू यह काम करेगा साले ठरकी इंसान?

तिरंगा ने एक बार फिर माथा पीटा।

तिरंगा :- अबे तो कौनसा गलत काम कर रहा हूँ मैं जो तू इतना भड़क रहा है! (उस व्यक्ति की ओर ऊँगली के इशारे से) यह अपनी फिरसे सिलवा लेगा।

परमाणु चौंक गया। उसकी भौंहें आड़ी-तिरछी हो गईं।

तिरंगा :- क्या खड़े-खड़े चेहरा बना रहे हो बे……आ तू भी मदद कर थोड़ी।

परमाणु :- मदद??? भक्क साले मलिच्छ।

तिरंगा :- फिर भड़क गया?? अबे तेरी थोड़े ही माँग रहा हूँ मैं।

परमाणु :- गुर्रर्र! साले सोच भी मत लियो वर्ना पटक के मार दूँगा।

तब तक वह व्यक्ति पैंट उतार चुका था। उसने तिरंगा की ओर पैंट बढ़ाई। पैंट थामते हुए तिरंगा बोला।

तिरंगा :- हाँ अब निकल फटाफट।

व्यक्ति ने कुछ पल उसे और परमाणु को घूरा फिर दौड़ता हुआ वहाँ से निकल लिया।

तिरंगा पैंट को चारों तरफ से निहारता हुआ बोला– “नई लगती है! भगवान मेहरबान था मेरे पे आज। दो रुपए में पैंट मिल गई….हीहीही।”

परमाणु :- क्या??? तू यह पैंट माँग रहा था उससे?

तिरंगा उसकी ओर घूमा।

तिरंगा :- हाँ….तो…..तुझे क्या लगा था?

परमाणु :- क….क ….कुछ भी तो नहीं। हे हे।

तिरंगा नथुने फुलाकर कर उसे घूरने लगा।

तिरंगा :- सच सच बता क्या समझा था तूने?

परमाणु :- अबे क्या यार! छोड़ न!

तिरंगा :- तू मुझे छोड़।

परमाणु :- मैंने तुझे पकड़ा ही कहाँ है बे?

तिरंगा :- अबे मेरा मतलब मुझे मेरे ठेले तक छोड़ दे….चल।

अगले ही पल तिरंगा परमाणु की पीठ पर सवार था और वे लोग बढ़ रहे थे तिरंगा के चाट वाले ठेले की ओर।

जिस गली में कुछ क्षण पहले ये घटना घटी थी उसी गली के आगे जाने पर अगली गली में वह व्यक्ति जिसकी तिरंगा ने पैंट छीनी थी, घुप्प अँधेरे में खड़ा न जाने किससे बड़बड़ा रहा था।

व्यक्ति :- मैंने आपका काम पूरा कर दिया….मैं तिरंगा को हटाकर यहाँ ले आया अब आप उसके चाट वाले ठेले के पास आयाम मशीन फिट कर सकते हो। और….और…मुझे वह ‘शानदार ईनाम’ भी दे दो जो काम पूरा करने पर मुझे देने का वादा किया था आपने।

घुप्प अँधेरे में से एक सर्द आवाज़ आई– “ज़रूर! तुझे तेरा ईनाम मिलेगा। अबे ओ सूतर! किधर है बे जल्दी इधर आ साले …. फिरसे खोपचे में टट्टी करने लगा क्या?”

सूतर :- अबे सरदार! तेरे बगल में ही खड़ा हूँ साले। इन्ना अन्हरा फैलाए रहोगे तो का दिखेगा? ससुर का अंडा?

