भैया! तू ना सिर्फ इंग्लिश में ही पास होगा बाकी में देखना लटक जायेगा।
जब देखो बस इंग्लिश इंग्लिश चाट रहा होता है।
कोई और सब्जेक्ट भी पढ़ा कर यार!
तू जा ना अपना काम कर मैं लटक जाऊंगा, तू तो पास हो जाएगा ना?
मैं तो ना भी पढूँ तो भी हो जाऊंगा मेरा क्या है तू लट्केगा।
हा!हा!हा!हा हँसने की आवाजें गूंज उठती हैं।
ये कहते हुये राजेश (बाबू प्यार से उसे मैं बाबू ही कहता था)घर से बाहर निकल गया।
और मैं वापस अकेला हो गया अपनी English की Guide के साथ।
ऐसा नहीं था कि मैं इंग्लिश में कमजोर था या मुझे आती नहीं थी, लेकिन फिर भी मैं बस इंग्लिश को ज्यादा तवज्जो देता था जिसकी वजह थी वो………।
हल्के आसमानी रंग का सूट, जिसके ऊपर सफेद रंग के बने हुये छोटे-छोटे फूल, सफेद रंग की पटियाला सलवार ऊपर हल्की काले रंग की लाईनिंग थी।
उसमें वो लड़की गर्मी में एकदम चिलचिलाती धूप में छत में तार पर से कपड़े उतार रही थी जो उसने सूखने के लिए डाले थे।
एड़ी को ऊपर उठाये हुये इस बात से बेखबर की कोई पीछे खड़ा उसके पलटने का इन्तजार कर रहा है। जब आपको कोई घूर रहा होता है, तो आपको पता लग जाता है कि कोई आपको घूरे जा रहे हो वैसा ही कुछ हुआ होगा शायद उसके साथ; तभी, उसने कुछ पल बाद ही पीछे पलट कर देखा।
मेरी आँखें उसकी आँखों से मिली और मैं एकटक उसे देखता ही रह गया।
उफ्फ़! बला की खूबसूरत हल्के भूरे रंग के सलीके से सँवारे हुये बाल हल्की भूरी आँखे और गोरा रंग।
नहीं! एक दम गोरा जैसे दूध सफेद होता है ना वैसा।
मैं तो जैसे उसे देखता ही रह गया। अन्दर से खुद ही आवाज़ आ गयी लड़की है या परी?
धूप में उसका चेहरा ऐसे चमक रहा था जैसे मानो अगर अँधेरा होता ना तो जैसे बल्ब की भी जरुरत ना पड़ती।
कोई इतना भी खूबसूरत होता है क्या? मैंने खुद से ही अन्दर ही अन्दर सवाल किया।
वैसे तो मैं बहुत शर्मीला हूँ जैसे कि सब लड़के होते ही हैं, शुरुआत में वैसा ही था।
लड़की के नाम से भी दूर भागने टाइप वाला, और सोच सोच कर ही मर जाने वालों में से कि किसी ने देख लिया तो भाई साहब! लेने के देने पड़ जायेंगे।
और अगर किसी ने घर वालों को बता दिया तो, वो पापा का आँखे निकाल कर मारने से पहले ही डरा कर मार डालने वाला खौफनाक रूप और मम्मी का कभी ना खत्म होने वाला भाषण और ताने। सोच कर ही मेरा दिमाग ठनक गया।
उफ्फ़! सोच कर ही पसीना आने लगा था मुझे तो।
खैर मैंने अपनी निगाह नीचे की और चुपचाप जाकर अपनी साइकिल को खड़ा कर दिया।
फिर मेरी पीछे मुड़कर देखने की हिम्मत ना हुई, लेकिन कहीं ना कहीं उस लड़की का ख्याल और सूरत दोनों मेरे दिल दिमाग में बैठ चुके थे।
कुछ दिन ही तो हुये थे उसको हमारे मोहल्ले में आए हुये लगभग 5 दिन और इतने ही दिनों में मोहल्ले के “कूल टाइप” और एक्सपर्ट कहे जाने वाले लड़कों ने अपना-अपना दिल और मोबाइल नम्बर उसको देने के बारे में सोच लिया था।
कइयों के दोस्तों ने तो उसको भाभी तक मान लिया था। अब इन सब में कहाँ मैं औसत दिखने वाला आम व्यक्तित्व वाला लड़का।
उसकी खूबसूरती और रवैया देख कर तो कुछ लड़कों ने मन ही मन में खुद को रिजेक्ट कर लिया था, और उन्हीं कइयों मे एक था मैं भी।
जब उड़ते उड़ते मुझ तक आयी बातों पर गौर किया तो पाया कि उसने सभी लड़कों को अब तक रिजेक्ट कर दिया है जो भी उससे दोस्ती करने आये थे, तो मैंने भी सोचा की बेटा तेरी दाल तो नहीं गलेगी। जब इन “कूल डूडस” की ना गली तब तू किस खेत की मूली है?
