Book Analysis #2

By Divyanshu Tripathi

Book :. The Fallen
Author : Eric Van Lustbader
Publisher : Head Zeus

This book is the second installment in the Testament series written by the author.

Overview : In this novel the end of days is upon us. In Lebanon a man discovers a hidden tome which has been forbidden for thousand of years; the Testament of Lucifer. Now, the Fallen which is an advance guard of the Lucifer has arisen and  Bravo Shaw who is  head of the Gnostic Observatine sect, must face the threat. He has unearthed the chronicle of conflict between the good and the evil. The entire human kind is now at risk of being vanquished by the forces of evil. Bravo, now with his confessor Fra Leni and her blind sister Emma must defend the world against these evil forces. Everything is at stake.

Writing : Well the  writer has certainly  thrown away  his espionage writer’s coat which earned him the place among the best with the blockbuster ‘The Bourne’  series of books  to write a conspiracy thriller and has done a remarkable job. The book is the second installment in the Testament series so to know more about the characters you may have to read the first book in this series. But otherwise this book is not connected to its predecessor in any way. The writing is very fast paced for the first 90 pages and you will find yourself completely engrossed with it. The next 70-80 pages are a bit slow in pace but that is necessary for the final build up which is totally amazing. The exceptional turn of events in the end will just blow your mind off and you will certainly feel satisfied that your money was well spent.

The writer has done a great job in researching the  ancient history, languages, peoples, and the occult arts, The research done is certainly remarkable which adds to the beauty of the book. The author has wisely added a page and two referencing about the real history behind this work of fiction and this certainly builds up the interest of the readers.

Character development :The writer has done a great job in this field by genuinely building up the characters, though it  compromises with the speed of the narrative at some places but it’s okay.  The reason behind saying this is that at many times during reading this book you will certainly feel for the characters and that’s when you know that the writer has done an excellent job .

Positives : Mr. Van Lustbader has crafted a fine sequel that delivers thrills and actions while investigating and exposing the roles of politics, religion and civilization. He has orchestrated his chapters into five and eight pages to maintain the tension of the story. I personally like a well researched book and this is certainly one of those.

Negatives : The plot seems to move at snail’s pace at some points in the book. Though the writer has done a great  job in keeping things simple  but  you may find it a bit  confusing at some places.

कमर प्रेम (भाग 2: प्रेम साधना)

लेखक :दिव्यांशु त्रिपाठी


जेन उस नए लड़के के साथ बड़े ही प्रसन्न मुद्रा में चाट खा रही थी। दोनों ही एक साथ बहुत खुश लग रहे थे, जिसको देखकर कोबी अंदर ही अंदर मरा जा रहा था।
तब तक पीछे से कोबी का एक चेला बोल पड़ा।
“कोबी गुरु। आप भी जाओ चाट खाने , इसी बहाने अपनी हवस भी मिटा लोगे।”
कोबी(गुस्से में)- क्या बोला बे।
” अर र र र र…..……. मेरा मतलब कि इसी बहाने आप जान भी लोगे कि ये लड़का है कौन? और भाभी को कैसे जानता है?”
कोबी कुछ बोल पाता उससे पहले ही उसका दूसरा चेला बोल उठा।
” अबे क्या बात कर रहा है बे? कोबी गुरु को चाट , फुल्की खिला रहा है। दिमाग बेच दिया है क्या। पता नहीं तुझे की भाई का मुँह, पेट और पिछवाड़ा तीनों ही तीता खाने से छलनी हो जाते है। पिछली बार भाई ने गलती से 1 पानी भरी फुल्की खा ली थी, माँ कसम बता रहा हूँ कि सुबह सुबह गुरु ने ऐसा त्राहिमाम त्राहिमाम मचाया था कि पूरा शहर दहल गया था। मोहल्ले की सारी बर्फ की सिल्लियां इनकी तशरीफ़ में डालनी पड़ी तब जाकर कुछ ठंड पड़ी गुरु को।”
कोबी(सकपका कर): ते साले हर बात इतना डिटेल में कतई घुस कर क्यों बताने लगता है बे। एक शब्द नहीं बोल पाता है कि मुझे अच्छी नहीं लगती ये सब चीजें।
” वो भाई, बचपन से मेरा सपना था कि बड़ा होकर डिटेक्टिव बनने का तो हर चीज़ बिल्कुल ही बारीकी से देखने और बताने की आदत पड़ गई है।”
कोबी: तो क्या साले अपनी सारी जासूसी मेरी तशरीफ़ में ही घुसकर करेगा। कतई एसीपी प्रद्युमन बन जायेगा मेरे पिछवाड़े का।
“सॉरी गुरु सॉरी। मगर आगे का क्या सोचा है गुरु। क्या करना है?”
कोबी(धीमी आवाज़ में): सोचा क्या है। सह लेंगे थोड़ा।
“सच में गुरु। क्या आप वही करने जा रहे जो मैं सोच रहा हूँ?”
कोबी(जोशीली आवाज़ में): ढिंढोरा पिटवा दो मामा। पूरे गाँव , मोहल्ले वालों के यहाँ से बर्फ की सिल्लियां मंगवा लो। आज ये वीर अपनी तशरीफ़ दांव पर लगा रहा है।”
“मामा? कौन मामा?” -कोबी का चेला चौंक कर पूछता है।
कोबी: साले मैं इतना अच्छा माहौल बनाता हूँ और तू उसका क्रिया कर्म कर देता है। माहौल में रहने दे बे।
ये सुनकर कोबी के सभी चेले जोश में एक साथ बोलते हैं।
“शक्ल से चीकट दिखने वाले शूरवीर विद्यार्थी, बच्चों का टिफ़िन चुरा कर खाने वाले भुक्कड़ इंसान, हवस भरी निगाहों से शक्ति कपूर को भी पीछे छोड़ने वाले ठर्कियो के ठरकी कोबेश्वर बाहुबली पधार रहे हैं।”
कोबी(अजीब सा मुँह बनाया था, एक्सप्लेन नहीं कर सकते उसके भाव): ते साले मेरी इज़्ज़त बढा रहे हो कि उतार रहे हो?
सभी चेले हड़बड़ा कर बोलते हैं- “आप आगे बढ़ो गुरु। ये सब बाद में देखते हैं ना।”


कोबी बड़े ही जोशीले अंदाज़ में सिर और कंधे तानकर आगे बढ़ता है। बिल्कुल एकदम हवा से बातें करते हुए कोबी आगे बढ़ता ही रहता है कि तभी रास्ते मे एक पत्थर से ठोकर खाकर औंधे मुँह गिरता है और अपनी खोपड़िया फुड़वा लेता है।


“अरे अरे अरे , च च च च खोपड़िया फुड़वा कर ही माना ये आदमी। बड़े चौड़े होकर जा रहा था। ससुर बेज़्ज़ती करवा दिहिस पूरी। हाय दैया। अब क्या मुँह दिखाएंगे हम समाज में, अभी तो आधी ही गई है, अभी ये आदमी अपनी पूरी इज़्ज़त उतरवा कर आएगा।”


उधर कोबी किसी तरह अपने आप को संभालकर , अपने सिर को छू कर देखता है कि अभी भी अपने धड़ से जुड़ा है कि नहीं। अपने शरीर से धूल झाड़कर आगे बढ़ता ही है कि तभी पीछे से एक झाड़ू लगती है उसको।
कोबी : कौन मारा बे कोबी भाई को।
“अभी एक ही मारा है साले ज्यादा बकैती की तो और मारूँगी।”
कोबी पीछे मुड़कर बड़े ताव में देखता है मगर पीछे खड़े चेहरे पर जैसे ही नज़र पड़ती है बिल्कुल सकपका जाता है।
कोबी(हदस कर): अरे मोरी मईया। शांता बाई। अरे आप कहाँ से आ गई यहाँ पर?
शांता बाई : कहाँ से आ गई। अबे मैं तो हमेशा यहीं रहती हूँ। तुझसे ज्यादा अटेंडेंस तो मेरी रहती है स्कूल में। नल्ले कहीं के। अभी-अभी पोछा लगाया था मैंने। और अभी सूखा भी नहीं कि तू उसमें लोट लगाने लगा।
कोबी: लोट नहीं लगा रहा था शांता बाई। मैं गिर गया था।
शांता बाई: गिर गया था । खड़ा तक होना नहीं आता। गिरे पड़े रहते हैं। चल भाग जा यहाँ से वरना अभी झाड़ू-झाड़ू मारूँगी।


इतना सुनना ही था कि कोबी सरपट दौड़ लगाता है और शांता बाई से सुरक्षित दूरी बना लेता है। अब वो चाट वाले कि तरफ फिर आगे बढ़ता है। कुछ ही मिनटों में कोबी वहाँ पहुंच जाता है और फिर उस चाट वाले को आँखों से इशारे करता है। उसके इशारे देखकर चाट वाला भी कोबी को इशारा करता है। कोबी फिर से उसको इशारा करता है। चाट वाला फिर उसको कुछ इशारा करता है। काफी देर की इशारेबाजी के बाद कोबी तंग आकर बोलता है।


कोबी: अबे ए ए ए साले। कैसे गंदे गंदे इशारे कर रहा है बे। मैं उस तरह का आदमी नहीं हूँ।
चाट वाला: यहाँ आकर ऐसे ऐसे इशारे करेगा तो मैं क्या समझूँ बे।
कोबी : ज्यादा स्मार्ट ना बन ससुर। चुप चाप फुल्की लगा। और सुन (धीमी आवाज़ में) तीखा जरा कम डालियो।
चाट वाला: तेरी शक्ल देखकर ही मैं समझ गया था रे कि तू एकदमे नाज़ुक कली है। तेरे बस की केवल मीठी फुल्की ही है।
कोबी कुछ इज़्ज़त बचाता उससे पहले ही उधर से जेन चिल्लाती है।
“और तीखा भैया । और तीखा डालो। ये क्या बनाया है।”
चाट वाला (रोते हुए): एक तो यार इस औरत ने परेशान ……..
कोबी: साले तेरे को ये सुंदर कन्या औरत दिखती है।
चाट वाला(झुँझलाकर): साले जब डायलाग बोला करूँ ना तो टोका ना कर। पूरा दर्द भरा माहौल खराब कर देता है।
कोबी : रोता क्या है बे। बोल ना।
चाट वाला: रुक, आँखों मे आसूँ लाने दे ………. हाँ अब सही है। एक तो ये औरत ने परेशान करके रख दिया है। और तीखा और तीखा कर कर के मेरी जान ले ली है इस औरत ने। 1 किलो मरचा लाया था। इस औरत ने अभी केवल 10 फुलकियां ही खाई होंगी। मेरा सारा मरचा खत्म कर दिया इस हबसी औरत ने।
जेन: अरे भैया, क्या कर रहे हो और मिर्चा डालो ना।
चाट वाला ( ताव में) : अच्छा तू रुक। तू रुक। मैं अभी डालता हूँ तीखा।