सरदार :- अ….ब….हाँ तो ठीक है न। हमेशा बगल में ही रहा कर मेरे।

सूतर :- बोलो तो टट्टी भी बगल में ही कर दिया करूँ।

सरदार :- बकवास नहीं! चल इस इंसान को इसका ईनाम सूंघा दे।

सूतर :- ठीक है।

और फिर अंधेरे में किसी की पदचाप सुनाई दी। व्यक्ति थोड़ा डर गया। वह चौंक कर पीछे हटा और तभी उसे अपनी नाक के पास एक फुस्स की आवाज़ सुनाई दी जैसी स्प्रे छोड़ने पर होती है ठीक वैसी ही आवाज़।

व्यक्ति :- आह! थू….थू…..अक्क…अक। क क्या सूंघा दिया तुमने मुझे बहुत जोर की उल्टी आ रही है।

वह व्यक्ति वहीं गली में गिर गया और लोट-लोट कर उल्टियाँ करने लगा। उसकी हालत दयनीय हो गई।

सूतर :- हीहीही। अब उल्टी करते-करते तू परलोक पहुँच जाएगा। बोल है न शानदार ईनाम। हीहीही।

सरदार :- चल निकल बे सूतर अब यहाँ से।

दूसरी तरफ तिरंगा तथा परमाणु तिरंगा के ठेले तक पहुंच चुके थे।

परमाणु :- क्यों बे तिरंगे? कुछ खिलाए-पिलाएगा नहीं क्या?

तिरंगा :- निकाल पैसे।

परमाणु :- अबे बड़ा कंजूस दोस्त है तू! साले पैसे मांग रहा।

तिरंगा :- साले वो झापड़ मारूँगा….बत्तीसी झड़ गटर में गिर जाएगी। पहले ही 101 रूपए 75 पैसे बाकी लगा रखे हैं तूने। कब देगा वो? बोल!!

परमाणु :- ये बात? ये बात? रुक।

परमाणु का एक हाथ पैंट की जेब में छानबीन करने लगा और कड़ी छानबीन के बाद बाहर आया तो उस हाथ मे था 1 रुपए का सिक्का।

परमाणु :-(भौकाल दिखाते हुए) ये ले। 75 पैसे काट अपने।

तिरंगा (सिक्का झपटते हुए) :- हाँ! ये हुई न बात। अब बस तेरे 101 रुपए बाकी रह गए।

परमाणु :- अबे पहले मेरे 25 पैसे तो वापस कर। और हाँ। साथ में चाट भी बना दियो।

तिरंगा :- अबे यार परमाणु। छुट्टे तो नही हैं यार! ऐसा कर तू अगली बार मेरेको 25 पैसे कम देना है। ठीक है?

परमाणु :- अच्छा ठीक है! चल बना चाट।

तिरंगा चूल्हा जला ही रहा था कि तभी।

‘किर्र-किर्र’ ‘सक्क-सक्क-सक्क’

किर्र की आवाज़ें बिजली के तारों से आई थीं और जब तक तिरंगा परमाणु उन्हें देखते, सक-सक-सक करती हुई पूरे एरिया की लाइट्स गुल हो गईं।

आसपास गहन अंधकार छा गया। चाँद भी बादलों में छुपा हुआ था ऊपर से आस-पास दूर दूर तक रोशनी का कोई स्त्रोत नहीं था जिस कारण पूरा एरिया गाढ़े अंधेरे में डूबता चला गया था।

तिरंगा तब तक मोमबत्ती जला चुका था। थोड़ी रोशनी होने पर दोनों को एक दूसरे के चेहरे दृष्टिगोचर हुए।

परमाणु :- ये हो क्या रहा है यार? दिल्ली में इस तरह से आजतक बिजली नहीं गई।

तिरंगा :- कुछ तो गड़बड़ है दया।

‘फर्रsss’ तभी गूँज उठी यह फर्र की आवाज़ और एक तेज़ हवा का झोंका आया। तिरंगा का लबादा हवा में उड़ा और उससे टकरा कर मोमबत्ती सड़क पर कहीं दूर जा गिरी और बुझ गई।

तिरंगा और परमाणु फौरन सतर्क हो गए क्योंकि यह हवा का झोंका आँधी द्वारा उत्पन्न हुआ तो बिल्कुल भी नहीं था– ज़रूर कुछ गड़बड़ हुई थी।

दोनों अभी कुछ समझने की चेष्टा ही कर रहे थे कि वातावरण में गूंज उठी ये आवाज़ें– ‘साएंsss साएंsss फस्सss’

