लेखक : दिव्यांशु त्रिपाठी
भेड़िया : साले तू सुबह-सुबह नाश्ता करके क्यों नहीं आता है। मैं बता रहा हूँ आज तेरे पापड़ी के चक्कर में हम लोग क्लास के लिए लेट हो जाएंगे। आज फिर मेरे पिछवाड़े पे वो बेंत लगेगी। हाय हाय। भाई बहुत ज्यादा लाल हो जाता है। अभी कल की ही लाली नहीं जा पायी है ढंग से।
कलुआ भेड़िया : अबे तू कितना रोता है यार। मैं भी तो रोज़ बेंत खाता हूं। मुझे तो कोई दिक्कत नहीं है।
भेड़िया : ते साले फौलाद का पिछवाड़ा लेकर पैदा हुआ है तो मैं क्या करूँ। भाई सच कह रहा हूँ आज सुबह टट्टी करने में पेशाब निकल आई। इत्ती जोर से मारा था कल उस बुड्ढे ने। हाय।
कलुआ भेड़िया : मेरी तो रोज़ निकल जाती है। उसमें क्या नई बात है।
भेड़िया कलुआ को एक कंटाप मारता है।
भेड़िया : भावनाओं को समझ साले।
कलुआ भेड़िया : अबे रोना बंद कर और चल बैठ । चलते है स्कूल।
दोनो जल्दी से जल्दी स्कूल पहुंचते हैं और फिर अपनी क्लास की तरफ दौड़ लगाते है। क्लास में उनके शिक्षक मिस्टर फूजो पहले से मौजूद रहते हैं। वो उन दोनों की तरफ देखते है और एक काइयां वाली मुस्कान देते है।
मिस्टर फूज़ो : आ जाओ मेरे सपूतों, मेरे जिगर के टुकड़ों, प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के समान उज्ज्वल लौंडो। आ जाओ।
तभी क्लास के अंदर से एक छात्र गाना गाता है।
“आइये , आपका , इंतज़ार था। देर लगी आने में तुमको शुक्र है फिर भी आये तो।”
मिस्टर फूज़ो : ओहहो वाह। नहीं नहीं वाह। अरे अपनी क्लास में तो शानू दा भी है। भाई लफ़ंडर, टुच्चे, कामचोर, आलसी, मलिच्छ ही सही, मगर टैलेंट है लौंडो में। बाहर आओ जरा तुम्हारा सा रे गा मा , पा धा नी सा करता हूँ अभी। आ जाओ बेटा। शरमाओ नहीं। और तुम दोनों (भेड़िया और कलुआ भेड़िया की तरफ देखकर)। सच बता रहा हूँ मैं तुम दोनों की लत लग चुकी है मुझे। तुम दोनों को कूटे बिना चैन नहीं पड़ रहा था। अपच सी हो गयी थी। अब आ गए हो तो सब सही हो जाएगा।
भेड़िया : सॉरी सर। आज जरा बाइक का तेल खत्म हो गया था इसलिए लेट हो गई।
मिस्टर फूज़ो: अरे कोई नहीं बेटा। होता रहता है। तुम ऐसा करो जरा वो सामने जो बेंत रखी है वो लाओ जरा। उसकी मजबूती जांचनी थी मुझे।
कलुआ भेड़िया दौड़ कर जाता है और बेंत ले आता है।
मिस्टर फूज़ो: वाह। बड़ी जल्दी है तुम्हें लगता है। आओ पहले तुम ही आओ प्रसाद ले जाओ।
कलुआ भेड़िया मज़े में बेंत खाकर अपने सीट पर जाकर बैठ जाता है।
मिस्टर फूज़ो उसको हैरत भरी निगाहों से देखते हैं। क्या बे कोई फर्क ही पड़ा इसको तो। बेंत खा खा कर नशेड़ी हो गया है एकदम।
मिस्टर फूज़ो : आओ भेड़िया बेटा। तुम्हारी बारी आ गयी।
भेड़िया धीरे-धीरे आगे बढ़ता है ।
मिस्टर फूज़ो : क्या हुआ बेटा? पैर उठ नहीं रहे क्या जल्दी जल्दी?