चाट वाला अपने ठेले से कुछ दूर आगे जाता है तो वहाँ पर नागराज भीख मांगता हुआ बैठा रहता है।
“अरे दे दे। इस गरीब को कुछ दे दे। देव कालजयी के नाम पर कुछ दे दे।”
तभी उसके सामने एक आदमी आता है और उसको 2 रुपये देता है। नागराज उसको गुस्से में देखता है और धे पटक के मारता है।
“साले, चीमड़ इंसान। भिखारी समझा है मुझे।”
“तो और क्या समझूँ ?”
नागराज उसकी बात सुनकर कुछ देर कंफ्यूज हो जाता है फिर मन ही मन बोलता है ।
नागराज (मन में): इस साले ध्रुव को बताऊंगा किसी दिन अच्छे से। साले ने अच्छे खासे LED वाले दिमाग को ट्यूब लाइट बना कर रख डाला है। काम ही नहीं करता है साला एक बार में। अब इसको क्या जवाब दूँ?
सोचते हुए भी नागराज उस आदमी को कंटाप लगाता रहता है। उस आदमी को अपनी तरह हरा भरा बनाने के बाद नागराज बोलता है।
नागराज : ज्यादा इस्मारट ना बनना बे। अबे मैं तुझे भिखारी नज़र आ रहा हूँ। आ रहा होऊंगा मगर हूँ नहीं। अबे खज़ाना दान किएला है मैं भारत सरकार को। भिखारी नहीं है मैं।
“तभी भिखारी बना बैठा है अभी।” – वो आदमी कराहते हुए बोलता है।
नागराज : बहुत बोल रहा है। बहुत बोल रहा है। कतई बेज़्ज़ती किये पड़ा है तबसे। निकाल 2000 रुपये।
“अरे मगर क्यों। मार भी मैं खाऊं और पैसा भी मैं ही दूँ। मैं तिरंगा नहीं हूँ।”
नागराज: अबे इसमें तिरंगा कहाँ से आ गया?
“किसी बेइज़्ज़त इंसान का नाम लेना था। इसी का पहले याद आ गया।”
नागराज(सोचते हुए): सही कह रहा है यार तू। मुझे भी उसी का नाम याद आता है। उसकी बेज़्ज़ती के अलावा और कुछ होते मैंने भी कभी देखा नहीं है। हम सब की कॉमिक्स आती है उसकी बेज़्ज़ती आती है।
नागराज ये सब बोल रहा था तो उसका ब्रह्मांड रक्षक दल की रेडियो फ्रीक्वेंसी ऑन थी और तिरंगा ने सब सुन लिया था।
तिरंगा : अबे मंदिर का घण्टा समझ लिया है क्या कि साला कोई भी बजा कर निकल जाता है। बहुत हो गई बेज़्ज़ती भारी, अब सब मरेंगे बारी बारी।
तभी अचानक से तिरंगा कराहता है।
नागराज: क्या हुआ भाई? किसी ने तेरा लबादा तेरे मुँह पर बाँधकर, तेरी ढाल को तेरे सिर पर रखकर तेरे न्याय दंड से टन टना दिया क्या?
तिरंगा : नहीं बे। मेरे पेट से एक पत्थर गिर गया नीचे।
नागराज(सोचते हुए): पत्थर गिर गया? अबे क्या बके जा रहा है।
तिरंगा (रोते हुए) : अबे यार, ये ससुर चौबे ने इतने पत्थर भर दिए मेरे पेट में के दिन भर उन्हीं को संभालने में लग जाता है। कभी कोई पत्थर इधर गिरता है कभी उधर। कभी कभी तो संडास में बैठे बैठे 2-3 पत्थर गिर जाते है तो लोगो को लगता है कि गरज के साथ ओले भी पड़ रहे हैं। अब इंसान क्राइम फाइटिंग करे कि इन पत्थरों को संभाले। एक बार तो साले नगर निगम वालो ने पत्थर कम पड़ने पर मुझे ही पकड़कर मेरे सारे पत्थर निकाल कर उनसे 1km लंबी सड़क बना डाली थी। ऐसा मेरे साथ ही क्यों होता है। मैं भी आखिर सुपरहीरो हूँ। मेरी भी कुछ इज़्ज़त है समाज में।
नागराज : पूरी दुनिया को दो कौड़ी की शायरियां सुना कर आत्महत्या को प्रेरित करने वाले भी अब समाज में इज़्ज़त की बात करते फिर रहे हैं।
तिरंगा : साले मेरी शायरियों को कुछ ना कहना बे।
नागराज : फोन रख रे ससुर के नाती। धंधे के टाइम बकवास ना कर।
उधर नागराज फोन रखता है और उधर चाट वाला नागराज की पीठ पर इंजेक्शन मार कर उसके शरीर का थोड़ा सा जहर इंजेक्शन में भर लेता है।
नागराज (चीख कर): उइ माँ।
नागफनी सर्प(नागराज के अंदर से): कतई छमिया बन गया है ये इंसान। चीखता भी वैसे ही है। हे देव कालजयी कहाँ भेज दिया मुझे। मेरे भी लक्षण इसके जैसे होते जा रहे हैं। कल तो शीत नागकुमार मुझे लइनिया भी रहा था।
नागराज (चिल्लाते हुए): किसने क्या चुभाया मुझे?
चाट वाला : मैंने चुभाया ये इंजेक्शन नागराज भैया। थोड़ा जहर चाहिए था फुल्की वाले पानी में मिलाने को। उस औरत ने ‘और तीखा’ , ‘और तीखा’ कर कर के जीना हराम कर दिया है। अब उसे ऐसा तीखा खिलाऊंगा कि उसे पता चलेग।
ऐसा बोलकर चाट वाला अपनी दुकान पर जाने लगता है।
नागराज : ए ए ए रुक ससुर के नाती। लोगो को मेरा जहर खिलायेगा ।
चाट वाला (घबराते हुए): क्यों क्या हुआ नागराज ?
नागराज : क्या हुआ? (धीमे से) अबे कुछ 100-200 तो पकड़ा के जा साले। बोहनी नहीं हुई सुबह से।
चाट वाला नागराज को 200रुपये पकड़ाता है और वापस अपने ठेले की ओर जाता है।


कोबी(चाट वाले से) : अब कितनी देर लगा दी बे। तब से हिम्मत बांध रहा हूँ बार बार खुल जाए रही है। अब और खुले उसके पहले खिला चाट।
चाट वाला : अरे वो जरा तीखे का इंतज़ाम करने गया था। (मन में) ससुर इस नागराज को थोड़ा सा रोल दो कहानी में और ये पूरा गोइंठा बनकर बैठ जाते है कुंडली मार कर।
जेन (फुदकते हुए) : भैया और तीखा। और तीखा।
चाट वाला : रुक तू रुक अब। तेरा इंतज़ाम करके आया हूँ मैं (इतना कहते ही उसने चाट वाले पानी में नागराज का जहर मिलाया और जेन को दो चार फुल्की पकड़ाई)
ले खा ले हिडिंबा।
जेन कुछ देर वो दो तीन फुलकिया खाती है और वापस चाट वाले के तरफ गुस्सा कर के कहती है।
“भैया ये क्या। और तीखा डालो ना।”
जेन का इतना ही कहना था कि वो चाट वाला वहीं बेहोश होकर गिर पड़ा।

