लेखक :दिव्यांशु त्रिपाठी
जेन उस नए लड़के के साथ बड़े ही प्रसन्न मुद्रा में चाट खा रही थी। दोनों ही एक साथ बहुत खुश लग रहे थे, जिसको देखकर कोबी अंदर ही अंदर मरा जा रहा था।
तब तक पीछे से कोबी का एक चेला बोल पड़ा।
“कोबी गुरु। आप भी जाओ चाट खाने , इसी बहाने अपनी हवस भी मिटा लोगे।”
कोबी(गुस्से में)- क्या बोला बे।
” अर र र र र…..……. मेरा मतलब कि इसी बहाने आप जान भी लोगे कि ये लड़का है कौन? और भाभी को कैसे जानता है?”
कोबी कुछ बोल पाता उससे पहले ही उसका दूसरा चेला बोल उठा।
” अबे क्या बात कर रहा है बे? कोबी गुरु को चाट , फुल्की खिला रहा है। दिमाग बेच दिया है क्या। पता नहीं तुझे की भाई का मुँह, पेट और पिछवाड़ा तीनों ही तीता खाने से छलनी हो जाते है। पिछली बार भाई ने गलती से 1 पानी भरी फुल्की खा ली थी, माँ कसम बता रहा हूँ कि सुबह सुबह गुरु ने ऐसा त्राहिमाम त्राहिमाम मचाया था कि पूरा शहर दहल गया था। मोहल्ले की सारी बर्फ की सिल्लियां इनकी तशरीफ़ में डालनी पड़ी तब जाकर कुछ ठंड पड़ी गुरु को।”
कोबी(सकपका कर): ते साले हर बात इतना डिटेल में कतई घुस कर क्यों बताने लगता है बे। एक शब्द नहीं बोल पाता है कि मुझे अच्छी नहीं लगती ये सब चीजें।
” वो भाई, बचपन से मेरा सपना था कि बड़ा होकर डिटेक्टिव बनने का तो हर चीज़ बिल्कुल ही बारीकी से देखने और बताने की आदत पड़ गई है।”
कोबी: तो क्या साले अपनी सारी जासूसी मेरी तशरीफ़ में ही घुसकर करेगा। कतई एसीपी प्रद्युमन बन जायेगा मेरे पिछवाड़े का।
“सॉरी गुरु सॉरी। मगर आगे का क्या सोचा है गुरु। क्या करना है?”
कोबी(धीमी आवाज़ में): सोचा क्या है। सह लेंगे थोड़ा।
“सच में गुरु। क्या आप वही करने जा रहे जो मैं सोच रहा हूँ?”
कोबी(जोशीली आवाज़ में): ढिंढोरा पिटवा दो मामा। पूरे गाँव , मोहल्ले वालों के यहाँ से बर्फ की सिल्लियां मंगवा लो। आज ये वीर अपनी तशरीफ़ दांव पर लगा रहा है।”
“मामा? कौन मामा?” -कोबी का चेला चौंक कर पूछता है।
कोबी: साले मैं इतना अच्छा माहौल बनाता हूँ और तू उसका क्रिया कर्म कर देता है। माहौल में रहने दे बे।
ये सुनकर कोबी के सभी चेले जोश में एक साथ बोलते हैं।
“शक्ल से चीकट दिखने वाले शूरवीर विद्यार्थी, बच्चों का टिफ़िन चुरा कर खाने वाले भुक्कड़ इंसान, हवस भरी निगाहों से शक्ति कपूर को भी पीछे छोड़ने वाले ठर्कियो के ठरकी कोबेश्वर बाहुबली पधार रहे हैं।”
कोबी(अजीब सा मुँह बनाया था, एक्सप्लेन नहीं कर सकते उसके भाव): ते साले मेरी इज़्ज़त बढा रहे हो कि उतार रहे हो?
सभी चेले हड़बड़ा कर बोलते हैं- “आप आगे बढ़ो गुरु। ये सब बाद में देखते हैं ना।”
कोबी बड़े ही जोशीले अंदाज़ में सिर और कंधे तानकर आगे बढ़ता है। बिल्कुल एकदम हवा से बातें करते हुए कोबी आगे बढ़ता ही रहता है कि तभी रास्ते मे एक पत्थर से ठोकर खाकर औंधे मुँह गिरता है और अपनी खोपड़िया फुड़वा लेता है।
“अरे अरे अरे , च च च च खोपड़िया फुड़वा कर ही माना ये आदमी। बड़े चौड़े होकर जा रहा था। ससुर बेज़्ज़ती करवा दिहिस पूरी। हाय दैया। अब क्या मुँह दिखाएंगे हम समाज में, अभी तो आधी ही गई है, अभी ये आदमी अपनी पूरी इज़्ज़त उतरवा कर आएगा।”
उधर कोबी किसी तरह अपने आप को संभालकर , अपने सिर को छू कर देखता है कि अभी भी अपने धड़ से जुड़ा है कि नहीं। अपने शरीर से धूल झाड़कर आगे बढ़ता ही है कि तभी पीछे से एक झाड़ू लगती है उसको।
कोबी : कौन मारा बे कोबी भाई को।
“अभी एक ही मारा है साले ज्यादा बकैती की तो और मारूँगी।”
कोबी पीछे मुड़कर बड़े ताव में देखता है मगर पीछे खड़े चेहरे पर जैसे ही नज़र पड़ती है बिल्कुल सकपका जाता है।
कोबी(हदस कर): अरे मोरी मईया। शांता बाई। अरे आप कहाँ से आ गई यहाँ पर?