तब तक क्लास के शानू दा फिर गाना गाने लगते है।
“पैरों में बंधन है,पायल ने मचाया शोर। सब दरवाज़े कर लो बंद देखो आये, आये चोर।”
मिस्टर फूज़ो : अरे शानू दा ने तो एक और गाना पेल दिया। अब तो और ऊंचा सुर निकलेगा। (भेड़िया की तरफ देखकर) अरे तुम खड़े हो गए। चलो इधर आओ जल्दी से और भी काम है मुझे ।
तभी दूर से कुछ छात्रों का झुंड आता हुआ दिखाई पड़ता है। कोबी उस झुंड के सबसे आगे चल रहा था और वो मिस्टर फूज़ो की क्लास की तरफ ही बढ़ रहा था।
मिस्टर फूज़ो : ओहहो। आज तो इनके दीदार हो गए। ईद का चांद हो गए थे। रास्ता भटक गए क्या कोबी।
कोबी : अरे आप ऐसा क्यों कह रहे हैं सर।
मिस्टर फूज़ो : आज क्लास में कैसे आना हो गया? पिछली बार कब देखा था याद नहीं, मगर अब आ गए हो तो तुम भी प्रसाद ले जाओ। आओ लग जाओ लाइन में।
कोबी : हां सर बिल्कुल। मैं तैयार हूँ।
मिस्टर फूज़ो : इस लौंडे की डेडिकेशन देखकर आँखों से आँसू निकल आये। तुझे तो एक एक्स्ट्रा दूंगा मेरे लाल। आ जा। ( भेड़िया की तरफ देखकर) कित्ता समय लेगा भाई तू खड़ा होने में। अब हो भी जा और न तड़पा।
भेड़िया दीवार की तरफ मुँह करके खड़ा हो जाता है मिस्टर फूजो मारने के लिए बेंत उठाते हैं तभी भेड़िया चीख पड़ता है।
मिस्टर फूज़ो : अबे पागल है क्या बे। डरा दिया। इत्ता तेज़ चिल्लाता है कोई। मैंने तो अभी मारा भी नहीं।
भेड़िया : फील आ गयी सर।
मिस्टर फूज़ो : तुझे रियल फील देता हूँ। तू खड़ा हो।
मिस्टर फूज़ो मारने वाले होते है तभी एक प्यारी सी आवाज़ उनका ध्यान अपनी और खींच लेती है।
” Excuse me sir. क्या ये 10th क्लास है।”
मिस्टर फूज़ो : जी बेटी। ये 10th क्लास है। तुम कौन हो ?
“मैं जेन हूँ। इस स्कूल मैं नई आई हूँ। आज मेरा पहला दिन है।”
मिस्टर फूज़ो : अच्छा अच्छा। हां बताया था प्रिंसिपल मैम ने। आ जाओ बेटी। जाओ क्लास में बैठो। आज पहला दिन है इसलिए ठीक है । कल से समय से आना।
जेन : जी सर। थैंक यू सर।
जेन क्लास के अंदर चली जाती है और इधर भेड़िया और कोबी की आँखें और मुँह खुले के खुले रह जाते है। इत्ती खूबसूरत लड़की उन्होंने आज तक नहीं देखी थी। अब तक तो दोनों के मन में जेन को पटाने की तरकीब भी आनी शुरू हो गई थीबकि तभी मिस्टर फूज़ो की आवाज़ उनके ध्यान को भंग कर देती है।
“अरे तनिक इधर भी ध्यान देइ दो मालिक। तब से खड़े है।”- मिस्टर फूज़ो
कोबी और भेड़िया दोनों का ध्यान अभी भी जेन से हट नहीं रहा था। वो क्लास के अंदर जाकर आगे वाली सीट पर बैठ गई थी।
मिस्टर फूज़ो से अब रहा नहीं गया और उन्होंने लपेट कर एक एक बेंत रसीद की कोबी और भेड़िया को।
दोनों एक साथ चीख पड़े- “अरे मम्मी रे…….”