परमाणु :- कौन है बे? सामने आ।

परमाणु के चिल्लाते ही एकदम सन्नाटा हो गया। सुई पटक सा सन्नाटा था यह।

परन्तु यह सन्नाटा मात्र दो पल का था। अगले ही पल एक धीमी बेहद सर्द आवाज़ आई। कहीं आस-पास ही था इस आवाज़ का स्त्रोत। किन्तु ये पता लगा पाना असंभव था कि सच में कहां से आ रही थी वह आवाज़– क्योंकि वह आवाज़ चारों दिशाओं में गूँज रही थी।

“होला-पोला हग्गु का गोला

मैंने खाया छोला

फिर सुबह संडास में बम बोला

मम्मी बोली मत खाया कर इतना छोला

वर्ना काम न आएगा हाजमोलाssss”

“हीहीही-हाहाहा-हूहूहू।”

परमाणु :- गुर्रर्र। अबे तिरंगा कैसी बकवास शायरी छोड़ रहा है बे? ऐसी शायरी छोड़नी हो तो संडास में छोड़ा कर….टट्टी के साथ वह भी बह जाएगी।

तिरंगा :- बहूहूहू। अबे मुझे तो सदियाँ बीत गई शायरी किये हुए। जबसे गरीब हुआ हूँ….आटे पानी के जुगाड़ में ही दिन गुज़र जाते हैं।

परमाणु :- क्या? तो फिर कौन है यह मनहूस!

“हीहीही। मैं हूँ लपरकण्ड!”

तिरंगा-परमाणु सतर्कता के साथ अपने-अपने स्थान पर घूमने लगे।

परमाणु :- अबे सामने तो आ!

तिरंगा :- कौन है बे तू?

लपरकण्ड :- हीही-हाहा-हूहू…….सूतर! चालू कर आयाम मशीन।

सूतर :- सरदार गड़बड़ हो गई।

लपरकण्ड :- अब का हुआ बे?

सूतर :- सरदार मशीन के अंदर भरा हुआ गोबर गैस खत्म हो गया अब गोबर मशीन…मतलब आयाम मशीन चल नहीं पाएगी।

लपरकण्ड :- ओह्ह! ये तो गड़बड़ हो गई। सुनो बे मानवों! तुम में से किसी को लगी है क्या?

परमाणु :-(कूदते हुए) हाँ….हाँ….मुझे लगी है। मुझे लगी है।

लपरकण्ड :- तो कर दे!

परमाणु :- गुर्रर्र। अबे बैल-बकरा समझे हो का मुझे? सड़क पे करूँ?

लपरकण्ड :- अबे इन्ना अन्हरा काहे को किया है मैंने। तेरे बगल में चार कदम पर ही झाड़ी है…..जल्दी घुस जा।

परमाणु :- शुक्रिया भाई बताने के लिए। बहुत जोर की लगी थी माँ कसम।

परमाणु झाड़ियों में चला गया। एक बार पुनः सन्नाटा छा गया।

पाँच मिनट बाद।

लपरकण्ड :- अबे कित्ता करेगा बे? आजा।

सूतर :- सरदार! तुम भी एकदम चमनचूरन ही हो। अरे वो जितना ज्यादा करेगा उतना हमारी मशीन को ईंधन मिलेगा।

लपरकण्ड :- हाँ बे। सही कह रिया है तू। (परमाणु की तरफ पुचकारते हुए) पुच्च…कोई बात नहीं बेटे। तू करता रह…करता रहा। पुच्च-पुच्च।

परमाणु :- बस बस हो गया। लेकिन पानी नहीं हैं यहाँ।

सूतर :- तो हम क्या करें बे। हमें तो जो चाहिए था मिल गया।

तिरंगा :- परमाणु!! घबराओ नहीं। मेरे पास है पानी। मैं लेकर आता हूँ।

लपरकण्ड :- अबे सूतर! जा जाके उठा।

सूतर :- मैं नहीं जाऊँगा बे सरदार। तुम जाकर उठाओ।

लपरकण्ड :- अबे कैसा सेवक है तू। सरदार की तनको इज्जते नई है, गुर्रर्र!