शांता बाई : कहाँ से आ गई। अबे मैं तो हमेशा यहीं रहती हूँ। तुझसे ज्यादा अटेंडेंस तो मेरी रहती है स्कूल में। नल्ले कहीं के। अभी-अभी पोछा लगाया था मैंने। और अभी सूखा भी नहीं कि तू उसमें लोट लगाने लगा।
कोबी: लोट नहीं लगा रहा था शांता बाई। मैं गिर गया था।
शांता बाई: गिर गया था । खड़ा तक होना नहीं आता। गिरे पड़े रहते हैं। चल भाग जा यहाँ से वरना अभी झाड़ू-झाड़ू मारूँगी।
इतना सुनना ही था कि कोबी सरपट दौड़ लगाता है और शांता बाई से सुरक्षित दूरी बना लेता है। अब वो चाट वाले कि तरफ फिर आगे बढ़ता है। कुछ ही मिनटों में कोबी वहाँ पहुंच जाता है और फिर उस चाट वाले को आँखों से इशारे करता है। उसके इशारे देखकर चाट वाला भी कोबी को इशारा करता है। कोबी फिर से उसको इशारा करता है। चाट वाला फिर उसको कुछ इशारा करता है। काफी देर की इशारेबाजी के बाद कोबी तंग आकर बोलता है।
कोबी: अबे ए ए ए साले। कैसे गंदे गंदे इशारे कर रहा है बे। मैं उस तरह का आदमी नहीं हूँ।
चाट वाला: यहाँ आकर ऐसे ऐसे इशारे करेगा तो मैं क्या समझूँ बे।
कोबी : ज्यादा स्मार्ट ना बन ससुर। चुप चाप फुल्की लगा। और सुन (धीमी आवाज़ में) तीखा जरा कम डालियो।
चाट वाला: तेरी शक्ल देखकर ही मैं समझ गया था रे कि तू एकदमे नाज़ुक कली है। तेरे बस की केवल मीठी फुल्की ही है।
कोबी कुछ इज़्ज़त बचाता उससे पहले ही उधर से जेन चिल्लाती है।
“और तीखा भैया । और तीखा डालो। ये क्या बनाया है।”
चाट वाला (रोते हुए): एक तो यार इस औरत ने परेशान ……..
कोबी: साले तेरे को ये सुंदर कन्या औरत दिखती है।
चाट वाला(झुँझलाकर): साले जब डायलाग बोला करूँ ना तो टोका ना कर। पूरा दर्द भरा माहौल खराब कर देता है।
कोबी : रोता क्या है बे। बोल ना।
चाट वाला: रुक, आँखों मे आसूँ लाने दे ………. हाँ अब सही है। एक तो ये औरत ने परेशान करके रख दिया है। और तीखा और तीखा कर कर के मेरी जान ले ली है इस औरत ने। 1 किलो मरचा लाया था। इस औरत ने अभी केवल 10 फुलकियां ही खाई होंगी। मेरा सारा मरचा खत्म कर दिया इस हबसी औरत ने।
जेन: अरे भैया, क्या कर रहे हो और मिर्चा डालो ना।
चाट वाला ( ताव में) : अच्छा तू रुक। तू रुक। मैं अभी डालता हूँ तीखा।
चाट वाला अपने ठेले से कुछ दूर आगे जाता है तो वहाँ पर नागराज भीख मांगता हुआ बैठा रहता है।
“अरे दे दे। इस गरीब को कुछ दे दे। देव कालजयी के नाम पर कुछ दे दे।”
तभी उसके सामने एक आदमी आता है और उसको 2 रुपये देता है। नागराज उसको गुस्से में देखता है और धे पटक के मारता है।
“साले, चीमड़ इंसान। भिखारी समझा है मुझे।”
“तो और क्या समझूँ ?”
नागराज उसकी बात सुनकर कुछ देर कंफ्यूज हो जाता है फिर मन ही मन बोलता है ।
नागराज (मन में): इस साले ध्रुव को बताऊंगा किसी दिन अच्छे से। साले ने अच्छे खासे LED वाले दिमाग को ट्यूब लाइट बना कर रख डाला है। काम ही नहीं करता है साला एक बार में। अब इसको क्या जवाब दूँ?