मिस्टर फूज़ो : मज़ा आया। बताओ यार कोई इज़्ज़त ही ननहीं रह गई है। तब से खड़ा हूँ मारने को कोई ध्यान ही नहैं दे रहा है। पढाई में तो कभी नहीं लगा इन सब का मन अब कुटने में भी नहीं लग रहा है। हद्द ही हो गई है एकदम। अरे किसी काम लायक तो बन जाओ ससुरो। जाओ अपनी अपनी सीट पर बैठो।
कोबी और भेड़िया क्लास के अंदर घुसे। दोनों लगातार जेन को ही घूरे जा रहे थे और इसी चक्कर मे दोनों दीवार से टकराए और धम्म करके गिर पड़े।
मिस्टर फूज़ो (हाथ पर सिर मारते हुए): अरे मतलब अंधे भी हो गए है ससुरे। का रे एकदमे डिफेक्टेड ही पैदा हुए रहे का तुम दोनों। कुछ बोलो तो सुनाई नहीं पड़ता है , कुछ लिखने को कहो तो लिखा भी नहीं जाता है , दिमाग तो हैय्ये नहीं है और अब देखो अंधे भी हो गए । बताओ सुबह – सवेरे भक्क रोशनी में औंधे मुँह गिरे जा रहे हैं। साला क्लास को कॉमेडी शो बनाकर रख दिया है यार। बताओ रोज़ क्लास का 15-20 मिनट कॉमेडी ही होती रहती है।
गुस्से में फूज़ो बाबा ने डस्टर से ब्लैक बोर्ड मिटाया और आज के पढाये जाने वाले पाठ का नाम लिखा।
मिस्टर फूज़ो : अच्छा तो मैंने कल तुम लोगो को जो पाठ पढ़ने को बोला था वो पढ़ के आये तुम सब।
कोई कुछ जवाब दे पाता उससे पहले ही मिस्टर फूज़ो बोल पड़े।
“कोई पढ़ के नहीं आया। नालायक ही रह जाओगे तुम सब।”
मिस्टर फूज़ो: तो आज का पाठ पढ़ेंगे असम के जंगल की सबसे पुरानी प्रजाति ‘बौड़म प्रजाति’ के बारे में। ये प्रजाति यहां की मूल निवासी नहीं थी। ये यहां पर ऐसे ही एक दिन रात का खाना खाकर ऐवें ही टहलने निकले और इन्होंने इस जगह की खोज कर दी। उनके इस भ्रमण मात्र से ही यहां के कई जीवों और वनस्पतियों का अंटा गफिल हो गया। उस रात दरअसल इन्होंने एक जबर पार्टी रखी थी और ख़ूब भर भर कर खाना पेला था। उसी खाने को पचाने वो यहां पर टहलते टहलते पहुंच गए और फिर यहां आकर इन्होंने जो दुर्गंध मचाई ना मतलब की एकदमे कहर ढा दिया था उस रात। यहां के सारे जीव और वनस्पतियां तुरन्ते टपक गए। पाद पाद कर मौत का तांडव मचा डाला था इन लोगों ने। एकदम हरे भरे जंगल को पाद पाद कर बंजर बना डाला। ऐसी दैवीय शक्ति थी इनके पाद में। फिर जब इनका पेट हल्का हुआ और दिमाग काम करने लायक हुआ तो इन्होंने देखा कि अरे हमने तो एक नई जगह की खोज कर डाली। इन्होंने आस पास घूम कर देखा तो जीवों और वनस्पतियों को मरा पाया। इनको जरा भी अंदाज़ा नहीं था कि ये मौत का तांडव इन्होंने मचाया था। धीरे-धीरे ये लोग इस जंगल में बसने लगे और इस तरह ये प्रजाति हमारे जंगल की पहली प्रजाति बना।
कोबी और भेड़िया अभी भी एक टक जेन को निहारे जा रहे थे। मिस्टर फूजो की नज़र उन पर पड़ी और वो एकदम भन्ना गए।
मिस्टर फूज़ो ( कोबी और भेड़िया के ऊपर चिल्लाते हुए): बैठ जाओ। उसके सिर पे कुंडली मार कर बैठ जाओ।
कोबी और भेड़िया ने अभी भी उनकी ओर ध्यान नहीं दिया और एकटक जेन को घूरते रहे। मिस्टर फूज़ो का दिमाग अब हाइपर भन्ना गया था। उन्होंने आव देखा ना ताव भेड़िया को डस्टर फेंककर मारा।