फिर भी ना जाने क्यों उसे देख कर एक बार तो दिल में आया कि अरे छोड़ो बर्खुदार! क्या होगा ना कह देगी कोई बात नहीं।
लेकिन एक बार तो हमें भी अपनी किस्मत आज़मानी चाहिये, फिर नतीजा जो आये, कम से कम परीक्षा तो दे दें, हाँ परिणाम की चिन्ता पहले ही कर के परीक्षा से क्यों डरना?
खैर अगली सुबह एक अलग ही उत्साह के साथ उठकर स्कूल जाने का मन हुआ और हो भी क्यों ना? एक तो साथ वाला घर और ऊपर से एक ही रास्ता तो मैंने तो लगभग सोच ही लिया था कि साथ में स्कूल जायेंगे और अगर मौका मिला तो बात भी शुरु करने की कोशिश करूँगा।
फिर जब अचानक उसको निकलते देखा तो बस सब सोची समझी बात धरी की धरी रह गयी।
अब रोज-रोज का यह ही हो गया था कि सुबह तैयार हो जाना और जानबूझकर जाकर उसके रास्ते में खड़े हो जाना।
यही रोज का काम हो गया था, लेकिन इसका फायदा ये जरुर हुआ था कि मैं अब उसकी नजर में आ गया था।
अब ना चाहते हुये भी मेरा मन बार-बार उसको देखने के लिए होता था, हमेशा की तरह आज भी बस रास्ते में खड़ा होकर उसको देख ही रहा था की अचानक उसने पलट कर देखा और एक मुस्कान उसके चेहरे पर भी बिखर गयी।
आज पहली बार ऐसा लग रहा था जैसे मानो सब कुछ किसी फिल्मी सीन की तरह हो गया हो।
मैं हीरो और वो हीरोइन और नजर मिली और बैकग्राउंड में म्यूज़िक चलने लग पड़ा हो जैसे।
वाह अद्भुत आनन्द।
सोच कर ही खुशी का मजा लेने वाली हालत हो गई थी मेरी अब तो।
पता नहीं कब उस से मिल पाऊँगा या कब उस से दिल की बात कह पाऊँगा ये ही ख्याल हर पल मन में चलते रहते थे।
अगस्त का महीना शुरु हो चुका था, हल्की बारिश की बूंदा बांदी आए दिन लगी ही रहती थी। ठंडी-ठंडी हवाएं जब चलने लगती और जिस्म को छूती तो बस रह रह कर सिहरन पैदा होने लगी थी और बार बार मन में एक ही ख्याल आता था कि काश कोई होता ऐसा जिसके साथ इस बारिश में भीगकर इस सावन का, इस बारिश का और इन बारिश की बूंदों का मज़ा लिया जाता जैसे फिल्मों में होता है ना उस टाइप वाला, लेकिन शायद इस बार की बारिश भी अकेले ही काटनी थी हमने। तभी तो अभी तक बात भी नहीं कर पाया था मैं उस से।
इन दिनों में सभी लोग माता चिंतपुर्णी के दरबार में हाजरी लगाने के लिए जाने लगे थे, इन दिनों जाने की खास वजह वहां लगने वाला माता चिन्तपुर्णी का मेला और उस मेले में लगने वाला लोगों का जमावड़ा जो पूरे माहौल को भक्तिमय कर देता था।
लोग उत्साह के साथ भीड़ में माता के दर्शन को पहाड़ की ऊँची चढ़ाई पैदल चढ़ कर जाते है, और वो कहते हैं ना जिसका बुलावा आता है वो ही माता के चरणों में भी जाता है।
हमारी मंडली ने भी वहां जाने का प्रोग्राम बनाया और सभी आकर मुझ से भी जाने को कहने लगे, मैं बेचारा जिसे कुछ अच्छा नहीं लग रहा था, सिवाए इसके कि कैसे उस से बात हो? कैसे वो नजर आये? बस मैं बेमन से बोला नहीं यार मेरा मन नहीं है जाने का; तुम लोग चले जाओ।
“क्या यार ये क्या बात हुई? हम सबने इतनी मेहनत से प्लान बनाया और तू सारे प्लान की ऐसी की तैसी कर रहा है ये आदत कब से बन गयी तेरी?”