सोचते हुए भी नागराज उस आदमी को कंटाप लगाता रहता है। उस आदमी को अपनी तरह हरा भरा बनाने के बाद नागराज बोलता है।
नागराज : ज्यादा इस्मारट ना बनना बे। अबे मैं तुझे भिखारी नज़र आ रहा हूँ। आ रहा होऊंगा मगर हूँ नहीं। अबे खज़ाना दान किएला है मैं भारत सरकार को। भिखारी नहीं है मैं।
“तभी भिखारी बना बैठा है अभी।” – वो आदमी कराहते हुए बोलता है।
नागराज : बहुत बोल रहा है। बहुत बोल रहा है। कतई बेज़्ज़ती किये पड़ा है तबसे। निकाल 2000 रुपये।
“अरे मगर क्यों। मार भी मैं खाऊं और पैसा भी मैं ही दूँ। मैं तिरंगा नहीं हूँ।”
नागराज: अबे इसमें तिरंगा कहाँ से आ गया?
“किसी बेइज़्ज़त इंसान का नाम लेना था। इसी का पहले याद आ गया।”
नागराज(सोचते हुए): सही कह रहा है यार तू। मुझे भी उसी का नाम याद आता है। उसकी बेज़्ज़ती के अलावा और कुछ होते मैंने भी कभी देखा नहीं है। हम सब की कॉमिक्स आती है उसकी बेज़्ज़ती आती है।
नागराज ये सब बोल रहा था तो उसका ब्रह्मांड रक्षक दल की रेडियो फ्रीक्वेंसी ऑन थी और तिरंगा ने सब सुन लिया था।
तिरंगा : अबे मंदिर का घण्टा समझ लिया है क्या कि साला कोई भी बजा कर निकल जाता है। बहुत हो गई बेज़्ज़ती भारी, अब सब मरेंगे बारी बारी।
तभी अचानक से तिरंगा कराहता है।
नागराज: क्या हुआ भाई? किसी ने तेरा लबादा तेरे मुँह पर बाँधकर, तेरी ढाल को तेरे सिर पर रखकर तेरे न्याय दंड से टन टना दिया क्या?
तिरंगा : नहीं बे। मेरे पेट से एक पत्थर गिर गया नीचे।
नागराज(सोचते हुए): पत्थर गिर गया? अबे क्या बके जा रहा है।
तिरंगा (रोते हुए) : अबे यार, ये ससुर चौबे ने इतने पत्थर भर दिए मेरे पेट में के दिन भर उन्हीं को संभालने में लग जाता है। कभी कोई पत्थर इधर गिरता है कभी उधर। कभी कभी तो संडास में बैठे बैठे 2-3 पत्थर गिर जाते है तो लोगो को लगता है कि गरज के साथ ओले भी पड़ रहे हैं। अब इंसान क्राइम फाइटिंग करे कि इन पत्थरों को संभाले। एक बार तो साले नगर निगम वालो ने पत्थर कम पड़ने पर मुझे ही पकड़कर मेरे सारे पत्थर निकाल कर उनसे 1km लंबी सड़क बना डाली थी। ऐसा मेरे साथ ही क्यों होता है। मैं भी आखिर सुपरहीरो हूँ। मेरी भी कुछ इज़्ज़त है समाज में।
नागराज : पूरी दुनिया को दो कौड़ी की शायरियां सुना कर आत्महत्या को प्रेरित करने वाले भी अब समाज में इज़्ज़त की बात करते फिर रहे हैं।
तिरंगा : साले मेरी शायरियों को कुछ ना कहना बे।
नागराज : फोन रख रे ससुर के नाती। धंधे के टाइम बकवास ना कर।
उधर नागराज फोन रखता है और उधर चाट वाला नागराज की पीठ पर इंजेक्शन मार कर उसके शरीर का थोड़ा सा जहर इंजेक्शन में भर लेता है।
नागराज (चीख कर): उइ माँ।
नागफनी सर्प(नागराज के अंदर से): कतई छमिया बन गया है ये इंसान। चीखता भी वैसे ही है। हे देव कालजयी कहाँ भेज दिया मुझे। मेरे भी लक्षण इसके जैसे होते जा रहे हैं। कल तो शीत नागकुमार मुझे लइनिया भी रहा था।
नागराज (चिल्लाते हुए): किसने क्या चुभाया मुझे?
चाट वाला : मैंने चुभाया ये इंजेक्शन नागराज भैया। थोड़ा जहर चाहिए था फुल्की वाले पानी में मिलाने को। उस औरत ने ‘और तीखा’ , ‘और तीखा’ कर कर के जीना हराम कर दिया है। अब उसे ऐसा तीखा खिलाऊंगा कि उसे पता चलेग।
ऐसा बोलकर चाट वाला अपनी दुकान पर जाने लगता है।
नागराज : ए ए ए रुक ससुर के नाती। लोगो को मेरा जहर खिलायेगा ।
चाट वाला (घबराते हुए): क्यों क्या हुआ नागराज ?