भेड़िया बिल्कुल हड़बड़ा उठा और मिस्टर फूज़ो की तरफ देखने लगा। मगर कोबी पर अभी भी जूं तक नहीं रेंगी थी।
मिस्टर फूज़ो (गुस्से में) : एक तो इन स्कूल वालों से कहता हूँ कि एक से ज्यादा डस्टर दिया करो। बताओ एक समय में 2-3 लड़को को कूटना हो तो डस्टर कम पड़ जा रहे हैं। ए चमगादड़ (भेड़िया की और इशारा करते हुए) वो डस्टर लाओ जो अभी फेंक कर मारा मैंने तुम्हें।
भेड़िया के कुछ बोलने से पहले ही कलुआ बड़ी मासूमियत से बोल पड़ा।
“फूज़ो सर, वो चमगादड़ नहीं भेड़िया है ।”
मिस्टर फूज़ो : ओ हो हो हो। वाह, नहीं नहीं वाह। कोई नोबल पुरस्कार ले आओ भाई। पहली बार मेरे लाल के मुँह से कुछ फूटा है। अच्छा मेरे लाल ये बता की चमगादड़ कैसे होते है ?
कलुआ(काफी देर सोचने के बाद): वो रात में जागते है पेड़ों से उल्टा लटकते हैं ऐसे कुछ ही होते हैं।
मिस्टर फूजो : तो सोच मेरे लाल की तुम सब चमगादड़ों में और उन सब चमगादड़ों में कोई अंतर है? नहीं ना।(भेड़िया की तरफ देखकर) एक तो इस कामचोर से एक काम नहीं होता है। का बे, तुमसे कब से कहे हैं डस्टर लाने को। का कर का रहे हो तुम ?
भेड़िया(इधर उधर नज़र घुमाते हुए): अरे फूज़ो सर हेरा गया डस्टर।
मिस्टर फूज़ो (दहशत में जाते हुए): अबे ऐसा ना बोलो यार। अबे ढूंढ दे भाई। अरे वो प्रिंसिपल जान ले लेगी मेरी। बड़ी खूंखार है यार। खून सुखा देगी मेरा। पिछली बार जब चॉक खोया था तो (मिस्टर फूज़ो सोच में डूब गए और उन्हें प्रिंसिपल का डरावना चेहरा याद आने लगा और वो अचानक ही चिल्लाये) उइ माँ। अरे वो मार डालेगी, मार डालेगी। अबे कहाँ खोआ दिया यार। सालो सलीके से मार भी नहीं खा पाते हो। अरे बड़ी जालिम औरत है यार। सुखा देगी यार मुझे मार मार के।
तभी क्लास के सानू दा के मुँह से गाना फूट पड़ा।
“जिंदगी मौत ना बन जाये संभालो यारो, जिंदगी मौत ना बन जाए संभालो यार, खो रहा चैनों अमन…..”
मिस्टर फूज़ो (क्लास के शानू दा को बीच मे ही टोकते हुए):अरे मेरे लाल,मेरे पीले। कुछ दूसरा गाना गा ले। हैं, मौत मौत गाना जरूरी है।
शानू दा(क्लास वाले):जी सर।
“मौत आनी है आएगी एक दिन, अरे जान जानी है जाएगी एक दिन, मुस्कुराते हुए दिन बिताना यहां कल क्या हो किसने जाना।”
मिस्टर फूज़ो ( पींपिनाते हुए बोले): अरे यार। तुझे मौत पे ही गाना याद है क्या बे। कुछ ढंग का गाना गा दे। यहां मेरी जान ऐसे ही सूखी जा रही है। कुछ ढंग का गाना गा दे।
शानू दा(क्लास वाले):जी सर।
“मौत से क्या डरना,क्या डरना, क्या डरना। मौत से क्या डरना, उसे तो आना है, दो पल की जिंदगी है, हमें अपना फर्ज निभाना है।”
मिस्टर फूज़ो ( झल्लाते हुए बोले):चुप। एकदम चुप हो जा अब तू। अब एक शब्द ना निकलियो अपने मुँह से। ससुर पनौती कहीं का। एक ढंग का गाना नहीं गाया जा रहा है। तब से मौत मौत लगाया हुआ है ससुरा। अच्छे खासे जवान आदमी को मारा जा रहा है। अभी मेरी उम्र ही क्या हुई है….