सूतर :- हाँ….हाँ ठीक है जाओ अब जल्दी….जाकर उठाओ।

लपरकण्ड :- गुर्रर्र। उठाता हूँ। लेकिन महासरदार से तेरी शिकायत जरूर करूँगा।

लपरकण्ड झाड़ियों की ओर बढ़ गया। दूसरी तरफ तिरंगा परमाणु को पानी थमा चुका था। परमाणु जल्दी-जल्दी साफ सुथरा होकर तिरंगा के साथ वापस ठेले के पास आ पहुँचा ।

परमाणु :- हा sss अब थोड़ा खाली-खाली लग रहा।

लपरकण्ड अपना काम करके वापस लौटा।

लपरकण्ड :- चल बे सूतर! आयाम मशीन चालू कर।

सूतर :- अबे सरदार एक और गड़बड़ है!

लपरकण्ड :- अब क्या चाहिए बे? गुर्रर्र।

सूतर :- जितना ईंधन तुम लेकर आए हो इतने में बस एक छोटा सा द्वार ही खुल पाएगा वह भी मात्र एक सेकेंड के लिए। इतने कम समय में हम एक को ही ले जा पाएँगे।

लपरकण्ड :- ये तो गड़बड़ हो गई बे! अभी बाकियों को भी उठाना है।

सूतर :- अबे सरदार इतना काहे घबड़ाते हो टीवी सीरियल की बहुओं की तरह। बाकियों को बाद में उठा लेंगे यार नो टेंशन! अभी बताओ किसको उठाएँ इन दोनों में से?

लपरकण्ड :- उम्म….सोचना पड़ेगा। पीले वाले को उठाया जाए या रंगीन वाले को।

उन दोनों से दूर खड़े परमाणु-तिरंगा अंधेरे में उनकी बातें समझने की भरपूर कोशिश कर रहे थे।

पर अभी तक कुछ समझ नहीं आया था।

उधर लपरकण्ड ठुड्डी मलता हुआ अभी तक सोच ही रहा था और उसे घूरता हुआ सूतर अपना सिर आयाम मशीन में लड़ा ले रहा था।

लपरकण्ड :- आईडिया! अक्कड़-बक्कड़ करते हैं।

सूतर :- गुर्रर्र #$@5 तेरे अक्कड़-बक्कड़ की बोतल मारूँ।

लपरकण्ड को गरियाता हुआ सूतर उड़कर परमाणु तक पहुंचा और उसे पकड़कर हवा में उड़ता हुआ आयाम मशीन के पास उतरा। परमाणु को चूं करने का भी मौका नहीं मिला।

सूतर ने फौरन आयाम मशीन चालू की और उसी क्षण परमाणु चिल्लाया– “तिरंगा!!!”

आवाज़ की दिशा में तिरंगा पलटा और उसी क्षण सामने एक सेकेंड के लिए बिजली चमकने जैसी रोशनी हुई, एक गोल छिद्र नज़र आया और दो साए परमाणु को उस छिद्र में धकेलते हुए दिखे।

तिरंगा अवाक् सा देखता रह गया और परमाणु उसकी आँखों के सामने से एक तेज़ चमक के साथ गायब हो गया।

तिरंगा :- नहींssss परमाणु!!!!!!!

तिरंगा हलक फाड़कर चीखा। आकाश में छाए बादल हट गए और चंद्रमा तिरंगा को घूरने लगा।

तिरंगा अंधेरी सड़क पर चिल्लाए जा रहा था। उसकी आवाज़ एक-एक गली एक-एक नुक्कड़ से होती हुई पूरे दिल्ली को गुंजाने लगी और ‘सक्क-सक्क-सक्क-सक्क’ एक के बाद एक इलाके में रोशनी होती चली गईं। पूरे शहर की लाइट्स वापस आ चुकी थीं। लेकिन कोई था जो जा चुका था।

तिरंगा घुटनों पर बैठा हुआ था। उसकी आंखों के सामने परमाणु का अपहरण कर लिया गया था और वह कुछ नहीं कर पाया।