नागराज : क्या हुआ? (धीमे से) अबे कुछ 100-200 तो पकड़ा के जा साले। बोहनी नहीं हुई सुबह से।
चाट वाला नागराज को 200रुपये पकड़ाता है और वापस अपने ठेले की ओर जाता है।
कोबी(चाट वाले से) : अब कितनी देर लगा दी बे। तब से हिम्मत बांध रहा हूँ बार बार खुल जाए रही है। अब और खुले उसके पहले खिला चाट।
चाट वाला : अरे वो जरा तीखे का इंतज़ाम करने गया था। (मन में) ससुर इस नागराज को थोड़ा सा रोल दो कहानी में और ये पूरा गोइंठा बनकर बैठ जाते है कुंडली मार कर।
जेन (फुदकते हुए) : भैया और तीखा। और तीखा।
चाट वाला : रुक तू रुक अब। तेरा इंतज़ाम करके आया हूँ मैं (इतना कहते ही उसने चाट वाले पानी में नागराज का जहर मिलाया और जेन को दो चार फुल्की पकड़ाई)
ले खा ले हिडिंबा।
जेन कुछ देर वो दो तीन फुलकिया खाती है और वापस चाट वाले के तरफ गुस्सा कर के कहती है।
“भैया ये क्या। और तीखा डालो ना।”
जेन का इतना ही कहना था कि वो चाट वाला वहीं बेहोश होकर गिर पड़ा।
स्थान: विकासनगर का राजदरबार।
आज विकासनगर के राजदरबार के बाहर आज औसत से ज्यादा भीड़ थी क्योंकि आज के दिन रानी मोहिनी नगर वासियों की समस्याओं को सुनती थीं और उनके निवारण के प्रयास करती थीं। राजदरबार में रानी मोहिनी पधार चुकी थी। साथ में उनके आस-पास मंत्री, महामंत्री, सेनापति, राजवैद्य, राज्यपण्डित, भोकाल, इत्यादि लोग भी बैठे थे।
राजवैद्य(चुपके से महामंत्री के कान में): महामंत्री जी नमस्कार।
महामंत्री : नमस्कार राजवैद्य जी।
राजवैद्य: महामंत्री जी। एक विकट समस्या उत्पन्न हो गई है। कल से वायु प्रवाह बहुत तेज़ी से हो रहा है।
महामंत्री : ओ अच्छा। ये तो सच में बहुत विकट समस्या है। बताइये मैं क्या सहायता कर सकता हूँ आपकी?
राजवैद्य : जी वो जो अपने विकासनगर में नया डॉक्टर आया है ना उससे जरा मिलने का समय चाहिए था। आपका तो परिचित है। वही मेरी इस समस्या की दवाई बता सकता है।
महामंत्री एक सेकंड को राजवैद्य को घूरकर देखते है फिर बोलते हैं।
“चलिए ठीक है। सभा के बाद आइए।”
राजवैद्य : बहुत कृपा होगी आपकी।
राजवैद्य इतना ही कह पाए कि तभी उनका वायु प्रवाह बहुत तेज़ी से जेट की स्पीड से निकला और उस भयंकर गर्जन की आवाज़ ने पूरे सभा को हिला कर रख दिया। वहां मौजूद सभी कीड़े मकौडों की दम घुटने से तुरंत मौत हो गई।
सभी राजवैद्य की ओर देखने लगे।
राजवैद्य(खिसियानी हँसीं हस्ते हुए): हे हे हे। अरे ये कमबख्त कुर्सी बहुत आवाज़ करती है। बनवाना है इसको।
सभी लोगो ने महामंत्री को शक की निगाहों से घूरा और फिर महारानी की तरफ देखने लगे जो कि कुछ बोलने जा रहीं थी।
रानी मोहिनी : तो मंत्रीगणों और विद्वानों इस सभा की शुरुआत की जाए?
कोई कुछ बोल पाता उससे पहले ही सेनापति चीख पड़े।
” मम्मी , मम्मी , मम्मी।”
सेनापति ऐसा चिल्लाते हुए अपनी कुर्सी से कूद पड़े और ओंधे मुँह जाकर सभागार की सीढ़ियों पर गिर पड़े।
रानी मोहिनी(चौंक कर): क्या हुआ सेनापति जी। आप ऐसे क्यों चिल्लाएं।
सेनापति(अपनी खोपड़िया संभालते हुए बोले): महारानी जी । वो राज दरबार की छत से छिपकली आकर मेरी कुर्सी पर गिर गई।
राजवैद्य(धीमी आवाज़ में): ये हैं हमारे सेनापति। इनके भरोसे है अपने राज्य की सुरक्षा। वाह। भगवान बचाये हम लोगों को।
सेनापति ( राजवैद्य को घूरते हुए): क्या बोले आप?