पूरी क्लास एक साथ बोलती है: जंगल के बुजुर्ग क्लब के सबसे बुजुर्ग मेंबर हो आप।
मिस्टर फूज़ो: चुप करो बेहुदो। एक काम तो होता नहीं है। चपड़ चपड़ जबान बहुत तेज़ चलती है।
तभी बीच में कलुआ भेड़िया बड़ी मासूमियत से बोला।
“मगर प्रिंसिपल मैडम तो आपकी पत्नी हैं फूज़ो सर। फिर क्या डर?”
मिस्टर फूज़ो (जिनकी जान अभी तक डस्टर ना मिलने से सूख चुकी थी): तू साले डरा रहा है मुझे। याद दिला दिला कर डरा रहा है मुझे तू। डस्टर खोज जल्दी से। अगर आज मेरी मौत आई तो तुम दोनों को मार डालूंगा। जानता भी है कि पत्नी माने होता क्या है ?
कलुआ भेड़िया : नहीं सर। मैं नहीं जानता।
मिस्टर फूज़ो: ‘पत्नी’। ये शब्द एक शब्द नहीं अपने में पूरा वाक्य है। एक ऐसा वाक्य जो जब किसी की जिंदगी में आता है तो अपने सारे वाक्य भूल जाता है क्योंकि ‘पत्नी’ के आने के बाद उसके जीवन में उसके मुंह से निकले किसी भी वाक्य का कोई मतलब नहीं रह जाता है। ‘पत्नी’ के आने के बाद उसके समस्त वाक्य गलत ही होते हैं और अगर ईश्वर ना करे कि कभी उसका कोई वाक्य सही हो जाये तो उसे जिंदगी भर उस एक वाक्य के लिए न जाने कितने वाक्य सुनने पड़ते हैं।
‘पत्नी’ शब्द दो शब्दों से मिलकर बनता है ‘पता’ और ‘नी’। अर्थात की ‘पता नहीं’। मतलब तुम देख रहे हो कि ससुर ये बिचारा शब्द को भी ‘पता नहीं’ चला कि इस बला को क्या कह कहकर संबोधित किया जाए । इस सृष्टि के निर्माण से आजतक कोई इस ‘पत्नी’ नामक बला को समझ नहीं पाया है। तो ससुर हम किस खेत की मूली हैं। ये ढाई शब्द तुझे बहुत छोटे लग रहे होंगे मगर ये है बड़े डरावने। तुझे क्या लगता है कि यमराज ने ‘सत्यवान’ की जान क्यों बक्श दी। ‘सावित्री’ के कहने से। भक्क। अबे यमराज ने देखा कि ससुरा ये इंसान तो बड़ी चालाकी दिखा रहा है। मरकर बड़ी जल्दी पीछा छुड़ा रहा है अपनी पत्नी से और साला यहां हम जन्म जन्मांतर से रेले जा रहे है । ऐसे कैसे ससुर। इसको तो जिंदा करके ही छोड़ेंगे। बहुत चालाकी पेल रहा है ये मनुष्य और बताओ कि हनुमान जी ने विवाह क्यों नहीं किया। श्री राम की सेवा तो वो ऐसे भी कर लेते। असल कारण में बताता हूँ। याद है हनुमान जी को एक बार सभी देवी और देवता आशीर्वाद देने आए थे। पता है आशीर्वाद देते हुए समस्त देवताओं ने उनसे क्या कहा। “बेटा हनुमान अगर तुम्हें जीवन मे खुश रहना है तो कभी शादी मत करना। हमारी हालात देखकर समझ जाओ की शादीशुदा मर्द की क्या दुर्दशा होती है और हाँ हमारी पत्नियों से कुछ मत कहना मेरे लाल वरना हमारी मौत निश्चित है । अमृत वमृत कुछ काम नहीं आएगा। “