स्थान: विकासनगर का राजदरबार


आज विकासनगर के राजदरबार के बाहर आज औसत से ज्यादा भीड़ थी क्योंकि आज के दिन रानी मोहिनी नगर वासियों की समस्याओं को सुनती थीं और उनके निवारण के प्रयास करती थीं। राजदरबार में रानी मोहिनी पधार चुकी थी। साथ में उनके आस-पास मंत्री, महामंत्री, सेनापति, राजवैद्य, राज्यपण्डित, भोकाल, इत्यादि लोग भी बैठे थे।
राजवैद्य(चुपके से महामंत्री के कान में): महामंत्री जी नमस्कार।
महामंत्री : नमस्कार राजवैद्य जी।
राजवैद्य: महामंत्री जी। एक विकट समस्या उत्पन्न हो गई है। कल से वायु प्रवाह बहुत तेज़ी से हो रहा है।
महामंत्री : ओ अच्छा। ये तो सच में बहुत विकट समस्या है। बताइये मैं क्या सहायता कर सकता हूँ आपकी?
राजवैद्य : जी वो जो अपने विकासनगर में नया डॉक्टर आया है ना उससे जरा मिलने का समय चाहिए था। आपका तो परिचित है। वही मेरी इस समस्या की दवाई बता सकता है।
महामंत्री एक सेकंड को राजवैद्य को घूरकर देखते है फिर बोलते हैं।
“चलिए ठीक है। सभा के बाद आइए।”
राजवैद्य : बहुत कृपा होगी आपकी।
राजवैद्य इतना ही कह पाए कि तभी उनका वायु प्रवाह बहुत तेज़ी से जेट की स्पीड से निकला और उस भयंकर गर्जन की आवाज़ ने पूरे सभा को हिला कर रख दिया। वहां मौजूद सभी कीड़े मकौडों की दम घुटने से तुरंत मौत हो गई।
सभी राजवैद्य की ओर देखने लगे।
राजवैद्य(खिसियानी हँसीं हस्ते हुए): हे हे हे। अरे ये कमबख्त कुर्सी बहुत आवाज़ करती है। बनवाना है इसको।
सभी लोगो ने महामंत्री को शक की निगाहों से घूरा और फिर महारानी की तरफ देखने लगे जो कि कुछ बोलने जा रहीं थी।
रानी मोहिनी : तो मंत्रीगणों और विद्वानों इस सभा की शुरुआत की जाए?
कोई कुछ बोल पाता उससे पहले ही सेनापति चीख पड़े।
” मम्मी , मम्मी , मम्मी।”
सेनापति ऐसा चिल्लाते हुए अपनी कुर्सी से कूद पड़े और ओंधे मुँह जाकर सभागार की सीढ़ियों पर गिर पड़े।
रानी मोहिनी(चौंक कर): क्या हुआ सेनापति जी। आप ऐसे क्यों चिल्लाएं।
सेनापति(अपनी खोपड़िया संभालते हुए बोले): महारानी जी । वो राज दरबार की छत से छिपकली आकर मेरी कुर्सी पर गिर गई।
राजवैद्य(धीमी आवाज़ में): ये हैं हमारे सेनापति। इनके भरोसे है अपने राज्य की सुरक्षा। वाह। भगवान बचाये हम लोगों को।
सेनापति ( राजवैद्य को घूरते हुए): क्या बोले आप?
राजवैद्य :कुछ भी तो नहीं। आप जाकर अपनी कुर्सी पर विराजमान हो जाएं।
सेनापति : नहीं मुझे कुछ सुनाई पड़ा तो मैंने सोचा कि बता दूँ कि वो आवाज़ मुझे कुर्सी की लग नहीं रही थी।
रानी मोहिनी : अमा बैठो जाकर अपनी कुर्सी पर। खोपडी भंजन किये जा रहे हो तबसे। एक तो इतनी गर्मी पड़ रही है और ये पंखे झुलाने वाले भी मरियल हो चले हैं। (पंखा झुलाने वालो से)जान नहीं है क्या तुम लोगो के शरीर में? खा खा कर सांड हुए जा रहे हो एक पंखा नहीं झुलाया जा रहा। मेकअप उतरा ना मेरा बीच सभा में तो उल्टा लटका दूंगी दोनों को।
पंखा झुलाने वाले डर के मारे पंखा तेज़ी से झुलाने लगते हैं।
रानी मोहिनी : हाँ तो किसी को और कोई नाटक नहीं करना हो तो सभा शुरू …..……….
रानी मोहिनी इतना ही बोल पाईं थी कि तभी उनके बगल में खड़े उनके सेवक चिल्ला उठे।
“तो सभा शुरू की जाएं। लोग अपनी समस्या लेकर आएं।”
रानी हड़बड़ा कर सेवकों को देखती हैं।
रानी मोहिनी : अरे विधाता बात तो पूरी बोल देने लिया करो। एक तो दोनों बिल्कुल खोपड़ी पर बैठे रहते हो मेरे और ऐसा चिल्लाते हो कि आदमी हदस जाए एकदम। आइंदा से ऐसे खोपड़ी पर चिल्लाए तो कंटापे कंटाप मारूंगी। दूर जाकर खड़े हो दोनों।
इधर रानी मोहिनी चिल्ला रहीं थी और उधर राज्यपण्डित अपनी कुर्सी पर लोट चुके थे और खर्राटे लेते हुए चौचक नींद ले रहे थे।
सभी राजपण्डित की ओर घूरकर देखने लगते हैं। राजपण्डित के बगल में मौजूद भोकाल उनको हिला कर नींद से जगाता है। राज्यपण्डित हड़बड़ा कर उठते हैं।
रानी मोहिनी(बड़े प्यार से) : क्यों उठ गए? क्यों उठ गए महाराज। अरे सो जाओ। सो जाओ। आओ मेरे खोपड़ी पर बैठ कर लो खर्राटे। ये सभा तो टाइम फोकट करने को बुलाई गई है।
राजपण्डित सकपका से गया और अजीब मुँह बनाकर रानी को देखने लगा।
रानी मोहिनी– (गुस्से से) सो जा। ना ना अबे सो जा तू।
राजपण्डित (सोचते हुए): अच्छा। अब आप इतना कह रहीं है तो सो जाता हूँ।
रानी मोहिनी(चिल्लाते हुए): मतलब एकदम बेशर्म हो गए हो। शर्म लिहाज़ धोकर उसमें चीनी और नींबू डालकर पी गए हो। राजसभा को मज़ाक बना दिया है एकदमै। कोई वायु प्रवाह निकाल रहा है, कोई छिपकली से डरकर कूदे जा रहा है, कोई चौचक सोए जा रहा है।
राजवैद्य: वो कुर्सी की आवाज़ थी महारानी जी।
रानी मोहिनी एक बार घूरकर सबको देखती हैं और फिर सभा आरंभ करने का इशारा करती हैं।
उनका इतना कहना था कि सभी नगरवासी दौड़ते हुए सभाकक्ष में घुसते है और अपनी अपनी खोपड़िया फुड़वा लेते हैं।
रानी मोहिनी: अरे अरे अरे। पगला गए हो का सब एकदम से।
वहां मौजूद सभी सिपाही नगर वासियो को व्यवस्थित करते हैं और उन्हें एक एक कर आगे भेजते हैं।
रानी मोहिनी : बताइये आपकी क्या समस्या है।
नगरवासी 1: समस्या कोई नहीं है। बस घर में बीवी ने लतिया कर भगा दिया तो सोचा राजदरबार हो चलें थोड़ा मनोरंजन हो जाएं।
सभा में मौजूद सभासद एक साथ बोल उठे : अरे भाई भाई भाई भाई।
महामंत्री : ये तो हम में से एक निकला।
रानी मोहिनी(गुस्से में): ऐसा चमाट मारूंगी ना कि थोबड़ा थोबड़ी हो जाएगा। सैनिकों बलभर मारो इस आदमी को। मज़ाक़ बना कर रख दिया है।
सैनिक उस आदमी को खोपचे में ले जाते है और अगला आदमी आगे आता है।
नगरवासी 2: मेरा पड़ोसी मेरी बीवी को भगा ले गया।
भोकाल : बधाई हो। ये सब तो तो ठीक है। मगर समस्या क्या है तुम्हारी?
सभी भोकाल को घूर कर देखते हैं।
भोकाल (सकपका कर): अरे मेरा मतलब था ………….
रानी मोहिनी (भोकाल की बात बीच में काटते हुए): तुम्हारा मतलब हम अच्छे से समझ रहे हैं। तुमको ….……..
रानी मोहिनी अपनी बात पूरी कर पातीं उससे पहले ही सभा मे मौजूद बर्मन दा के गुरु श्री तानदेब साहब जो कि विकासनगर राज्य के मुख्य गायक और वादक थे उन्होंने सुर छेड़ा।
तानदेब : भोकाल जी के दर्द पर प्रस्तुत है ये नगमा।
हो ओ ओ ओ। दिल की तन्हाई को आवाज़ बना लेते हैं,
दिल की तन्हाई को आवाज़ बना लेते हैं, दर्द जब दिल से गुजरता है तो गा लेते हैं।
सभा में मौजूद सभी लोगों ने तालियों की गड़गड़ाहट से तानदेब साहब की तारीफ की।
रानी मोहिनी (गुस्से में): अरे बंद करो चीमड़ लोगों। कतई कोठा बना कर रख दिया है राजसभा को। का रे तानदेब महाशय मतलब। जब हम कहते हैं कोई धुन सुनाने को तब तो ससुर एक सुर नहीं निकलता है और आज कतई ताने दे रहे हो।
तानदेब: जी वो फ्लो फ्लो में बाहर आ ही जाता है, सुर है साहब छलक कर बाहर आ ही जाता है।
सभी एक साथ : वाह साहब वाह। क्या शेर सुनाया है। दो चार और हो जाएं इसी बात पर।
महारानी : अरे कर्मजलों। थोड़ा तो शर्म कर लो। महारानी सामने बैठी है थोड़ी तो इज़्ज़त दे दो ।
सभी शांत होकर बैठ जाते हैं।
रानी मोहिनी : हाँ तो बताओ ………
रानी मोहिनी इतना ही कह पायीं थी कि तभी राजवैद्य के वायु प्रवाह ने एक बार फिर से वातावरण में तबाही मचा डाली।
रानी मोहिनी (नाक दबा कर बोलते हुए): ऊं हूँ। ऐसे कौन करता है यार। ऐसी विध्वंसक शक्ति हमारे राज दरबार में बैठी हुई है। दादा रे दादा। आज तो मर ही जाऊंगी मैं। मार डाला रे मार डाला।
उस वायु प्रवाह की तीव्रता इतनी थी कि सभा मे बैठे आधे से ज्यादा लोग बेहोश होकर टप्प टप्प गिरे जा रहे थे।। भोकाल ने किसी तरह अपनी भोकाल शक्ति से अपने आप को बेहोश होने से बचाया था।
राजवैद्य (धीमी आवाज़ में): कुर्सी थी महारानी।
रानी मोहिनी बेहोश होकर अपने सिंहासन पर लम्बालेट हो चुकी थीं। महामंत्री ने किसी तरह अपने आप को बेहोश होने से बचाये रखा और बोले।
“महारानी बेहोश हो चुकी हैं। आज की ये सभा यहीं स्थगित की जाती है। अब ये सभा किसी दूसरे दिन रखी जायेगी। महारानी को इनके कक्ष में ले जाएं। सभागार के कोने कोने को साफ किया जाए और राजवैद्य महोदय आप यहाँ से तत्काल प्रस्थान लें वरना अगली बार आपने कुछ कर दिया तो प्रलय ही आ जानी हैं।”