वह बैठकर आँसू बहा रहा था कि तभी उसकी नज़र परमाणु के जोमैटो वाले बैग पर पड़ी। तिरंगा ने बाज़ जैसी नज़रों से इधर-उधर देखा फिर बैग पर झपट पड़ा।

तिरंगा :- साला आज तो पार्टी होगी पार्टी। हीहीही।

तिरंगा दौड़ता हुआ अपने गरीबखाने पर पहुँचा। उसने फटाक से बैग खोला और उसमें रखा सारा माल चट कर गया।

अंत में तिरंगा चटाई पर बैठा डकार ले रहा था और तीली से दाँत साफ कर रहा था।

तिरंगा :- बड़े दिन बाद चांप कर खाया।

अचानक तिरंगा के कान में आवाज़ें गूँजने लगीं। ‘अभी बाकियों को भी उठाना है’ ‘अबे सरदार बाकियों को बाद में उठा लेंगे’

अचानक तिरंगा जैसे नींद से जागा। वह दौड़ता हुआ अपने बेडरूम में पहुंचा और अलमारी खोलकर न जाने क्या ढूँढने लगा। वह बड़ी हड़बड़ाहट में लग रहा था।

तिरँगा :- कहाँ गया? कहाँ गया? साला कहीं उसे भी मैंने ढाल और स्तम्भ के साथ गिरवी तो नहीं रखवा दिया।

वह सिर खुजाते हुए सोचने लगा।

तिरंगा :- कहाँ गया?? अरे हाँ!

वह दौड़कर अपनी राइटिंग डेस्क तक पहुंचा और उसका ड्रॉअर खोलकर निकाला– ट्रांसमीटर।

तिरँगा ने फटाफट ब्रह्मांड रक्षकों की फ्रीक्वेंसी पर सम्पर्क किया।

तिरंगा :- हलो…हलो….कोई मुझे सुन रहा है? हलो! कहाँ हो बे ठरकियों! अबे मर गए क्या? अबे सुन रहे हो मुझे की नहीं?

“कोई नहीं सुन रहा।” अचानक किसी की आवाज़ आई थी तिरंगा के ट्रांसमीटर पर।

तिरंगा :- एंथोनी! अबे मुर्दे तू जाग रहा था तो बोला क्यों नहीं। चिल्ला-चिल्ला कर गला मरमरा गया मेरा। कहाँ है तू?

एंथोनी :- अपनी कब्र पे बैठकर हग रहा हूँ साले!……..अबे सोया हुआ हूँ कब्र में। एक तो साला रूपनगर में एकदम सन्नाटा हुआ पड़ा है। कहीं चोरी-चकारी भी नहीं हो रही और मैं साला रात भर उल्लूओं की तरह यहाँ-वहाँ टहलता रहता हूँ। अभी कब्र में लेटा टिक-टॉक देख रहा था कि तू कीड़ी करने आ गया।

तिरँगा :- अबे यहाँ कांड हो गया और तू टिक-टॉक पे मुजरा देख रहा है!

एंथोनी :- क्या कांड हुआ?

तिरँगा :- परमाणु का अपहरण!

एंथोनी :- क्या!!!! उसका अपहरण करके किसी को क्या मिलेगा? वह साला तो पापड़ भी उधार लेकर खाता था।

तिरंगा :- मेरी आँखों के सामने अपहरण हुआ उसका! उसे दूसरे आयाम में खींच ले गए वे लोग।

एंथोनी :- कौन वे लोग? ज़रा अच्छे से तो बता। कौन थे वो?

तिरंगा :- मुझे तो लगता है वो भूत प्रेत थे। उनके आते ही हर तरफ अंधेरा हो गया था और डरावनी आवाज़ें आने लगी थीं।

एंथोनी :- साले भूतों को यही काम रह गया है अब? ज़रूर पी-वी रखी है तूने आज।

तिरंगा :- अबे पीता नहीं हूँ मैं।

एंथोनी :- अच्छा! तो सूंघ रखा होगा चरस वगैरह।

तिरंगा :- गुर्रर्र! सूंघता भी नही हूँ। साले तुझे नहीं मानना मत मान! मैं बाकियों को बताऊंगा।

एंथोनी :- लेकिन इस समय उनमें से कोई भी तुझे उत्तर नहीं देगा।

तिरंगा :- डोगा? वह तो देगा न? वह तो रात में ही सक्रिय होता है।

तभी किसी अन्य व्यक्ति की आवाज़ गूँजी– “हाँ साले। सक्रिय ही हूँ मैं अभी। बहूहूहू।”

तिरंगा :- डोगा!!! कहाँ हो? क्या कर रहे हो?