इस पत्नी नामक बला के कुछ प्रमुख लक्षण बताना चाहूंगा।
1.ध्यान से सुनना ।इनका प्रमुख कार्य होता है पतियों का जीना हराम करना। इन्हीं से इनको जीने लायक प्राणऊर्जा मिलती है।
2.हमारे पुराणों में कहा गया है कि ये गृह कार्य में बिल्कुल दक्ष रहतीं है। बिल्कुल सही लिखा है। ये बिल्कुल गृह कार्य में दक्ष रहती हैं। इन्हें भली भांति पता होता है कि कब किस गृह कार्य मे पति को काम पे लगाना है। कैसे उनको बिना पगार वाला मज़दूर बनाना है।
3.इन्हें भी जोर से बोलना, कलह करना और झगड़ा करना अति प्रिय होता है। इनके प्रमुख हथियार भयंकर रूदन, अत्यधिक तीव्र स्वर में चिल्लाना और बात बात पर धमकी देकर अपने घरवालों को बुलाना होता है।
4.ये अपने पैसे को बस अपना पैसा समझती है और तुम्हारे पैसे को भी बस अपना ही पैसा समझती है। पैसों से कोई भेदभाव वाला व्यवहार नहीं करती है। ये जबरन में फालतू की चीज़ें खरीदती है और तुम्हारा सारा पैसा उड़ा देती है। मज़ाल तुम्हारी जो तुम चूं भी कर दो।
5.इस बला की विशेषता कर्कश स्वर में चीखना, आक्रमक शैली में धमकाना और समय आने पर तेज प्रहार होता है। इनके प्रमुख हथियार बेलन, झाडू और तुम्हारी चप्पल होती है। बिल्कुल ये अपना चप्पल तुम्हें मारने में जाया नहीं करेगी कभी।
इनके इस प्रकोप से बचने के निम्न उपाय हैं जिनका दृढ़ता से पालन करना होता है।
1.इनके सामने कभी अपना मुँह ना खोलो। सही सुने। बिल्कुल सन्नाटा मार कर बैठो इनके सामने। एक चूं की तुमने और तुम्हारी जान गई समझो।
2..ये जो बोले वही सत्य है। बिल्कुल यही बात है। ये जो भी बोले वही सत्य होता है। इनके सामने ज्यादा ज्ञान मत पेलना कभी वरना तुम्हें पिलाये जाओगे।
3.जब मौका मिले इसके घर वालो की तारीफ कर दिया करो। जब भी लगे कि तुम्हारी जान खतरे में है तुरन्त तारीफों के पल बांधना शुरू कर दो। जीवन बच जाएगा।
4.समय समय पर इसको कुछ ना कुछ उपहार देकर इसको शांत रखा करना वरना तुम्हारे ऊपर चढ़ बैठेगी और कोई ससुर कुछ कर ना पायेगा।
बाकी तुम शादी कर लो बेटा। बाकी ज्ञान अपने आप ही हो जाएगा।
इतना सुनना था कि कोबी हदस के चिल्ला उठा: अबे ढूंढ दे भेड़िये। ढूढ दे। क्या कर रहा है बे। अरे जान लेगा क्या अब इस बिचारे बुड्ढे की। ढूढं साले ढूंढ।
कलुआ भेड़िया(बिल्कुल सकपका कर रोते हुए चिल्लाया): खोज दे भाई। खोज दे। क्या जान लेकर ही मानेगा।
तभी मोटू भेड़िया बोल उठा।
” फूज़ो सर आपने डस्टर को जिस कोण पे फेंका था ?”
मिस्टर फूज़ो (आश्चर्य से): अबे इतना कौन सोचता है भाई फेंकने से पहले?