मैं कुछ नहीं बोला, बस इतना ही कह सका कि इस बार नहीं जा पाऊँगा।
शायद मेरा बुलावा नहीं आया है! वर्ना ये सबब ना बनता।
अब उनको क्या पता था कि उनका जो ये दोस्त था अब देवदास बन चुका था पारो के बिना कैसे कहीं जा सकता था?
मेरे ना जाने की एक वजह ये थी कि उसका और मेरा घर एक दूसरे के बिल्कुल साथ था। घर से दो कदम बाहर निकाला और सीधा उसके घर के पास पहुँच गया, और इस पर जिसे बार-बार महबूब के दीदार का खुमार चढ़ जाये तो कोई कैसे कहीं आये और कैसे कहीं जाये?
हमारा तो आलम ये हो चुका था कि हम सारा दिन ही दरवाजे के पास बैठने लगे थे, कि कब वो बाहर आये और कब हम उनका दीदार करें।
मेरा मन ना होते हुआ देख सभी ने अपनी इच्छा और श्रद्धा अनुसार प्रवचन सुनाये और चलते बने और हम तो पारो की याद में थे तो हमें उन प्रवचनों से कोई खास फर्क तो पड़ा नहीं। हाँ, उसके बदले में हमारा जाना जरुर रद्द हो गया, और हमारे साथ-साथ हमारे दो और मित्र जो हमारे काफी करीब थे उनका भी जाना रद्द हो चुका था। हमने तो इतना कह कर सबको विदा कर दिया था कि जाओ यारों हमारे लिए भी दुआ मांग लेना क्या पता माता कोई चमत्कार ही कर दे।
और जन्नत फिल्म के हीरो की तरह मुझे भी अपनी हिरोइन मिल जाये।(2008)
“अच्छा बाबू एक काम करना जाकर बगल वाली लड़की के घर से इंग्लिश की गाईड लेकर आना।“
एक दिन ये शब्द मेरे भैया के मुझे अपने लिए ही सुनायी दिए। पहले तो यकीन हुआ नहीं लेकिन जब उसने फिर जयर देकर कहा तब मेरे पल्ले पड़ा।
बस ये ही तो एक तरीका था उस से कभी-कभी मिल लेने और किताब वापस करने जाने के बहाने उसे देख लेने का।
“अब अन्धा क्या मांगे दो आँखे!”
“क्या करेगा भैया तू उसकी गाईड का?
“पढ़ना है मेरे को यार, और तू ला दे बस मैं खुद ही वापस कर दूंगा तेरे को जाने की जरुरत नहीं पड़ेगी।“
“वो बात नहीं है वापस मैं ही देने जाऊंगा अगर मैं लेने जाऊँगा तो।“
“तू क्यों जायेगा रे पागल! मैं खुद दे आऊँगा।“
“बस अब एक बात बता तू नौवीं में वो आठवीं में तो उसकी गाईड से तू क्या पढ़ेगा?”
“यार क्यों जासूस बन रहा है, तू बस ला दे, मुझे जो पढ़ना है वो मैं खुद पढ़ लूंगा, तू ले तो आ बस।“
कुछ देर बाद गाईड मेरे हाथ में थी।
“ले और खुद ही दे आना अब।“
“ठीक है। (ये ही तो मैं चाहता था), तू जा मैं पढ़ कर दे दूंगा।“
इतने दिनों में कुछ हो या ना लेकिन मुझ पर भी शायद उसके हाव भाव से ज़ाहिर होने लगे थे और वो भी कुछ कुछ इंटरेस्ट मुझ में दिखा रही थी या ऐसा कह लो मुझे ये भ्रम हो गया था जो भी हो जो किसी से प्यार करने लगता है वो तो हर बात को सकारात्मक रूप में ही लेता है और वो ही हाल मेरा था इस समय।
देरी थी तो बस एक बात की कि उस से बात कैसे की जाये?
हमारी गली में ही एक दीदी रहती थी, जिनसे मेरी बहुत बनती थी, अपनी कोई बहन तो थी नहीं मेरी तो उनसे लगाव भी बहुत था मुझे।
इतने दिनों में उन्होंने जरूर मेरे हाव भाव को भांप लिया था। तभी तो यूं ही हँसी मजाक में उन्होंने एक दिन मुझसे कह दिया कि- “क्या बात है हीरो! आजकल बहुत सज धज कर रहा जा रहा है और “इंग्लिश की गाईड” बहुत मांगी जा रही है क्या चक्कर है ये?”