राजवैद्य :कुछ भी तो नहीं। आप जाकर अपनी कुर्सी पर विराजमान हो जाएं।
सेनापति : नहीं मुझे कुछ सुनाई पड़ा तो मैंने सोचा कि बता दूँ कि वो आवाज़ मुझे कुर्सी की लग नहीं रही थी।
रानी मोहिनी : अमा बैठो जाकर अपनी कुर्सी पर। खोपडी भंजन किये जा रहे हो तबसे। एक तो इतनी गर्मी पड़ रही है और ये पंखे झुलाने वाले भी मरियल हो चले हैं। (पंखा झुलाने वालो से)जान नहीं है क्या तुम लोगो के शरीर में? खा खा कर सांड हुए जा रहे हो एक पंखा नहीं झुलाया जा रहा। मेकअप उतरा ना मेरा बीच सभा में तो उल्टा लटका दूंगी दोनों को।
पंखा झुलाने वाले डर के मारे पंखा तेज़ी से झुलाने लगते हैं।
रानी मोहिनी : हाँ तो किसी को और कोई नाटक नहीं करना हो तो सभा शुरू …..……….
रानी मोहिनी इतना ही बोल पाईं थी कि तभी उनके बगल में खड़े उनके सेवक चिल्ला उठे।
“तो सभा शुरू की जाएं। लोग अपनी समस्या लेकर आएं।”
रानी हड़बड़ा कर सेवकों को देखती हैं।
रानी मोहिनी : अरे विधाता बात तो पूरी बोल देने लिया करो। एक तो दोनों बिल्कुल खोपड़ी पर बैठे रहते हो मेरे और ऐसा चिल्लाते हो कि आदमी हदस जाए एकदम। आइंदा से ऐसे खोपड़ी पर चिल्लाए तो कंटापे कंटाप मारूंगी। दूर जाकर खड़े हो दोनों।
इधर रानी मोहिनी चिल्ला रहीं थी और उधर राज्यपण्डित अपनी कुर्सी पर लोट चुके थे और खर्राटे लेते हुए चौचक नींद ले रहे थे।
सभी राजपण्डित की ओर घूरकर देखने लगते हैं। राजपण्डित के बगल में मौजूद भोकाल उनको हिला कर नींद से जगाता है। राज्यपण्डित हड़बड़ा कर उठते हैं।
रानी मोहिनी(बड़े प्यार से) : क्यों उठ गए? क्यों उठ गए महाराज। अरे सो जाओ। सो जाओ। आओ मेरे खोपड़ी पर बैठ कर लो खर्राटे। ये सभा तो टाइम फोकट करने को बुलाई गई है।
राजपण्डित सकपका से गया और अजीब मुँह बनाकर रानी को देखने लगा।
रानी मोहिनी– (गुस्से से) सो जा। ना ना अबे सो जा तू।
राजपण्डित (सोचते हुए): अच्छा। अब आप इतना कह रहीं है तो सो जाता हूँ।
रानी मोहिनी(चिल्लाते हुए): मतलब एकदम बेशर्म हो गए हो। शर्म लिहाज़ धोकर उसमें चीनी और नींबू डालकर पी गए हो। राजसभा को मज़ाक बना दिया है एकदमै। कोई वायु प्रवाह निकाल रहा है, कोई छिपकली से डरकर कूदे जा रहा है, कोई चौचक सोए जा रहा है।
राजवैद्य: वो कुर्सी की आवाज़ थी महारानी जी।
रानी मोहिनी एक बार घूरकर सबको देखती हैं और फिर सभा आरंभ करने का इशारा करती हैं।
उनका इतना कहना था कि सभी नगरवासी दौड़ते हुए सभाकक्ष में घुसते है और अपनी अपनी खोपड़िया फुड़वा लेते हैं।
रानी मोहिनी: अरे अरे अरे। पगला गए हो का सब एकदम से।
वहां मौजूद सभी सिपाही नगर वासियो को व्यवस्थित करते हैं और उन्हें एक एक कर आगे भेजते हैं।
रानी मोहिनी : बताइये आपकी क्या समस्या है।
नगरवासी 1: समस्या कोई नहीं है। बस घर में बीवी ने लतिया कर भगा दिया तो सोचा राजदरबार हो चलें थोड़ा मनोरंजन हो जाएं।
सभा में मौजूद सभासद एक साथ बोल उठे : अरे भाई भाई भाई भाई।
महामंत्री : ये तो हम में से एक निकला।
रानी मोहिनी(गुस्से में): ऐसा चमाट मारूंगी ना कि थोबड़ा थोबड़ी हो जाएगा। सैनिकों बलभर मारो इस आदमी को। मज़ाक़ बना कर रख दिया है।
सैनिक उस आदमी को खोपचे में ले जाते है और अगला आदमी आगे आता है।
नगरवासी 2: मेरा पड़ोसी मेरी बीवी को भगा ले गया।
भोकाल : बधाई हो। ये सब तो तो ठीक है। मगर समस्या क्या है तुम्हारी?