“सोचना चाहिए था ना फूज़ो सर।”
मिस्टर फूज़ो: अरे कर्मजले । चुप चाप ढूंढ दे। यहां मेरा इतिहास मिटने की नौबत आ गई है और तुझे गणित की पड़ी है।
तभी इस आपाधापी में कोबी अचानक से दौड़कर मिस्टर फूज़ो के पास आया।
“सर सर। ये रहा डस्टर।”
उस डस्टर को देखना ही था कि मिस्टर फूज़ो के आँखों से आँसू निकल आये। उस डस्टर को प्यार से सहलाया और अपने हाथों में लेते हुए बोले।
“तुझे कितना ढूंढा रे पगले। कहां छुप कर बैठा हुआ था। एक बार फेंक कर मार क्या दिया। इतना नाराज़ हो गया। नहीं रे ऐसे नाराज़ नहीं होते हैं। मेरी साँसें अटक गई थी । अब ऐसा मत करना।”
सभी Mr. फूज़ो को बड़े ध्यान से देख रहे थे। उन्हें यकीन हो रहा था कि Mr. फूज़ो का दिमागी संतुलन हिल चुका है। तभी घण्टी बज गई और छुट्टी का एलान हो गया। सभी बच्चे भाग कर क्लास के बाहर निकले। कोबी और भेड़िया जेन के पीछे पीछे उसको निहारते हुए बढ़े चले जा रहे थे।
कोबी: अब देखो तुम सब । मैं जा रहा हूँ जेन से दोस्ती करने। अब देखो तुम लोग की कैसे एक सुंदर लड़की से दोस्ती की जाती है।
कोबी के जयकारे लगाते हुए उसके चेले चपाटे उसके पीछे जा रहे थे। कोबी भी बड़ी भौकाली में जेन से बात करने आगे बढ़ा जा रहा था। जेन भी कुछ दूरी पर खड़ी कुछ लड़कियों से बात कर रही थी। कोबी अब उसके सामने पहुंच चुका था। उसनें मुँह खोलकर उससे हैलो बोलना चाहा मगर मुँह से केवल हवा निकली। उसने थोड़ी हिम्मत बांधी और बोला।
“जेन वो मैं तुमसे….”
उसके आगे बोलने से पहले ही उसके पीछे खड़ा उसका चेला बोल पड़ा ।
“अबे ये गधे की आवाज़ में कौन बोला अभी।”
कोबी ने एक कसकर कोहनी मारी उसको।
“अरे सरदार आप। माफी देइ दयो। मैं समझा कि कोई गधा बोला।”
कोबी ने उसको एक नज़र घूरा और फिर जेन की तरफ बोलने को मुड़ा। मगर उसके कुछ बोल पाने के पहले ही एक आवाज़ जेन के पीछे से आई और जेन उस ओर देखने लगी।
“जेन । तुम आ गई। पहला दिन कैसा रहा तुम्हारा।”
कोबी(अपने चेले के बाल नोचते हुए): कौन है बे ये? क्या कर रहा है यहां पर?
चेला: सरदार ये हमसे एक साल सीनियर है। ये भी आज ही आया है स्कूल में।
जेन उस व्यक्ति को देखकर बहुत खुश हुई और बोली।
“अरे तुम आ गए। तुम्हारा ही इंतज़ार कर रही थी मैं। कहां रह गए थे?”
“अरे बस थोड़ा घूम टहल रहा था । आओ चलो बाहर एक चचा की चाट की दुकान लगी है। चलो वहां चाट खाते है।”
“हाँ चलो।”
जेन खुशी खुशी उसके साथ चाट खाने चली गई और कोबी गुस्से में अपने चेले चपाटों का बाल नोचने लगा।
क्रमशः।
कौन है ये व्यक्ति? जेन इसे कैसे जानती है? कोबी और भेड़िया अब आगे क्या क्या गुल खिलाएंगे ? इन सभी सवालों के जवाब आपको मिलेंगे ‘कमर प्रेम’ के अगले भाग में। इंतज़ार करें।
Kamar prem ki bahot hi achhi shuruat ki hai aapne Divyanshu ji.. agle part ka intjar rahega..
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