स्थान : असम के जंगल


भेड़िया पिछले 15 मिनट से बहुत ही कठोर साधना में लिप्त था। उसने ना इतनी देर से एक भी बूंद पानी पिया था ना ही अन्न का एक दाना ग्रहण किया था। वो जेन को पाने के लिए भेड़िया देवता का आवाहन कर रहा है। वो उनसे प्राप्त करके जेन को पाने का मार्ग ढूढना चाहता था।
कुछ ही क्षणों बाद भेड़िया की 15 मिनट लंबी और कड़ी तपस्या से प्रसन्न होकर भेड़िया देवता प्रकट हो चुके थे।
उनके प्रकट होते ही भेड़िया के आसपास खड़े उसके भेड़िया मित्र बोले।
“एकदम ख़लीहर ही है का ये ? कोई काम धंधा है नहीं प्रकट हो गए धम्म से।”
भेड़िया देवता : उठो वत्स। हम तुम्हारी इस 15 मिनट की कठोर साधना से प्रसन्न हुए हैं। मांगो क्या वरदान चाहिए। बस पैसा ना माँगना। सारा धन नोटबन्दी में स्वाहा हो गया। इतनी जद्दोजहद से इन्ही जंगलों की जड़ी बूटियां बेच बेच कर पैसा जुटाया था। सब ले गयी ये सरकार। अरि मोरी मइया। सरकार हाय हाय।
भेड़िया(चौंक कर): प्रभु। बहुत जल्दी दर्शन दे दिया आपने तो। मैं तो 15 मिनट और साधना करने के दृढ़ निश्चय के साथ आया था आज।
भेड़िया देवता(दांतो को साफ करते हुए): क्या करें बे। एकदमै ख़लीहर हो चुके हैं हम। कौनो काम धंधा है नहीं। दिन भर नल्लों की तरह बैठने से अच्छा सोचा दो चार लोगों को दर्शन दे दिया जाए। कुछ कमाई भी हो जाएगी। (धीमे स्वर में) बीवी ने भी निक्कमा कहकर जूतों से सुताई कर दी आज तो। मेरा भी आत्मसम्मान जागा। शाम से पहले घर नहीं लौटूंगा आज)। खैर ये सब बातें तो होती रहेंगी। तुम बताओ कैसे याद किया। आक थू। कल की सब्जियां अभी भी दांतो में फंसी हुई थी। अब साफ लग रहा है दांत।
भेड़िया : हे भेड़िया देवता। मेरे स्कूल में जेन नाम की एक सुंदर कन्या ने आज ही स्कूल में एडमिशन लिया है। मैं उसके प्यार में बिल्कुल ही पागल हो चुका हूँ। आप मुझे कोई तरीका बताएं उसको अपनी प्रेमिका बनाने का।
भेड़िया देवता : अरे रोहित मेहरा के चेले। आज तक, रिकॉर्ड है साला आज तक तूने मुझे कभी याद जो किया होगा। और आज देखो साले आज तक पेपर में अच्छे नम्बर लाने को मेरी याद नहीं आई तुझको। लड़की का चक्कर आते ही मेरी याद आ गई। अर्ज़ किया है, जरा गौर फरमाइयेगा :
पढाई लिखाई कर ले बेटा, यही किताबें तेरा भविष्य उज्ज्वल कर जाएंगी
ये लड़की नाम की बला है पगले, आज मेरा काटा है कल तेरा भी काट कर जाएंगी।
भेड़िया के मित्र एक स्वर में : वाह उस्ताद वाह । क्या सुनाया है। वाह। मज़ा ही आ गया।
भेड़िया देवता : शुक्रिया दोस्तों। मुझे हमेशा लगता था कि मेरे अंदर ये टैलेंट है। आप लोगों की तालियों ने मेरी उस सोच को और पक्का कर दिया।
भेड़िया(गुस्से में): क्या भेड़िया देवता। कतई मुशायरा शुरू कर दिया। मेरी मदद करनी है तो करिए वरना वापस जाइये।
भेड़िया देवता : अच्छा। उसकी फोटो दिखा जरा।
भेड़िया : क्यों भला।
भेड़िया देवता : अबे दिखा ना ससुर। कतई मरे जा रहा है।
भेड़िया अपने कच्छे में हाथ डालकर जेन की फ़ोटो निकाली और भेड़िया देवता की ओर बढ़ा दी।
भेड़िया देवता (घिन्नते हुए): ऊं हूँ। दूर रख फ़ोटो। मलिच्छ हो गया है एकदम। कच्छे में कौन फ़ोटो रखता है बे ।
भेड़िया : का करें अब। इस ससुरी स्किन टाइट पैंट में एक्को जेब तो है नहीं। सामान रखें तो रखें कहाँ।
भेड़िया देवता : तो तुम साले उसे कच्छे में रख लोगे। हद मचा दिए हो यार।
भेड़िया : आप फ़ोटो देखो ना प्रभु।
भेड़िया देवता : दूर दूर रखियो। (फ़ोटो को गौर से देखते हुए) क्या चीज़ है यार क्या चीज़ है। अर्ज किया है जरा गौर फरमाइयेगा :
ये फ़ोटो देख कर इस दिल में उठी है ये अंगड़ाई
इसके जैसी हमें मिलती तो बना लेते अपनी लुगाई।
सब भेड़िया देवता को घूर कर देखते हैं।
भेड़िया देवता : अरे तालियां तो बजा देते यारों। इतना बेहतरीन नगमा सुनाया है।
भेड़िया के दोस्त: ठरकियों की शायरी पर ताली नहीं बजाते हैं हम जनाब
मौका मिलते ही जूतों से सूत देते है उसे हम बेहिसाब। बेहिसाब।
भेड़िया देवता (सकपका कर) : (गला साफ करते हुए) अहम ऊहम। तुकबन्दी अच्छी नहीं बैठी आप लोगो की मगर आप लोगों की भावनाओं को मैं भली भांति समझ चुका हूँ। (भेड़िया से) भाई मेरे, मैं मदद करूँगा तेरी।
भेड़िया(खुश होकर): प्रभु। आपकी बहुत कृपा होगी। आप बताइए मुझे क्या करना होगा।
भेड़िया देवता : सबसे पहले तुझे प्रेम के इस जंग में उतरने से पहले खुद को तैयार करना होगा। तुझे अपने आप को हर तरीके से तैयार करना होगा । क्योंकि किसी ने कहा है : ये इश्क नहीं आसां बस इतना समझ लीजिए,
एक आग का दरिया है और डूब कर जाना है।
भेड़िया देवता घूम कर तारीफ के कुछ शब्द सुनने को भेड़िया के दोस्तों की तरफ देखते हैं मगर वो सब अभी भी उनको तबियत से घूर रहे होते हैं।
भेड़िया : मगर मुझे कौन तैयार करेगा प्रभु। आप करेंगे?
भेड़िया देवता : नहीं रे पगले। मैं इतना गुणी होता तो देवता होकर भी जूते क्यों खाता।
भेड़िया के सभी दोस्त (एक स्वर में): अपने कर्मों के कारण।
भेड़िया देवता उनको घूरते हैं और फिर वापस अपनी बात पूरी करते हैं।
“तुझे इस प्रेम की परीक्षा में अव्वल दर्जे से पास कराने के लिए तुझे परीक्षित करेंगे ‘महाबली भोकाल’।’
भेड़िया : महाबली भोकाल।
भेड़िया देवता : हाँ वत्स। महाबली भोकाल। इन्होंने प्रेम के क्षेत्र में बड़े बड़े झंडे गाड़े हैं । तू इनसे शिक्षा प्राप्त करेगा तो तू भी गाड़ेगा, झंडे। अभी जरा अपनी बीवियों से परेशान चल रहा है। मगर इसकी क्षमता पर मुझे कोई शक नहीं है। (धीमे स्वर में) पता नहीं कौन इनको तीन शादियां करने को कह दिया। यहां एक नहीं संभाली जा रही है हमसे। रोज़ जूते खा रहे हैं तबियत से। (भेड़िया से) मुझे पूर्ण विश्वास है कि भोकाल तुम्हें इस प्रेम परीक्षा में अव्वल दर्ज़ों से पास कराएगा।
भेड़िया(खुशी से दांत चियार कर): मैं तैयार हूँ प्रभु। मैं भोकाल देवता से प्रेम के सारे पाठ पढ़ने को तैयार हूँ। मैं जेन को पाकर ही रहूंगा।
क्रमशः

क्या होगा कोबी का ? भेड़िया भोकाल से कौन सी शिक्षा प्राप्त करेगा ? भोकाल कैसे तैयार करेगा भेड़िया को? भोकाल की 3 बीवियां उसकी क्या हालत करेंगी ? जानने के लिए इस हास्य से भरी प्रेम गाथा का अगला भाग।

कमर प्रेम (भाग 1 : प्रेम अंकुरण)