सभी भोकाल को घूर कर देखते हैं।
भोकाल (सकपका कर): अरे मेरा मतलब था ………….
रानी मोहिनी (भोकाल की बात बीच में काटते हुए): तुम्हारा मतलब हम अच्छे से समझ रहे हैं। तुमको ….……..
रानी मोहिनी अपनी बात पूरी कर पातीं उससे पहले ही सभा मे मौजूद बर्मन दा के गुरु श्री तानदेब साहब जो कि विकासनगर राज्य के मुख्य गायक और वादक थे उन्होंने सुर छेड़ा।
तानदेब : भोकाल जी के दर्द पर प्रस्तुत है ये नगमा।
हो ओ ओ ओ। दिल की तन्हाई को आवाज़ बना लेते हैं,
दिल की तन्हाई को आवाज़ बना लेते हैं, दर्द जब दिल से गुजरता है तो गा लेते हैं।
सभा में मौजूद सभी लोगों ने तालियों की गड़गड़ाहट से तानदेब साहब की तारीफ की।
रानी मोहिनी (गुस्से में): अरे बंद करो चीमड़ लोगों। कतई कोठा बना कर रख दिया है राजसभा को। का रे तानदेब महाशय मतलब। जब हम कहते हैं कोई धुन सुनाने को तब तो ससुर एक सुर नहीं निकलता है और आज कतई ताने दे रहे हो।
तानदेब: जी वो फ्लो फ्लो में बाहर आ ही जाता है, सुर है साहब छलक कर बाहर आ ही जाता है।
सभी एक साथ : वाह साहब वाह। क्या शेर सुनाया है। दो चार और हो जाएं इसी बात पर।
महारानी : अरे कर्मजलों। थोड़ा तो शर्म कर लो। महारानी सामने बैठी है थोड़ी तो इज़्ज़त दे दो ।
सभी शांत होकर बैठ जाते हैं।
रानी मोहिनी : हाँ तो बताओ ………
रानी मोहिनी इतना ही कह पायीं थी कि तभी राजवैद्य के वायु प्रवाह ने एक बार फिर से वातावरण में तबाही मचा डाली।
रानी मोहिनी (नाक दबा कर बोलते हुए): ऊं हूँ। ऐसे कौन करता है यार। ऐसी विध्वंसक शक्ति हमारे राज दरबार में बैठी हुई है। दादा रे दादा। आज तो मर ही जाऊंगी मैं। मार डाला रे मार डाला।
उस वायु प्रवाह की तीव्रता इतनी थी कि सभा मे बैठे आधे से ज्यादा लोग बेहोश होकर टप्प टप्प गिरे जा रहे थे।। भोकाल ने किसी तरह अपनी भोकाल शक्ति से अपने आप को बेहोश होने से बचाया था।
राजवैद्य (धीमी आवाज़ में): कुर्सी थी महारानी।
रानी मोहिनी बेहोश होकर अपने सिंहासन पर लम्बालेट हो चुकी थीं। महामंत्री ने किसी तरह अपने आप को बेहोश होने से बचाये रखा और बोले।
“महारानी बेहोश हो चुकी हैं। आज की ये सभा यहीं स्थगित की जाती है। अब ये सभा किसी दूसरे दिन रखी जायेगी। महारानी को इनके कक्ष में ले जाएं। सभागार के कोने कोने को साफ किया जाए और राजवैद्य महोदय आप यहाँ से तत्काल प्रस्थान लें वरना अगली बार आपने कुछ कर दिया तो प्रलय ही आ जानी हैं।”
स्थान : असम के जंगल
भेड़िया पिछले 15 मिनट से बहुत ही कठोर साधना में लिप्त था। उसने ना इतनी देर से एक भी बूंद पानी पिया था ना ही अन्न का एक दाना ग्रहण किया था। वो जेन को पाने के लिए भेड़िया देवता का आवाहन कर रहा है। वो उनसे प्राप्त करके जेन को पाने का मार्ग ढूढना चाहता था।
कुछ ही क्षणों बाद भेड़िया की 15 मिनट लंबी और कड़ी तपस्या से प्रसन्न होकर भेड़िया देवता प्रकट हो चुके थे।
उनके प्रकट होते ही भेड़िया के आसपास खड़े उसके भेड़िया मित्र बोले।
“एकदम ख़लीहर ही है का ये ? कोई काम धंधा है नहीं प्रकट हो गए धम्म से।”
भेड़िया देवता : उठो वत्स। हम तुम्हारी इस 15 मिनट की कठोर साधना से प्रसन्न हुए हैं। मांगो क्या वरदान चाहिए। बस पैसा ना माँगना। सारा धन नोटबन्दी में स्वाहा हो गया। इतनी जद्दोजहद से इन्ही जंगलों की जड़ी बूटियां बेच बेच कर पैसा जुटाया था। सब ले गयी ये सरकार। अरि मोरी मइया। सरकार हाय हाय।
भेड़िया(चौंक कर): प्रभु। बहुत जल्दी दर्शन दे दिया आपने तो। मैं तो 15 मिनट और साधना करने के दृढ़ निश्चय के साथ आया था आज।