डोगा :- कपड़े धो रहा हूँ। भैंsssss । साला कपड़े धो-धोकर मेरी मसल्स ही धुलकर बह गईं।

तिरंगा :- अरे लेकिन इतनी रात को कपड़े क्यों धो रहे हो?

डोगा :- साले मुम्बई है। पानी नहीं आता। पता तो होगा ही। रात को ही आता है….और जब से मैंने वाहवाही लूटने के लिए अपनी प्रेमिका के कपड़े धोए तब से तो और बुरा फँसा। कहती है तुम कितना साफ कपड़ा धोते हो! ऐसे तो मैं भी न धो पाऊँ। आज से तुम ही मेरे कपड़े धोओगे। बहूहू। साला पता नहीं शादी के बाद क्या क्या धुलवाएगी।

एंथोनी :- च् च्। बेचारा डोगु।

तिरंगा :- अबे जब मैंने तुझे बताया कि परमाणु का अपहरण हो चुका है तब तो तूने एक बार भी च् नहीं किया।

एंथोनी :- क्यों करूँ बे? उसने एक साल से मेरे पाँच रुपए ले रखे हैं। आजतक नहीं दिहिस।

तिरंगा :- अबे तुम दोनों के अलावा भी कोई सक्रिय है क्या? जवाब दो! सभी का इकट्ठा होना ज़रूरी है। मैं सबको एक साथ सारी घटना बताऊंगा। कोबी! भेड़िया! ज़रूर इस समय जाग रहे होंगे। जंगल में रहते हैं रात को खूब मंगल करते होंगे।

तभी कोबी की आवाज़ आई– “पेड़ पे बैठे हुए हैं ससुर! आओ तुम भी! जामुन खिलाते हैं।”

डोगा :- अबे पेड़ पर बैठ के क्या कर रहा है?

कोबी :- सामने वाली झाड़ियों में रोमांस चल रहा है। वही निहार रिया हूँ।

तिरंगा :- भेड़िया किधर है?

एंथोनी :- अबे चचा ई का पूछ लिए?

कोबी :- गुर्रर्र गुर्रर्र गुर्रर्र। ऊ साला जेन के साथ महल में गया है माहौल बनाने।

डोगा :- बेचारा जानवर तभी दूसरों का रोमांस देख रहा है! च् च् च्।

तिरंगा :- 💭 सालों ने परमाणु के अपहरण की खबर सुनकर एक बार भी च् च् नहीं किया।💭 ध्रुव! नागराज! शक्ति! स्टील! तुमलोग कहाँ हो?

स्टील :- बैटरी डाउन है बे! सुबह बात करियो।

शक्ति :- ऑमलेट बना रही हूँ।

एंथोनी :- देखना जलकर काला न हो जाए!

शक्ति :- घबरा मत। काला सिर्फ तू ही रहेगा हमेशा।

एंथोनी :- गुर्रर्र।

ध्रुव :- यस तिरंगा बोलो। सॉरी मैं दरअसल पैकिंग रहा था इसलिए जवाब न दे सका।

तिरंगा :- 💭अबे कम से कम च् च् तो कर सकता था।💭

स्टील :- पैकिंग क्यों कर रहे ध्रुव?

ध्रुव :- अरे यार! कल सुबह गोरखपुर के लिए निकलना है ज़रूरी काम से।

तिरंगा :- अबे तुमलोगों का आपसी पंचायत हो गया तो मैं सुनाऊं आगे?

सभी एक साथ– “हाँ हाँ भाई। तू सुना…सुना।”

और फिर तिरंगा ने शुरू से लेकर अंत की घटना का विस्तारपूर्वक वर्णन कर डाला।

ध्रुव :- ह्म्म्म….