लेखक : दिव्यांशु त्रिपाठी


भेड़िया : साले तू सुबह-सुबह नाश्ता करके क्यों नहीं आता है। मैं बता रहा हूँ आज तेरे पापड़ी के चक्कर में हम लोग क्लास के लिए लेट हो जाएंगे। आज फिर मेरे पिछवाड़े पे वो बेंत लगेगी। हाय हाय। भाई बहुत ज्यादा लाल हो जाता है। अभी कल की ही लाली नहीं जा पायी है ढंग से।
कलुआ भेड़िया : अबे तू कितना रोता है यार। मैं भी तो रोज़ बेंत खाता हूं। मुझे तो कोई दिक्कत नहीं है।
भेड़िया : ते साले फौलाद का पिछवाड़ा लेकर पैदा हुआ है तो मैं क्या करूँ। भाई सच कह रहा हूँ आज सुबह टट्टी करने में पेशाब निकल आई। इत्ती जोर से मारा था कल उस बुड्ढे ने। हाय।
कलुआ भेड़िया : मेरी तो रोज़ निकल जाती है। उसमें क्या नई बात है।
भेड़िया कलुआ को एक कंटाप मारता है।
भेड़िया : भावनाओं को समझ साले।
कलुआ भेड़िया : अबे रोना बंद कर और चल बैठ । चलते है स्कूल।
दोनो जल्दी से जल्दी स्कूल पहुंचते हैं और फिर अपनी क्लास की तरफ दौड़ लगाते है। क्लास में उनके शिक्षक मिस्टर फूजो पहले से मौजूद रहते हैं। वो उन दोनों की तरफ देखते है और एक काइयां वाली मुस्कान देते है।
मिस्टर फूज़ो : आ जाओ मेरे सपूतों, मेरे जिगर के टुकड़ों, प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के समान उज्ज्वल लौंडो। आ जाओ।
तभी क्लास के अंदर से एक छात्र गाना गाता है।
“आइये , आपका , इंतज़ार था। देर लगी आने में तुमको शुक्र है फिर भी आये तो।”
मिस्टर फूज़ो : ओहहो वाह। नहीं नहीं वाह। अरे अपनी क्लास में तो शानू दा भी है। भाई लफ़ंडर, टुच्चे, कामचोर, आलसी, मलिच्छ ही सही, मगर टैलेंट है लौंडो में। बाहर आओ जरा तुम्हारा सा रे गा मा , पा धा नी सा करता हूँ अभी। आ जाओ बेटा। शरमाओ नहीं। और तुम दोनों (भेड़िया और कलुआ भेड़िया की तरफ देखकर)। सच बता रहा हूँ मैं तुम दोनों की लत लग चुकी है मुझे। तुम दोनों को कूटे बिना चैन नहीं पड़ रहा था। अपच सी हो गयी थी। अब आ गए हो तो सब सही हो जाएगा।
भेड़िया : सॉरी सर। आज जरा बाइक का तेल खत्म हो गया था इसलिए लेट हो गई।
मिस्टर फूज़ो: अरे कोई नहीं बेटा। होता रहता है। तुम ऐसा करो जरा वो सामने जो बेंत रखी है वो लाओ जरा। उसकी मजबूती जांचनी थी मुझे।
कलुआ भेड़िया दौड़ कर जाता है और बेंत ले आता है।
मिस्टर फूज़ो: वाह। बड़ी जल्दी है तुम्हें लगता है। आओ पहले तुम ही आओ प्रसाद ले जाओ।
कलुआ भेड़िया मज़े में बेंत खाकर अपने सीट पर जाकर बैठ जाता है।
मिस्टर फूज़ो उसको हैरत भरी निगाहों से देखते हैं। क्या बे कोई फर्क ही पड़ा इसको तो। बेंत खा खा कर नशेड़ी हो गया है एकदम।
मिस्टर फूज़ो : आओ भेड़िया बेटा। तुम्हारी बारी आ गयी।
भेड़िया धीरे-धीरे आगे बढ़ता है ।
मिस्टर फूज़ो : क्या हुआ बेटा? पैर उठ नहीं रहे क्या जल्दी जल्दी?
तब तक क्लास के शानू दा फिर गाना गाने लगते है।
“पैरों में बंधन है,पायल ने मचाया शोर। सब दरवाज़े कर लो बंद देखो आये, आये चोर।”
मिस्टर फूज़ो : अरे शानू दा ने तो एक और गाना पेल दिया। अब तो और ऊंचा सुर निकलेगा। (भेड़िया की तरफ देखकर) अरे तुम खड़े हो गए। चलो इधर आओ जल्दी से और भी काम है मुझे ।
तभी दूर से कुछ छात्रों का झुंड आता हुआ दिखाई पड़ता है। कोबी उस झुंड के सबसे आगे चल रहा था और वो मिस्टर फूज़ो की क्लास की तरफ ही बढ़ रहा था।
मिस्टर फूज़ो : ओहहो। आज तो इनके दीदार हो गए। ईद का चांद हो गए थे। रास्ता भटक गए क्या कोबी।
कोबी : अरे आप ऐसा क्यों कह रहे हैं सर।
मिस्टर फूज़ो : आज क्लास में कैसे आना हो गया? पिछली बार कब देखा था याद नहीं, मगर अब आ गए हो तो तुम भी प्रसाद ले जाओ। आओ लग जाओ लाइन में।
कोबी : हां सर बिल्कुल। मैं तैयार हूँ।
मिस्टर फूज़ो : इस लौंडे की डेडिकेशन देखकर आँखों से आँसू निकल आये। तुझे तो एक एक्स्ट्रा दूंगा मेरे लाल। आ जा। ( भेड़िया की तरफ देखकर) कित्ता समय लेगा भाई तू खड़ा होने में। अब हो भी जा और न तड़पा।
भेड़िया दीवार की तरफ मुँह करके खड़ा हो जाता है मिस्टर फूजो मारने के लिए बेंत उठाते हैं तभी भेड़िया चीख पड़ता है।
मिस्टर फूज़ो : अबे पागल है क्या बे। डरा दिया। इत्ता तेज़ चिल्लाता है कोई। मैंने तो अभी मारा भी नहीं।
भेड़िया : फील आ गयी सर।
मिस्टर फूज़ो : तुझे रियल फील देता हूँ। तू खड़ा हो।
मिस्टर फूज़ो मारने वाले होते है तभी एक प्यारी सी आवाज़ उनका ध्यान अपनी और खींच लेती है।
” Excuse me sir. क्या ये 10th क्लास है।”
मिस्टर फूज़ो : जी बेटी। ये 10th क्लास है। तुम कौन हो ?
“मैं जेन हूँ। इस स्कूल मैं नई आई हूँ। आज मेरा पहला दिन है।”
मिस्टर फूज़ो : अच्छा अच्छा। हां बताया था प्रिंसिपल मैम ने। आ जाओ बेटी। जाओ क्लास में बैठो। आज पहला दिन है इसलिए ठीक है । कल से समय से आना।
जेन : जी सर। थैंक यू सर।
जेन क्लास के अंदर चली जाती है और इधर भेड़िया और कोबी की आँखें और मुँह खुले के खुले रह जाते है। इत्ती खूबसूरत लड़की उन्होंने आज तक नहीं देखी थी। अब तक तो दोनों के मन में जेन को पटाने की तरकीब भी आनी शुरू हो गई थीबकि तभी मिस्टर फूज़ो की आवाज़ उनके ध्यान को भंग कर देती है।
“अरे तनिक इधर भी ध्यान देइ दो मालिक। तब से खड़े है।”- मिस्टर फूज़ो
कोबी और भेड़िया दोनों का ध्यान अभी भी जेन से हट नहीं रहा था। वो क्लास के अंदर जाकर आगे वाली सीट पर बैठ गई थी।
मिस्टर फूज़ो से अब रहा नहीं गया और उन्होंने लपेट कर एक एक बेंत रसीद की कोबी और भेड़िया को।
दोनों एक साथ चीख पड़े- “अरे मम्मी रे…….”
मिस्टर फूज़ो : मज़ा आया। बताओ यार कोई इज़्ज़त ही ननहीं रह गई है। तब से खड़ा हूँ मारने को कोई ध्यान ही नहैं दे रहा है। पढाई में तो कभी नहीं लगा इन सब का मन अब कुटने में भी नहीं लग रहा है। हद्द ही हो गई है एकदम। अरे किसी काम लायक तो बन जाओ ससुरो। जाओ अपनी अपनी सीट पर बैठो।
कोबी और भेड़िया क्लास के अंदर घुसे। दोनों लगातार जेन को ही घूरे जा रहे थे और इसी चक्कर मे दोनों दीवार से टकराए और धम्म करके गिर पड़े।
मिस्टर फूज़ो (हाथ पर सिर मारते हुए): अरे मतलब अंधे भी हो गए है ससुरे। का रे एकदमे डिफेक्टेड ही पैदा हुए रहे का तुम दोनों। कुछ बोलो तो सुनाई नहीं पड़ता है , कुछ लिखने को कहो तो लिखा भी नहीं जाता है , दिमाग तो हैय्ये नहीं है और अब देखो अंधे भी हो गए । बताओ सुबह – सवेरे भक्क रोशनी में औंधे मुँह गिरे जा रहे हैं। साला क्लास को कॉमेडी शो बनाकर रख दिया है यार। बताओ रोज़ क्लास का 15-20 मिनट कॉमेडी ही होती रहती है।
गुस्से में फूज़ो बाबा ने डस्टर से ब्लैक बोर्ड मिटाया और आज के पढाये जाने वाले पाठ का नाम लिखा।
मिस्टर फूज़ो : अच्छा तो मैंने कल तुम लोगो को जो पाठ पढ़ने को बोला था वो पढ़ के आये तुम सब।
कोई कुछ जवाब दे पाता उससे पहले ही मिस्टर फूज़ो बोल पड़े।
“कोई पढ़ के नहीं आया। नालायक ही रह जाओगे तुम सब।”
मिस्टर फूज़ो: तो आज का पाठ पढ़ेंगे असम के जंगल की सबसे पुरानी प्रजाति ‘बौड़म प्रजाति’ के बारे में। ये प्रजाति यहां की मूल निवासी नहीं थी। ये यहां पर ऐसे ही एक दिन रात का खाना खाकर ऐवें ही टहलने निकले और इन्होंने इस जगह की खोज कर दी। उनके इस भ्रमण मात्र से ही यहां के कई जीवों और वनस्पतियों का अंटा गफिल हो गया। उस रात दरअसल इन्होंने एक जबर पार्टी रखी थी और ख़ूब भर भर कर खाना पेला था। उसी खाने को पचाने वो यहां पर टहलते टहलते पहुंच गए और फिर यहां आकर इन्होंने जो दुर्गंध मचाई ना मतलब की एकदमे कहर ढा दिया था उस रात। यहां के सारे जीव और वनस्पतियां तुरन्ते टपक गए। पाद पाद कर मौत का तांडव मचा डाला था इन लोगों ने। एकदम हरे भरे जंगल को पाद पाद कर बंजर बना डाला। ऐसी दैवीय शक्ति थी इनके पाद में। फिर जब इनका पेट हल्का हुआ और दिमाग काम करने लायक हुआ तो इन्होंने देखा कि अरे हमने तो एक नई जगह की खोज कर डाली। इन्होंने आस पास घूम कर देखा तो जीवों और वनस्पतियों को मरा पाया। इनको जरा भी अंदाज़ा नहीं था कि ये मौत का तांडव इन्होंने मचाया था। धीरे-धीरे ये लोग इस जंगल में बसने लगे और इस तरह ये प्रजाति हमारे जंगल की पहली प्रजाति बना।


कोबी और भेड़िया अभी भी एक टक जेन को निहारे जा रहे थे। मिस्टर फूजो की नज़र उन पर पड़ी और वो एकदम भन्ना गए।