भेड़िया देवता(दांतो को साफ करते हुए): क्या करें बे। एकदमै ख़लीहर हो चुके हैं हम। कौनो काम धंधा है नहीं। दिन भर नल्लों की तरह बैठने से अच्छा सोचा दो चार लोगों को दर्शन दे दिया जाए। कुछ कमाई भी हो जाएगी। (धीमे स्वर में) बीवी ने भी निक्कमा कहकर जूतों से सुताई कर दी आज तो। मेरा भी आत्मसम्मान जागा। शाम से पहले घर नहीं लौटूंगा आज)। खैर ये सब बातें तो होती रहेंगी। तुम बताओ कैसे याद किया। आक थू। कल की सब्जियां अभी भी दांतो में फंसी हुई थी। अब साफ लग रहा है दांत।
भेड़िया : हे भेड़िया देवता। मेरे स्कूल में जेन नाम की एक सुंदर कन्या ने आज ही स्कूल में एडमिशन लिया है। मैं उसके प्यार में बिल्कुल ही पागल हो चुका हूँ। आप मुझे कोई तरीका बताएं उसको अपनी प्रेमिका बनाने का।
भेड़िया देवता : अरे रोहित मेहरा के चेले। आज तक, रिकॉर्ड है साला आज तक तूने मुझे कभी याद जो किया होगा। और आज देखो साले आज तक पेपर में अच्छे नम्बर लाने को मेरी याद नहीं आई तुझको। लड़की का चक्कर आते ही मेरी याद आ गई। अर्ज़ किया है, जरा गौर फरमाइयेगा :
पढाई लिखाई कर ले बेटा, यही किताबें तेरा भविष्य उज्ज्वल कर जाएंगी
ये लड़की नाम की बला है पगले, आज मेरा काटा है कल तेरा भी काट कर जाएंगी।
भेड़िया के मित्र एक स्वर में : वाह उस्ताद वाह । क्या सुनाया है। वाह। मज़ा ही आ गया।
भेड़िया देवता : शुक्रिया दोस्तों। मुझे हमेशा लगता था कि मेरे अंदर ये टैलेंट है। आप लोगों की तालियों ने मेरी उस सोच को और पक्का कर दिया।
भेड़िया(गुस्से में): क्या भेड़िया देवता। कतई मुशायरा शुरू कर दिया। मेरी मदद करनी है तो करिए वरना वापस जाइये।
भेड़िया देवता : अच्छा। उसकी फोटो दिखा जरा।
भेड़िया : क्यों भला।
भेड़िया देवता : अबे दिखा ना ससुर। कतई मरे जा रहा है।
भेड़िया अपने कच्छे में हाथ डालकर जेन की फ़ोटो निकाली और भेड़िया देवता की ओर बढ़ा दी।
भेड़िया देवता (घिन्नते हुए): ऊं हूँ। दूर रख फ़ोटो। मलिच्छ हो गया है एकदम। कच्छे में कौन फ़ोटो रखता है बे ।
भेड़िया : का करें अब। इस ससुरी स्किन टाइट पैंट में एक्को जेब तो है नहीं। सामान रखें तो रखें कहाँ।
भेड़िया देवता : तो तुम साले उसे कच्छे में रख लोगे। हद मचा दिए हो यार।
भेड़िया : आप फ़ोटो देखो ना प्रभु।
भेड़िया देवता : दूर दूर रखियो। (फ़ोटो को गौर से देखते हुए) क्या चीज़ है यार क्या चीज़ है। अर्ज किया है जरा गौर फरमाइयेगा :
ये फ़ोटो देख कर इस दिल में उठी है ये अंगड़ाई
इसके जैसी हमें मिलती तो बना लेते अपनी लुगाई।
सब भेड़िया देवता को घूर कर देखते हैं।
भेड़िया देवता : अरे तालियां तो बजा देते यारों। इतना बेहतरीन नगमा सुनाया है।
भेड़िया के दोस्त: ठरकियों की शायरी पर ताली नहीं बजाते हैं हम जनाब
मौका मिलते ही जूतों से सूत देते है उसे हम बेहिसाब। बेहिसाब।
भेड़िया देवता (सकपका कर) : (गला साफ करते हुए) अहम ऊहम। तुकबन्दी अच्छी नहीं बैठी आप लोगो की मगर आप लोगों की भावनाओं को मैं भली भांति समझ चुका हूँ। (भेड़िया से) भाई मेरे, मैं मदद करूँगा तेरी।
भेड़िया(खुश होकर): प्रभु। आपकी बहुत कृपा होगी। आप बताइए मुझे क्या करना होगा।
भेड़िया देवता : सबसे पहले तुझे प्रेम के इस जंग में उतरने से पहले खुद को तैयार करना होगा। तुझे अपने आप को हर तरीके से तैयार करना होगा । क्योंकि किसी ने कहा है : ये इश्क नहीं आसां बस इतना समझ लीजिए,
एक आग का दरिया है और डूब कर जाना है।
भेड़िया देवता घूम कर तारीफ के कुछ शब्द सुनने को भेड़िया के दोस्तों की तरफ देखते हैं मगर वो सब अभी भी उनको तबियत से घूर रहे होते हैं।
भेड़िया : मगर मुझे कौन तैयार करेगा प्रभु। आप करेंगे?