कुछ देर तो मैं सकपका गया कि दीदी को कैसे पता चला लेकिन खुद को संभालते हुए बोला- “कुछ भी तो नहीं दीदी आप भी ना बस।“
“वाह बेटा! ये जो रोज रंग बिरंगे कपड़े पहने जा रहे हैं और रोज़ रोज़ गली में खड़ा हुआ जा रहा है वो किसी वजह से ही हो रहा है वर्ना पहले कभी नही हुआ ऐसा, क़्यों?”
“जाओ दीदी आपसे तो बात करना ही बेकार है आप बस उल्टा ही सोचते हो।“
“जब की आप जानते हो अच्छे से की मेरी आदत नहीं है ऐसी।“
ये सब मैं बहुत जल्दी से और एक ही सांस में बोल गया था। दीदी मेरी तरफ देखते रह गयी, फिर एक दम से हँस कर बोली- “ओ पागल! तू इतना सीरियस क़्यों हो गया मैं तो बस वैसे ही मज़ाक कर रही थी।“
मैं भी हल्का सा मुस्कराया और बिना कुछ कहे बाद में आता हूं कह कर चला गया।
ये बात मैंने अपने दोस्तों को बतायी कि दीदी ऐसे बोल रही थी तो उनके जो जवाब थे वो सुनकर मैं तो मतलब वो कहते हैं ना की आवाक रह गया।
“जा ओए तू गधा है इतना अच्छा मौका तो था रे।”
दूसरे ने कहा-
“तेरा कुछ नहीं हो सकता है, मौका खुद आया था और तू बोल आया माफ कीजिए।”
हद तो तब हो गई जब एक ने ये कहा-
“जा मैं बोल रहा हूँ तेरी बात कभी नहीं बन सकती।”
अरे भाई कोई मुझे भी बता दो क्या कर दिया मैंने?
एकदम हैरान होते हुये मैंने पूछा!
तब एक समझदार से दोस्त ने बताया कि भाई साहब अगर आपने दीदी जी को बता दिया होता ना तो अब तक आपके प्रेम का वो राग जिसे आप पिछ्ले एक महीने से आलाप रहे हैं अभी तक उसकी धुन आपकी “मैडम जी” तक भी पहुँच चुकी होती।
मैडम जी शब्द पर कुछ विशेष जोर दिया था उन महाशय ने।
अभी तक मैंने या मेरे दोस्तों ने उसे किसी नाम से बुलाना शुरु नहीं किया था,
“मैडम जी” ये आज नया नाम मिला था उसको।
उसने आगे कहना जारी रखते हुये कहा!
दीदी खुद जाकर आपकी बात कर ली होती, इतना सुनना था कि मुझे तो जैसे मेरे भाग्य ही फूट गये टाइप वाली फीलिंग आने लगी, अन्दर से और अन्दर ही अन्दर खुद को कोसते हुये और पश्चाताप की अग्नि में जलते हुये खुद को अन्दर से मजबूत कर के राज कुमार के अन्दाज में हमने भी कह दिया।
“जानी हम वो हैं जो कभी किसी के दिखाये हुये रास्ते पर नहीं चलते और ना ही कभी किसी का एहसान लिया करते हैं।“
“हम जब उसे प्रोपोज़ करेंगे तो वो शब्द भी हमारे होंगे और तरीका भी हमारा होगा।”
इतना सुनते ही उन्होंने मिल कर मुझे कूट दिया और मैं जैसे किसी बाज़ी हार चुके हुये इन्सान की तरह उन्हें देखता ही रह गया। (कुटाई प्यार से की गई थी, गल्त ना समझें)
फिर अन्दर से एक आवाज आयी- नहीं अब और नहीं, और इस बार इज्जत का फालूदा ज्यादा ही हो चुका था। इस बार तो इस कहानी को किसी ना किसी मोड़ पर ले ही जाऊंगा।
शाम का वक़्त जब वो मन्दिर गई तो उसे अकेला जाता हुआ देख कर ना जाने मुझ में कहाँ से आज हिम्मत आ गई और उसके पास जाकर मैंने उस से कहा!
“सुनिये एक काम था आपसे।“
एकदम से आयी आवाज़ ने उसे भी चौंका दिया वो इधर उधर देखते हुये बोली!
“क्या बात है आप यहा क़्यों आए हैं, प्लीज जाईये किसी ने देख लिया तो गज़ब हो जायेगा। जो भी कहना है बाद में कह दीजियेगा।“
इतना कह कर वो जल्दी से निकल गई और मैं हैरान और परेशान सा उसको देखता रह गया कि इसको ऐसा क्या हो गया मैंने तो कुछ कहा भी नहीं ऐसा और ऐसे कैसे अंदाज़ा लगा रही है कि मैं इससे कुछ कहने ही आया था?