मिस्टर फूज़ो ( कोबी और भेड़िया के ऊपर चिल्लाते हुए): बैठ जाओ। उसके सिर पे कुंडली मार कर बैठ जाओ।
कोबी और भेड़िया ने अभी भी उनकी ओर ध्यान नहीं दिया और एकटक जेन को घूरते रहे। मिस्टर फूज़ो का दिमाग अब हाइपर भन्ना गया था। उन्होंने आव देखा ना ताव भेड़िया को डस्टर फेंककर मारा।
भेड़िया बिल्कुल हड़बड़ा उठा और मिस्टर फूज़ो की तरफ देखने लगा। मगर कोबी पर अभी भी जूं तक नहीं रेंगी थी।
मिस्टर फूज़ो (गुस्से में) : एक तो इन स्कूल वालों से कहता हूँ कि एक से ज्यादा डस्टर दिया करो। बताओ एक समय में 2-3 लड़को को कूटना हो तो डस्टर कम पड़ जा रहे हैं। ए चमगादड़ (भेड़िया की और इशारा करते हुए) वो डस्टर लाओ जो अभी फेंक कर मारा मैंने तुम्हें।
भेड़िया के कुछ बोलने से पहले ही कलुआ बड़ी मासूमियत से बोल पड़ा।
“फूज़ो सर, वो चमगादड़ नहीं भेड़िया है ।”
मिस्टर फूज़ो : ओ हो हो हो। वाह, नहीं नहीं वाह। कोई नोबल पुरस्कार ले आओ भाई। पहली बार मेरे लाल के मुँह से कुछ फूटा है। अच्छा मेरे लाल ये बता की चमगादड़ कैसे होते है ?
कलुआ(काफी देर सोचने के बाद): वो रात में जागते है पेड़ों से उल्टा लटकते हैं ऐसे कुछ ही होते हैं।
मिस्टर फूजो : तो सोच मेरे लाल की तुम सब चमगादड़ों में और उन सब चमगादड़ों में कोई अंतर है? नहीं ना।(भेड़िया की तरफ देखकर) एक तो इस कामचोर से एक काम नहीं होता है। का बे, तुमसे कब से कहे हैं डस्टर लाने को। का कर का रहे हो तुम ?
भेड़िया(इधर उधर नज़र घुमाते हुए): अरे फूज़ो सर हेरा गया डस्टर।
मिस्टर फूज़ो (दहशत में जाते हुए): अबे ऐसा ना बोलो यार। अबे ढूंढ दे भाई। अरे वो प्रिंसिपल जान ले लेगी मेरी। बड़ी खूंखार है यार। खून सुखा देगी मेरा। पिछली बार जब चॉक खोया था तो (मिस्टर फूज़ो सोच में डूब गए और उन्हें प्रिंसिपल का डरावना चेहरा याद आने लगा और वो अचानक ही चिल्लाये) उइ माँ। अरे वो मार डालेगी, मार डालेगी। अबे कहाँ खोआ दिया यार। सालो सलीके से मार भी नहीं खा पाते हो। अरे बड़ी जालिम औरत है यार। सुखा देगी यार मुझे मार मार के।
तभी क्लास के सानू दा के मुँह से गाना फूट पड़ा।
“जिंदगी मौत ना बन जाये संभालो यारो, जिंदगी मौत ना बन जाए संभालो यार, खो रहा चैनों अमन…..”
मिस्टर फूज़ो (क्लास के शानू दा को बीच मे ही टोकते हुए):अरे मेरे लाल,मेरे पीले। कुछ दूसरा गाना गा ले। हैं, मौत मौत गाना जरूरी है।
शानू दा(क्लास वाले):जी सर।
“मौत आनी है आएगी एक दिन, अरे जान जानी है जाएगी एक दिन, मुस्कुराते हुए दिन बिताना यहां कल क्या हो किसने जाना।”
मिस्टर फूज़ो ( पींपिनाते हुए बोले): अरे यार। तुझे मौत पे ही गाना याद है क्या बे। कुछ ढंग का गाना गा दे। यहां मेरी जान ऐसे ही सूखी जा रही है। कुछ ढंग का गाना गा दे।
शानू दा(क्लास वाले):जी सर।
“मौत से क्या डरना,क्या डरना, क्या डरना। मौत से क्या डरना, उसे तो आना है, दो पल की जिंदगी है, हमें अपना फर्ज निभाना है।”
मिस्टर फूज़ो ( झल्लाते हुए बोले):चुप। एकदम चुप हो जा अब तू। अब एक शब्द ना निकलियो अपने मुँह से। ससुर पनौती कहीं का। एक ढंग का गाना नहीं गाया जा रहा है। तब से मौत मौत लगाया हुआ है ससुरा। अच्छे खासे जवान आदमी को मारा जा रहा है। अभी मेरी उम्र ही क्या हुई है….
पूरी क्लास एक साथ बोलती है: जंगल के बुजुर्ग क्लब के सबसे बुजुर्ग मेंबर हो आप।
मिस्टर फूज़ो: चुप करो बेहुदो। एक काम तो होता नहीं है। चपड़ चपड़ जबान बहुत तेज़ चलती है।
तभी बीच में कलुआ भेड़िया बड़ी मासूमियत से बोला।
“मगर प्रिंसिपल मैडम तो आपकी पत्नी हैं फूज़ो सर। फिर क्या डर?”
मिस्टर फूज़ो (जिनकी जान अभी तक डस्टर ना मिलने से सूख चुकी थी): तू साले डरा रहा है मुझे। याद दिला दिला कर डरा रहा है मुझे तू। डस्टर खोज जल्दी से। अगर आज मेरी मौत आई तो तुम दोनों को मार डालूंगा। जानता भी है कि पत्नी माने होता क्या है ?
कलुआ भेड़िया : नहीं सर। मैं नहीं जानता।
मिस्टर फूज़ो: ‘पत्नी’। ये शब्द एक शब्द नहीं अपने में पूरा वाक्य है। एक ऐसा वाक्य जो जब किसी की जिंदगी में आता है तो अपने सारे वाक्य भूल जाता है क्योंकि ‘पत्नी’ के आने के बाद उसके जीवन में उसके मुंह से निकले किसी भी वाक्य का कोई मतलब नहीं रह जाता है। ‘पत्नी’ के आने के बाद उसके समस्त वाक्य गलत ही होते हैं और अगर ईश्वर ना करे कि कभी उसका कोई वाक्य सही हो जाये तो उसे जिंदगी भर उस एक वाक्य के लिए न जाने कितने वाक्य सुनने पड़ते हैं।
‘पत्नी’ शब्द दो शब्दों से मिलकर बनता है ‘पता’ और ‘नी’। अर्थात की ‘पता नहीं’। मतलब तुम देख रहे हो कि ससुर ये बिचारा शब्द को भी ‘पता नहीं’ चला कि इस बला को क्या कह कहकर संबोधित किया जाए । इस सृष्टि के निर्माण से आजतक कोई इस ‘पत्नी’ नामक बला को समझ नहीं पाया है। तो ससुर हम किस खेत की मूली हैं। ये ढाई शब्द तुझे बहुत छोटे लग रहे होंगे मगर ये है बड़े डरावने। तुझे क्या लगता है कि यमराज ने ‘सत्यवान’ की जान क्यों बक्श दी। ‘सावित्री’ के कहने से। भक्क। अबे यमराज ने देखा कि ससुरा ये इंसान तो बड़ी चालाकी दिखा रहा है। मरकर बड़ी जल्दी पीछा छुड़ा रहा है अपनी पत्नी से और साला यहां हम जन्म जन्मांतर से रेले जा रहे है । ऐसे कैसे ससुर। इसको तो जिंदा करके ही छोड़ेंगे। बहुत चालाकी पेल रहा है ये मनुष्य और बताओ कि हनुमान जी ने विवाह क्यों नहीं किया। श्री राम की सेवा तो वो ऐसे भी कर लेते। असल कारण में बताता हूँ। याद है हनुमान जी को एक बार सभी देवी और देवता आशीर्वाद देने आए थे। पता है आशीर्वाद देते हुए समस्त देवताओं ने उनसे क्या कहा। “बेटा हनुमान अगर तुम्हें जीवन मे खुश रहना है तो कभी शादी मत करना। हमारी हालात देखकर समझ जाओ की शादीशुदा मर्द की क्या दुर्दशा होती है और हाँ हमारी पत्नियों से कुछ मत कहना मेरे लाल वरना हमारी मौत निश्चित है । अमृत वमृत कुछ काम नहीं आएगा। “
इस पत्नी नामक बला के कुछ प्रमुख लक्षण बताना चाहूंगा।

1.ध्यान से सुनना ।इनका प्रमुख कार्य होता है पतियों का जीना हराम करना। इन्हीं से इनको जीने लायक प्राणऊर्जा मिलती है।

2.हमारे पुराणों में कहा गया है कि ये गृह कार्य में बिल्कुल दक्ष रहतीं है। बिल्कुल सही लिखा है। ये बिल्कुल गृह कार्य में दक्ष रहती हैं। इन्हें भली भांति पता होता है कि कब किस गृह कार्य मे पति को काम पे लगाना है। कैसे उनको बिना पगार वाला मज़दूर बनाना है।

3.इन्हें भी जोर से बोलना, कलह करना और झगड़ा करना अति प्रिय होता है। इनके प्रमुख हथियार भयंकर रूदन, अत्यधिक तीव्र स्वर में चिल्लाना और बात बात पर धमकी देकर अपने घरवालों को बुलाना होता है।


4.ये अपने पैसे को बस अपना पैसा समझती है और तुम्हारे पैसे को भी बस अपना ही पैसा समझती है। पैसों से कोई भेदभाव वाला व्यवहार नहीं करती है। ये जबरन में फालतू की चीज़ें खरीदती है और तुम्हारा सारा पैसा उड़ा देती है। मज़ाल तुम्हारी जो तुम चूं भी कर दो।

5.इस बला की विशेषता कर्कश स्वर में चीखना, आक्रमक शैली में धमकाना और समय आने पर तेज प्रहार होता है। इनके प्रमुख हथियार बेलन, झाडू और तुम्हारी चप्पल होती है। बिल्कुल ये अपना चप्पल तुम्हें मारने में जाया नहीं करेगी कभी।


इनके इस प्रकोप से बचने के निम्न उपाय हैं जिनका दृढ़ता से पालन करना होता है।

1.इनके सामने कभी अपना मुँह ना खोलो। सही सुने। बिल्कुल सन्नाटा मार कर बैठो इनके सामने। एक चूं की तुमने और तुम्हारी जान गई समझो।


2..ये जो बोले वही सत्य है। बिल्कुल यही बात है। ये जो भी बोले वही सत्य होता है। इनके सामने ज्यादा ज्ञान मत पेलना कभी वरना तुम्हें पिलाये जाओगे।

3.जब मौका मिले इसके घर वालो की तारीफ कर दिया करो। जब भी लगे कि तुम्हारी जान खतरे में है तुरन्त तारीफों के पल बांधना शुरू कर दो। जीवन बच जाएगा।

4.समय समय पर इसको कुछ ना कुछ उपहार देकर इसको शांत रखा करना वरना तुम्हारे ऊपर चढ़ बैठेगी और कोई ससुर कुछ कर ना पायेगा।
बाकी तुम शादी कर लो बेटा। बाकी ज्ञान अपने आप ही हो जाएगा।

इतना सुनना था कि कोबी हदस के चिल्ला उठा: अबे ढूंढ दे भेड़िये। ढूढ दे। क्या कर रहा है बे। अरे जान लेगा क्या अब इस बिचारे बुड्ढे की। ढूढं साले ढूंढ।
कलुआ भेड़िया(बिल्कुल सकपका कर रोते हुए चिल्लाया): खोज दे भाई। खोज दे। क्या जान लेकर ही मानेगा।
तभी मोटू भेड़िया बोल उठा।
” फूज़ो सर आपने डस्टर को जिस कोण पे फेंका था ?”
मिस्टर फूज़ो (आश्चर्य से): अबे इतना कौन सोचता है भाई फेंकने से पहले?
“सोचना चाहिए था ना फूज़ो सर।”
मिस्टर फूज़ो: अरे कर्मजले । चुप चाप ढूंढ दे। यहां मेरा इतिहास मिटने की नौबत आ गई है और तुझे गणित की पड़ी है।
तभी इस आपाधापी में कोबी अचानक से दौड़कर मिस्टर फूज़ो के पास आया।
“सर सर। ये रहा डस्टर।”
उस डस्टर को देखना ही था कि मिस्टर फूज़ो के आँखों से आँसू निकल आये। उस डस्टर को प्यार से सहलाया और अपने हाथों में लेते हुए बोले।
“तुझे कितना ढूंढा रे पगले। कहां छुप कर बैठा हुआ था। एक बार फेंक कर मार क्या दिया। इतना नाराज़ हो गया। नहीं रे ऐसे नाराज़ नहीं होते हैं। मेरी साँसें अटक गई थी । अब ऐसा मत करना।”
सभी Mr. फूज़ो को बड़े ध्यान से देख रहे थे। उन्हें यकीन हो रहा था कि Mr. फूज़ो का दिमागी संतुलन हिल चुका है। तभी घण्टी बज गई और छुट्टी का एलान हो गया। सभी बच्चे भाग कर क्लास के बाहर निकले। कोबी और भेड़िया जेन के पीछे पीछे उसको निहारते हुए बढ़े चले जा रहे थे।
कोबी: अब देखो तुम सब । मैं जा रहा हूँ जेन से दोस्ती करने। अब देखो तुम लोग की कैसे एक सुंदर लड़की से दोस्ती की जाती है।
कोबी के जयकारे लगाते हुए उसके चेले चपाटे उसके पीछे जा रहे थे। कोबी भी बड़ी भौकाली में जेन से बात करने आगे बढ़ा जा रहा था। जेन भी कुछ दूरी पर खड़ी कुछ लड़कियों से बात कर रही थी। कोबी अब उसके सामने पहुंच चुका था। उसनें मुँह खोलकर उससे हैलो बोलना चाहा मगर मुँह से केवल हवा निकली। उसने थोड़ी हिम्मत बांधी और बोला।
“जेन वो मैं तुमसे….”
उसके आगे बोलने से पहले ही उसके पीछे खड़ा उसका चेला बोल पड़ा ।
“अबे ये गधे की आवाज़ में कौन बोला अभी।”
कोबी ने एक कसकर कोहनी मारी उसको।
“अरे सरदार आप। माफी देइ दयो। मैं समझा कि कोई गधा बोला।”
कोबी ने उसको एक नज़र घूरा और फिर जेन की तरफ बोलने को मुड़ा। मगर उसके कुछ बोल पाने के पहले ही एक आवाज़ जेन के पीछे से आई और जेन उस ओर देखने लगी।
“जेन । तुम आ गई। पहला दिन कैसा रहा तुम्हारा।”
कोबी(अपने चेले के बाल नोचते हुए): कौन है बे ये? क्या कर रहा है यहां पर?
चेला: सरदार ये हमसे एक साल सीनियर है। ये भी आज ही आया है स्कूल में।
जेन उस व्यक्ति को देखकर बहुत खुश हुई और बोली।
“अरे तुम आ गए। तुम्हारा ही इंतज़ार कर रही थी मैं। कहां रह गए थे?”
“अरे बस थोड़ा घूम टहल रहा था । आओ चलो बाहर एक चचा की चाट की दुकान लगी है। चलो वहां चाट खाते है।”
“हाँ चलो।”
जेन खुशी खुशी उसके साथ चाट खाने चली गई और कोबी गुस्से में अपने चेले चपाटों का बाल नोचने लगा।


क्रमशः


कौन है ये व्यक्ति? जेन इसे कैसे जानती है? कोबी और भेड़िया अब आगे क्या क्या गुल खिलाएंगे ? इन सभी सवालों के जवाब आपको मिलेंगे ‘कमर प्रेम’ के अगले भाग में। इंतज़ार करें।

Book Analysis #1

By Dr Piyush Kumar
Novel– The Legend of Prashuraam
Author– Dr Vineet Aggrawal
Publisher – Penguin India

Content– Arjun, the ruler of Mahishmati has been blessed to make a global empire based on principles of dharma. But, Ravan, the asur ruler of Lanka has different plans of his own. Caught in the middle of this conflict, is Ram, son of Yamdagni and grandson of Brahmrishi Vishwamitra, a man who has been blessed to be an Avatar of Vishnu. What occurs in this upheaval will change the world forever!

