रग़ों में लहू तो बह चुका बहुत
थोड़ा सा हिन्द बह जाने दो
लाखों घड़ी बिता दी कह कर बहुत
थोड़ा सा हिंदी भी आजमाने दो।
पढ़ लिया बहुत कुछ और समझ भी गया बहुत
थोड़ा सा अब हिंदी गुनगुनाने दो
अब हाथ तो तंग होगा ही बहुत
थोड़ा सा आज हिंदी लिख जाने दो।
अब हम क्या देंगे जो हम में खुद बाकी ना रहा
थोड़ा सा हिंदी तो बच जाने दो
होंगे बहुत से तराने जमाने में फिर भी
थोड़ा सा हिंदी तो गाने दो।
सुन लिया चहुँ दिशा में भाषाओं को अपनी
थोड़ा मेरे देश की मिट्टी को रंग जमाने दो
मैं इंग्लिश, मैं बंगाली, मैं तमिल हुआ रोज ही
थोड़ा बस आज के लिए हिंदी बन जाने दो।
ये जो रुक रुक कर मद्धम हो चुकी बहुत
थोड़ा सा उस नदी को बह जाने दो
मोबाइल, टीवी और फेसबुक ने बदल दी जिंदगानी अपनी
थोड़ा सा अब हिंदी को भी घुल जाने दो।
पढ़ रहे हैं वन टू, ए बी सी डी बहुत
थोड़ा सा तो अ आ बन जाने दो
कह रहे हैं ऑल राइट बहुत
अरे थोड़ा सा तो ठीक बन जाने दो।
हाय हेल्लो में सिमट गयें हैं हम बहुत
थोड़ा सा नमस्कार का जमाना याद आने दो
हो चुका बहुत सूरज उदय गुड मॉर्निंग से
थोड़ा सा उसे सुप्रभात बन जाने दो।
हो चुके हैं सब बिजी अपनी जिंदगी में सभी
थोड़ा सा हिंदी भी घुस जाने दो
बच्चे तो हो चुके फैशनेबल सबके
थोड़ा तो उन्हें हिंदी बन जाने दो।
हिंदी बन जाने दो।
हिंदी बन जाने दो।
Published by Devendra Gamthiyal
वर्णों से बनकर उपन्यास की ओर
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वाह गुरुजी बहुत ही सरस, सरल एवं सुमधुर भाषा है हमारी हिंदी, और आपकी हिंदी तो लाजवाब होती है, हम सब भी कहेंगे हम हिन्दवासी हैं, हमे हिंदी बन जाने दो
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Bahut sundar kavita Dev bhai..
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