एंथोनी :- 💭यही मौका है। जब तक यह साला धरु ह्म्म्म करेगा, मैं बोल देता हूँ💭 तो! ….तिरंगा। तेरे कहने का मतलब यह है कि तू और परमाणु तेरे ठेले के पास खड़े थे और अचानक से वातावरण में अंधेरा छा गया। फिर दो नमूने आए…

तिरँगा :- 💭गुर्रर्र💭 नमूने नहीं बहुत खतरनाक थे वो।

एंथोनी :- हाँ हाँ वही। जो भी थे, आए और उन्होंने परमाणु को टट्टी करवाई फिर उसी की टट्टी से गोबर गैस बनाकर उसे ही किडनैप कर ले गए। सबसे पहले तो तू जाकर अपना भेजा चेक करा। गोबर गैस से आयाम मशीन कौन चलाता है बे?

तिरंगा :- भूत-प्रेत कुछ भी कर सकते हैं।

कोबी :- अबे ससुर हमसे बड़ा भूत कौन है।

एंथोनी :- कुछ भी हो। मैं नहीं मानूँगा तिरंगा की यह बकवास….चलता हूँ मैं।

तिरंगा :- हाँ बे जा। जाके टिक-टॉक पे मुजरा कर गुर्रर्र। बेचारे परमाणु को झूठ-मूठ में बदनाम कर रखा था मैंने। असली टिक-टॉक बाज तो तू है।

डोगा :- भाईलोग तुमलोग डिबेट करते रहो मैं चला कपड़े सुखाने।

कोबी :- और मुझे भी डिस्टर्ब मत करो बे। रोमांस देखन दो।

स्टील :- बेटा तिरंगा! लगता है तूने कोई साउथ इंडियन मूवी देख ली है क्योंकि वही लोग गोबर गैस से आयाम मशीन चला सकते हैं। अब मैं चला चार्ज होने।

शक्ति :- मेरा ऑमलेट बन गया। टाइमपास करवाने के लिए थैंक्स तिरंगा।

तिरंगा :- 💭हाँ हाँ सालों। जाओ भाग जाओ सबके सब! पर याद रखना वो लोग हम में से एक को भी नहीं छोड़ेंगे। जल्द ही एक एक को ले जाएंगे।💭

तिरंगा बेचारा चिल्लाता रह गया और सब निकल लिए। केवल ध्रुव फ्रीक्वेंसी पर था।

ध्रुव :- आई एम सॉरी तिरंगा। अगर मुझे नितांत आवश्यक कार्य से आज सुबह ही गोरखपुर के लिए न निकलना होता तो मैं अभी तुम्हारे पास पहुँच जाता।

तिरंगा :- कोई बात नहीं…तुम जाओ। लेकिन ज़रा ध्यान से! कहीं ऐसा न हो गोरखपुर से गोबर के द्वारा तुम भी गोबरपुर पहुँच जाओ।

ध्रुव :- ok मैं ध्यान रखूंगा और जल्द ही वापस लौटूँगा।

तिरंगा ने ट्रांसमीटर वापस रखा।

तिरंगा :- सालों में से एक को भी यकीन नहीं है मुझपर। शायद नागराज यकीन करता लेकिन उसने कोई जवाब नहीं दिया। अब मुझे ही कुछ करना होगा।

क्रमशः

By- Mr. Talha faran ali

Published by Devendra Gamthiyal

वर्णों से बनकर उपन्यास की ओर

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  1. Devendra Gamthiyal's avatar

1 Comment

  1. बहुत ही उत्तम हँस हँस कर पेट दर्द हो गया। गोबर गैस से चलने वाली टाइम मशीन और चाट टिक्की का ठेला लगाया तिरंगा गजब।
    उससे शानदार था जोमैटो गाए अपना परमाणु 🤣🤣🤣🤣
    सारी सिचुएशन एक से बढ़कर एक धांसू थी। अब ज्यादा क्या कहूँ जल्दी अगला पार्ट लाइये जिसमें पता लगे नागराज कहाँ है?

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