Analysis
The best of the author so far.
The story starts where Vishwamitra(author’s first novel) left off, and it goes on in a pace that is difficult to comprehend. As a tale of Nabhi varsh, and men who shaped it, this story has everything. From emotion to action, from love to hatred, from good to evil, this story has a perfect balance of everything and and with its twists, turns and action sequences, keeps the reader attached to every single character. Be it a powerful Arjun or a devious Ravan, a concerned Ruchik or a determined Ram, the heroes and anti heroes are beautifully portrayed.
The principles of dharma and different views regarding it are amazingly explained by the author. This is his second book and I will keep it above the first one. There is not a single missed step as far as the story goes. Having researched so deeply and written in such a smooth way, its a must read for those who love mythology or want to know about Hindu gods, Rishis and Maharishis and Kings and queens.
This is not a retelling, but the story of how a rishi’s young son became an avatar of lord Vishnu!
What I liked Eveything about the book
What I disliked– Its size, the novel should have been bigger.

जरूरी है

खतों के रास्ते ही हो

पर पैगाम जरूरी है

वतन के वास्ते ही है

ये ज्ञान जरूरी है

सरहदों पर हैं खड़े कब से

पहचान जरूरी है

एक बंदूक से न हो कुछ भी

सब सामान जरूरी है

हैं खड़े उस ओर नापाक, सब

उनको ये ऐलान जरूरी है

मरोगे डर डर के टुकड़ों में

अगर जान जरूरी है

कहते हो कि तुम सब हो

तो फिर आतंक के साये में

क्या छिपना जरूरी है

देख लेंगे तुम्हारी हदों को हम

तुम्हें ये सुनना जरूरी है

बन्द कर दो ये भ्रम अपना

अगर आसमान जरूरी है

तुम्हारे उतरेंगे कपड़े भी

ये सरे आम जरूरी है

पड़े हैं जो घर के कोने में

वो आवाज ये करते हैं

छेड़ो ना गुनाहगारों को

हर वो भाई जरूरी हैं

कह दो उनको अब तुम

साथ हो गर तुम गुनाहों के

ना बख्शेंगे तुम्हें भी हम

ये ऐलान जरूरी है

ना देखो दर्द इनका अब

ये बेईमान हमेशा हैं

बिठाओ पलकों पर उनको तुम

क्योंकि ये जवान जरूरी हैं

क्योंकि ये जवान जरूरी हैं

ध्रुव की शादी( भाग 1)

रजनी मेहरा ने अब ठान लिया है कि अब वो ध्रुव की शादी करवा के ही मानेगी। और वो लोग ध्रुव का रिश्ता लेके जा रहे है। आइये देखते है आगे क्या होता है।