भेड़िया देवता : नहीं रे पगले। मैं इतना गुणी होता तो देवता होकर भी जूते क्यों खाता।
भेड़िया के सभी दोस्त (एक स्वर में): अपने कर्मों के कारण।
भेड़िया देवता उनको घूरते हैं और फिर वापस अपनी बात पूरी करते हैं।
“तुझे इस प्रेम की परीक्षा में अव्वल दर्जे से पास कराने के लिए तुझे परीक्षित करेंगे ‘महाबली भोकाल’।’
भेड़िया : महाबली भोकाल।
भेड़िया देवता : हाँ वत्स। महाबली भोकाल। इन्होंने प्रेम के क्षेत्र में बड़े बड़े झंडे गाड़े हैं । तू इनसे शिक्षा प्राप्त करेगा तो तू भी गाड़ेगा, झंडे। अभी जरा अपनी बीवियों से परेशान चल रहा है। मगर इसकी क्षमता पर मुझे कोई शक नहीं है। (धीमे स्वर में) पता नहीं कौन इनको तीन शादियां करने को कह दिया। यहां एक नहीं संभाली जा रही है हमसे। रोज़ जूते खा रहे हैं तबियत से। (भेड़िया से) मुझे पूर्ण विश्वास है कि भोकाल तुम्हें इस प्रेम परीक्षा में अव्वल दर्ज़ों से पास कराएगा।
भेड़िया(खुशी से दांत चियार कर): मैं तैयार हूँ प्रभु। मैं भोकाल देवता से प्रेम के सारे पाठ पढ़ने को तैयार हूँ। मैं जेन को पाकर ही रहूंगा।
क्रमशः
क्या होगा कोबी का ? भेड़िया भोकाल से कौन सी शिक्षा प्राप्त करेगा ? भोकाल कैसे तैयार करेगा भेड़िया को? भोकाल की 3 बीवियां उसकी क्या हालत करेंगी ? जानने के लिए इस हास्य से भरी प्रेम गाथा का अगला भाग।
वाकई गुरुजी। बहुत ही गज्जब कहानी लिखी आपने। हंसते हंसते पेट दर्द हो गया। हर एक लाइन में पंच था। जेन का पानीपुरी खाना और उसे पटाने के लिए बेचारा कोबी भी पानी पूरी खाने जा रहा है, अब क्या होगा?
हीहीही। अब शहर भर की बर्फ की सिल्लियां कोबी तशरीफ़ में ठोंकनी पड़ेंगी🤪
नागराज का रोल और तिरंगा की शायरी जबर थी😆😆😆🤣🤣🤣👏🏼
भौकाल के राज्य विकास नगर का दृश्य भी मजेदार था। कतई गन्धौड़ प्राणियों ने वहाँ डेरा जमाया हुआ है। बताओ…..हवा पास कर करके रानी को ही बेहोश कर दिया।
और भेड़िया की 15 मिनट की कठिन तपस्या🥵🥵
15 मिनट बाद जाकर प्रसन्न हुए भेड़िया देवता🤣🤣🤣🤣🤣🤣 और भेड़िया देवता तो कतई शायरबाज हैं😆😆😆😆😆😆 क्या मस्त शायरियाँ पेली थीं ।
बहरहाल! अब देखना है आगे क्या होता है। जल्दी अगला पार्ट लेकर आये।👏🏼👏🏼👌🏻
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बहुत शानदार लेखक हैं आप। आपके साथ कार्य करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ और हो रहा है उसके हम ऋणी हैं।
शानदार हास्य का बेहतरीन उपयोग किया है आपने।
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Are bhai bhai bhai
Katai bawal macha diye hain aap to
Mahabali bhokal ab kaise madad karenge is tharki bhediya devta k chele ki ye dekhna badhiya hoga
Jen ka fudakte huye aur tikha aur tikha to bahut real laga
Raajvaidya kaise vaidya hain pata nhi, khud hi pet se pralay laye baithe hain
Bhediya devta katai tharki hain aur bol bhediya ko rahe the
Nagraj bhi tiranga jaisa bhikhari ho gya ab to
Dhruv kidhar mar raha hai
Ladka 2 2 kanya ghuma raha usse bhi tiranga jalta hoga
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Hahahaha
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