स्थान : आई जी राजन मेहरा का घर।

आज घर मे बहुत ज्यादा चहल पहल लग रही थी। श्वेता, राजन मेहरा और रजनी मेहरा सभी कहीं जाने के लिए तैयार हो रहे थे। ध्रुव अकेला कोने में बैठा हुआ था।
राजन मेहरा : क्या हुआ बेटा? यहाँ अकेले चुपचाप क्यों बैठे हो।
ध्रुव: आप तो पता है कि मैं यहाँ क्यों बैठा हुआ हूँ। फिर भी पूछ रहे है।
राजन मेहरा : बेटा जो तुम चाहते हो वो नहीं हो सकता।
ध्रुव : लेकिन क्यों ? क्या मुझे मेरी शादी का फैसला लेने का हक नहीं है ?
राजन मेहरा : बेटा हक को मेरा भी बनता था कल दोस्तों के साथ पार्टी करने का, मगर तेरी माँ ने जाने नहीं दिया। एक दिन मिला पार्टी करने का वो भी तेरी माँ ने तेरे मासूम बाप से छीन लिया। कितने मुद्दतों के बाद मिला ये मौका। अब मेरे दोस्त…
ध्रुव ( राजन मेहरा की बात काटते हुए): पापा। यहाँ मेरी शादी की बात चल रही है और आप पार्टी की बात करने लगे।
राजन मेहरा : सॉरी बेटा। दिल का दर्द छलक कर बाहर आ जाता है, दिल जब भी अपने आप को अकेला पाता है।
ध्रुव: अब ल्यो। मुशायरा शुरू हो गया। शेरो शायरी होने लगी।
राजन मेहरा : दर्द है बेटा बहुत दर्द है सीने में ।
रजनी मेहरा(अंदर से): दर्द। कैसा दर्द?
राजन मेहरा( खिसियानी हँसी हस्ते हुए): कुछ नहीं भागवान। ध्रुव के हाथों में दर्द हो रहा है।
रजनी मेहरा : अरे बेटा तूने बताया नहीं।
राजन मेहरा (फुसफुसाते हुए): बचा ले बेटा। अपने बाप को अपनी माँ से बचा ले।
ध्रुव: हाँ माँ। मुझे भी अभी अभी ही पता चला कि मुझे दर्द हो रहा है।
रजनी मेहरा: पता चला। क्या मतलब?
राजन मेहरा: आज तू मेरा जनाजा निकलवा के ही मानेगा।
ध्रुव : मतलब माँ कि अभी-अभी अचानक से दर्द शुरू हुआ।
रजनी मेहरा : अरे तो बैठा क्या है? जा दवाई लगा ले।
ध्रुव: हाँ जाता हूँ माँ।
राजन मेहरा : बचा लिया तूने आज। इन औरतों के कान कितने तेज़ होते हैं। हैं न ध्रुव?
ध्रुव : हाँ सारा पंचौरा आज ही कर लीजिए आप। मेरी बात न सुनिए।
राजन मेहरा : अच्छा बता। मैं क्या करूँ ?
ध्रुव : आप माँ से इस बारे में बात करिये।
राजन मेहरा : एक बात बता बेटा। तू इस घर में कितने साल से है ?
ध्रुव: 28 साल।
राजन मेहरा : तूने इन 28 सालों में कभी भी ऐसा चमत्कार देखा है जो अब ऐसे चमत्कार की उम्मीद कर रहा है। अगर मैं उसे अपनी बात मनवा पाता तो कल मैं अपने दोस्तों के साथ पार्टी के लिए जा पाता। कितने दिनों बाद ये मौका मिला था। मुद्दतो के बाद ये दिन आया था। अब मेरे दोस्त…..
ध्रुव ( राजन मेहरा की बात काटते हुए): हद हो गई है। आप फिर शुरू हो गए।
राजन मेहरा : दर्द है बेटा दर्द। छलक कर बाहर आ ही जाता है।
रजनी मेहरा : अब किसको दर्द हो रहा है ?
राजन मेहरा : अरे कुछ नहीं भागवान। तुम तैयार हुयी कि नहीं।
रजनी मेहरा : हो हुयी।
राजन मेहरा (फुसफुसाते हुए): कितने तेज़ कान है तेरी माँ के ?
ध्रुव (अपना माथा पकड़कर ): ओफ्फो। कुछ नहीं हो सकता मेरा।
तभी घर में नागराज, परमाणु, डोगा, तिरंगा, एंथोनी, भोकाल आ जाते है। सभी नॉर्मल ड्रेस में रहते है।
नागराज : क्या हो गया भाई। क्यों रो रहा है तू।
सभी एक साथ : नमस्ते अंकल।
राजन मेहरा : अब तुम्हीं लोग देखो बेटा इसकी परेशानी।
डोगा : अबे बाथरूम कहाँ है ?
ध्रुव : मेरा साथ देने आया है कि संडास देखने आया है।
डोगा: भाई बहुत जोर से लगी है। पहले इसका साथ छोड़ने दे। फिर तेरा साथ निभाउंगा।
ध्रुव : जा बे। आगे से बाएं।
परमाणु : क्या हुआ बे। क्यों रो रहा है।
ध्रुव : अरे यार तू सब जान ही रहा है। अब माँ को कैसे समझाऊँ ? एक मिनट ये अन्थोनी और भोकाल क्या कर रहे है यहाँ पर। इनको किसने बुलाया।
तिरंगा : भाई इनको पता नहीं कहाँ से पता चल गया।
नागराज : अबे तूने ही तो बताया ध्रुव के मज़े लेते हुए। और इन महाशयों को देखो। एक भाई साब तेरी सिचुएशन का मज़ा लेने के लिए कब्र फाड़ कर आये है तो दूसरे भूतकाल से वर्तमान में आ गए है।
परमाणु ( हंसते हुए ): मज़े वाली बात तो है ही।
ध्रुव एकटक परमाणु को घूरने लगता है।
परमाणु (सकपका के): लेकिन इसकी जिंदगी का सवाल है। तुम सब मज़े ले रहे हो। भाई ये सब तिरंगा ने किया। मुझे क्यों घूर रहा है तू।
ध्रुव : वाह। नहीं नहीं वाह। यहां कॉमेडी सर्कस चल रहा। मज़े लिए जा रहे हैं ।
तिरंगा : सॉरी भाई।
ध्रुव: तुझसे तो मैं बाद में निपटूंगा। अभी जरा रिश्ता देख लूं।
एंथोनी: चल भाई।
ध्रुव : अबे तू तो भूत है। दिन में कैसे आ गया बाहर।
एंथोनी: भाई मेरे दोस्त को जरूरत हो और में न आऊं। ऐसा कैसे हो सकता है।
भोकाल : सीधे बोल न मज़ा लेने आया है।
नागराज : तू तो जैसे कन्यादान करने आया है ?
परमाणु : ये सब बाद में करना भाई। अभी चलो रिश्ता देखने। ये डोगा कहाँ रह गया। मूतने गया है कि नहाने।
डोगा : आ गया भाई । चलो।
ध्रुव : अबे इत्ती देर तू क्या कर रहा था अंदर।
डोगा : भाई फ्लो-फ्लो में सब निकलने लगा तो टाइम लगा गया।
भोकाल : वाह। इनको देखो। टेंशन अपने भाई को है लूज़ मोशन इन्हें हुए जा रहे है।
डोगा : तुझे कभी नहीं हुए क्या बे ?
ध्रुव : हाँ कर लो। सारी टट्टी पेशाब की बातें यहीं कर लो तुम लोग। बैठो सब लोग और कुछ जरूरी काम तो है नहीं किसी को। यही कर लो।
नागराज : अरे भाई भाई भाई भाई। गुस्सा थूक दो भाई। चलो सब।
कुछ देर बाद(माथुर साहब के घर)—
राजन मेहरा के दोस्त माथुर जी के घर सब लोग पधारते हैं।
माथुर : आइये मेहरा साहब आइये। आप ही का इंतज़ार कर रहे थे। बैठिये।
राजन मेहरा : नमस्कार माथुर जी। ये है हमारा बेटा ध्रुव। ये उसकी माँ रजनी मेहरा, ये हमारी बेटी श्वेता मेहरा और ये सब ध्रुव के दोस्त है।
सभी एक साथ : नमस्ते अंकल।
माथुर : नमस्ते बेटा। बैठो सब लोग।
डोगा : ज्यादा देर खड़े रह भी नहीं पाएंगे। पेट की हालत सही नहीं लग रही है। कुछ अपशकुन न हो जाये।
नागराज : अपशकुन का पता नहीं लेकिन तू छीछा लेदर जरूर करवा के मानेगा आज हमारी। साले पेट खराब था तो साथ क्यों आया।
डोगा : दोस्ती की खातिर भाई।
परमाणु : अब या तो तू अपनी दोस्ती निभा ले या तो पेट सम्भाल ले।
माथुर : क्या हुआ बेटा? कोई दिक्कत है क्या?
एंथोनी : है तो नहीं, पर हो सकती है।
माथुर : क्या बोले बेटा ?
भोकाल : कुछ नही अंकल। कुछ नहीं।
माथुर : अच्छा। आप लोग पानी मीठा लीजिये। हमारी बेटी अभी आती ही होगी।
राजन मेहरा : जी। लो सब लोग।
तभी माथुर जी की बेटी कमरे में आती है।
माथुर : लीजिये मेरी बेटी भी आ गई। ये है मेरी बेटी सिमरन।
तिरंगा (धीरे से नागराज से): भाई तू राज वो सिमरन।
परमाणु(धीमी आवाज़ में) : तुझे देखा तो ये जाना सनम।
एंथोनी (धीमी आवाज़ में): प्यार होता है दीवाना सनम।
भोकाल(धीमी आवाज़ में) : अब यहाँ से कहाँ जाए हम।
डोगा (धीमी आवाज़ में): तेरी बाहों में खो जाए हम।
ध्रुव (डोगा तो चपत लगाते हुए): वाह। नहीं नहीं वाह।जुगलबन्दी हो रही है। मुशायरा चल रहा है।
नागराज (धीमी आवाज़ में): भाई इसको मार मत। अभी कुछ निकल गया तो रोके नहीं रुकेगा।
ध्रुव : भग बे घिन्नये हो तुम सब।
माथुर : वैसे बेटा। तुम काम क्या करते हो ?
अन्थोनी : भाई की उसके मुंह पर बेज़्ज़ती कर दी अंकल ने।
ध्रुव : क्राइम फाइटर हूँ मैं।
माथुर : अरे मेरा मतलब। कमाते कैसे हो?
तिरंगा : हाँ भाई तू कमाता कैसे है? काम धन्धा तो करता नहीं है तू।
भोकाल : अबे ये क्या बताएगा। संजय सर से पूछना पड़ेगा। फोन मिलाओ कोई।
माथुर : ये संजय सर कौन हैं ?
नागराज : अरे फाइनेन्सर हैं हमारे।
ध्रुव : अरे मैं बता रहा हूँ ना।
राजन मेहरा : बता बेटा।
परमाणु : संजय सर का फोन लगा। उन्होंने बताया कि उन्हें नहीं पता।
डोगा : अबे भरोसा उठ गया आज मेरा लोगों पर से।
नागराज : बताओ यार। ये भी नहीं पता संजय सर को।
ध्रुव : अरे मैं बताता हूँ न।
रजनी मेहरा : बताओ बेटा।
डोगा : अबे अब बर्दाश्त नहीं हो रहा है।
माथुर : क्या हुआ बेटा ?
अन्थोनी : कुछ देर और भाई । कुछ देर और।
ध्रुव : अंकल मेरे काम के लिए और मेरे रहने खाने के लिए सरकार ने एक ट्रस्ट फण्ड बनाया है। उसी से मेरी कमाई होती है।
भोकाल : सरकारी जॉब वाला लौंडा है। वाह।
एंथोनी: अबे लड्डू में मीठा कम लग रहा है।
नागराज : तू कड़ाही लेकर बैठ जा यहीं पे। बन जा हलवाई।
राजन मेहरा : और आप की बेटी ने क्या पढ़ाई की है माथुर साहब ?
माथुर : अभी-अभी डॉक्टरी पूरी की है। अब प्रैक्टिस करेगी।
एंथोनी: नमकीन अच्छी है।
सब एक साथ उसको घूरते है।
डोगा : अब न हो पायेगा बर्दाश।
माथुर : क्या बेटा ?
तिरंगा : आप रिश्ते की बात चालू रखे अंकल।
माथुर साहब और राजन मेहरा ने आपस में बाकी चीज़ों पर बात की।
माथुर : तो मेरी तरफ से तो ये रिश्ता पक्का समझिए।
राजन मेहरा : हमारी तरफ से भी पक्का ही समझिए।
माथुर : तो आइए मुँह मीठा करते है। लीजिये मिठाई।
एंथोनी: पेड़ा ज्यादा अच्छा बना है।
सभी लोग मुँह मीठा करने लगते है तभी घर के बाहर से एक आवाज़ आती है।
“ये शादी नहीं हो सकती”
ध्रुव : ऋचा तुम।
सभी भौचक्के होकर बाहर देखने लगते हैं।
डोगा : हो गया भाई । हो गया।
नागराज : क्या हो गया?
डोगा : जो होना था हो गया।
भोकाल : कर दिया छीछा लेदर।
डोगा : अबे तो कोई ऐसे सरप्राइज देता है क्या।
क्रमशः
क्या हो पाएगी अब ध्रुव की शादी? या ऋचा तुड़वा सकेगी ये रिश्ता? जानने के लिए पढ़े इस कहानी का अगला भाग

एक ठूँठ

एक ठूंठ

आज फिर लौट के ये बसंत आ गया,

साथ मे अपने नए रंग ला गया,

एक बार फिर देखो धरती तैयार हो गयी,

एक और फसल आने की बहार हो गयी,

किसान फिर से तैयार है खुद और बैलों को लेकर,

बहुत सारा पसीना मेहनत के साथ,

बोने लगा है बीज सपनो में धार लेकर,

हल से उसने धरा को काबिल बना दिया,

बीजो से उसने फिर उसे सजा दिया,

दिन ढलते रहे रातें भी ढलती रही,

फसल धीरे धीरे जवां होते होते बढ़ने भी लगी,

सूरज के साथ चलते चलते पकने भी लगी,

किसान फिर तैयार था हाथ मे दराती,

आंखों में सपने लिए दिन में जागकर रातों को सोते हुए,

चल पड़ा खेत मे लहलहाती फसल को काटने,

तैयार थी फसल और किसान भी,

किसान के हाथ चलते रहे आंखे चमकती रही,

फिर भी मुझे ये अजीब सा एहसास क्या है,

साथ था जो अभी अब साथ नहीं है,

तैयार किया था जिसे वो मुड़कर देखा भी नहीं,

न फसल ने न मेरे मालिक ने मुझे,

खड़ा हूँ आज भी वहीं धरा से चिपका हुआ,

देखता हूँ “निष्प्राण” सा,

दिन को चलते हुए रात को ढलते हुए,

ये रीत अनोखी रही मेहनत तो बहुत की,

लेकिन छोड़ दिया अकेला ,

जिसने दिया था उन्हें आसमान छूने का हौसला।

~देवेन्द्र “निष्प्राण” गमठियाल

WHO AM I ?

Introductions are always tricky. Whenever we meet someone and we have to introduce ourselves, so many things pop up in our head. What should I start with? Should I tell my name first or should I tell where I come from? So many thoughts flood our little brains and most of the time we end up blaberring the same thing to everyone not knowing whether they are interested in it or not. Learning to introduce oneself is an art and like every art, not all are good at it. Considering myself below average, if there is any rating like that, I will start my post at my site.

I am Piyush, as evident by the name, Piyush Kumar being my full name. All my life I have done only one work worth mentioning and that is studying. In that too, I underperfomed when I actually needed to, but you might think it ended up well for me as I am a full time ENT surgeon now, working in my city Ranchi, the capital to Jharkhand, a state in India. That just about sums up my professional life.

As a child, I always loved a good story. I still remember how I bugged my grandfather and father to tell me one last story. Being a professor and principal, my grandfather was a strict discplinarian but somehow, he always found time to tell me another mytholgical story be it of my lord Ram or my favourite hunter, Sriram Sharma. As I write this blog, I realize how both my favorite childhood heroes bear the same name.

As I grew up, my fascination and love for stories kept growing, and once I started reading, a new world opened for me. For years, I was emerged in this beautiful imaginative world be it comics, novels, story books, mythological stories or movies.

Everything was going on its merry way and then I decided to get married, to a girl, who for reasons unkown, fell madly in love with me. I still think its my charming personality but let us leave it at that. Nidhi, my wife, is to me what her name literally means, treasure.
She is the one who told me to follow my passion of story telling and slowly, the abstract thoughts in my head started turning into ideas, and ideas into stories. Thus was born my first hero, Prince Chandra. The Myth, my first novel was published in 2018 and since then I have been working on various projects which include children’s stories, spy thrillers, detective thrillers, poems and what not.
With what limited time I get after my day job of working as a surgeon, my alter ego, author piyush, utilizes that time to read and write.
With the blessings of my late grandfather, who was a writer himself, and from where I have got this gift of storytelling, I will continue to write and reach the hearts of people who read my stories.
I shall endeavour to improve myself, my way of storytelling to make at ease, those who read my writings.
Let us together be a part of this journey which will be filled with adventure, mythology, thrill and action. 
This is Dr Piyush Kumar, and I will be back soon with my second blog post.

The link to my novel on amazon is below.

http://bit.ly/TheMythPrinceChandra

Design a site like this with WordPress.com
Get started