क्या वो जानती है कि मैं उसे पसंद करता हूं?
क्या मेरे हाव भाव इतने ज्यादा नजर आते हैं कि हर कोई समझ जाता है कि मैं इसे चाहता हूं?
एक तो पहले ही ये सोच-सोच कर परेशान था कि कैसे इसे अपने दिल की बात कहूँ और ऊपर से इतने सारे सवाल और पैदा हो गये थे। ये मैंने बात की या और मुसीबत गले डाल ली, उसने कह तो दिया था बाद में बोल देने को। मगर ये बाद कब आएगा?
कोई अता या पता तो है ही नहीं इस बाद का?
इनका जवाब कब मिलेगा? कैसे मिलेगा? मिलेगा भी या नहीं मिलेगा?
क्या ये सब मेरा भ्रम था या अभी-अभी मैंने सच में उस से कुछ कहा था?
यह एक सबसे बड़ा सवाल था जो कि मेरे मन में आया।
लेकिन उसकी आवाज़ आज पहली बार मैने इतने करीब से सुनी थी, मुझे तो वो भी बिल्कुल उसी की तरह खूबसूरत लगी। कितना मीठा बोलती है यार ये। मैं तो मतलब खो ही गया था। एक पल के लिए सब भूल कर इस बात से अन्जान था मैं कि ये क्या कर दिया था मैंने?
एक तो शाम का समय और ऊपर से वहाँ पर जितने भी लोग थे चाहे वो बड़े, बच्चे या बुजुर्ग सभी मुझे देख रहे थे। एकदम से मैं सपने से बाहर आया और उन सब को देख कर हड़बड़ा गया।
मन में अब एक डर बैठता जा रहा था कि अगर किसी ने घर बता दिया तो मेरी खैर नहीं आज।
ऐसे ही मोहब्बत होती थी उस समय। आज कल की तरह नहीं थी ना आशिक़ी।
आज लड़की देखी कल नम्बर दिया और अगले दिन बात भी शुरु हो गई, सच मे मैं तो हैरान हो जाता हूं आजकल के लड़कों का आत्मविश्वास देख कर।
हमारे समय में तो 6-6 महीने तक बीत जाते थे देखते-देखते और जब तक कहने की हिम्मत आती थी तो पता लगता था कि उसकी तो शादी तय हो गई है, या तो हमारी वाली किसी और की हो गई है।
नाम भी तो ऐसे ही रखे जाते थे उस समय, जिस से गोपनियता भी बनी रहे और पता भी लग जाये की किसकी बात हो रही है। मेरी वाली, तेरी वाली, उसकी वाली, इसकी वाली और जिस लड़की को चाहने वाले ज्यादा होते थे वो हो जाती थी सबके वाली।
मैं नहीं चाहता था कि ऐसा कुछ मेरे साथ हो इसलिये आज तो हौसला करना ही पड़ता मुझे आज जैसे मर्जी बस बोल ही दूंगा।
ये सोच कर मैं हर बात से बेपरवाह मैं सीधा घर की तरफ चल पड़ा, लेकिन थोड़ा डर तो लग रहा था क्योंकि ये खबर जंगल में लगी आग की तरह फैलने वाली थी, परंतु घर का माहौल शान्त था किसी को कुछ नहीं पता लगा था और मैं सेफ़ ज़ोन में था।
आज तो माता ने बचा लिया था।
मन के अन्दर से आवाज आई जोर से बोलो!
जय माता दी! आवाज़ निकल गई मेरे मुँह से।
“क्या बात है बड़े जैकारे लग रहे हैं आज?”
पापा ने पूछा।
“कुछ नहीं पापा बस वैसे ही मुँह से निकल गया।“
फिर सब शान्त हो गये।
अगले दिन से मैं बस एक ही बात का इन्तजार कर रहा था कि कब वो मुझे मिले और कब मैं उसे अपने दिल की बात बताऊँ।
देखते-देखते पूरा एक हफ्ता बीत गया मगर वो मिलना तो दूर नजर तक नहीं आयी, जैसे-जैसे दिन बीत रहे थे, मेरी बैचैनी भी बढ़ रही थी, और इसकी वजह थी उसकी कही हुई वो बात कि-
“जो भी कहना है फिर बाद में कहना।”
उसकी कही हुई ये बात बार-बार मेरा मन उसकी ओर लगा रही थी कि क्या उसे पता था मैं क्या कहना चाहता था?
10 दिन हो चुके थे और आस पास घर होने के बावजूद मैंने उसे देखा तक नहीं था।
अब उसे देखने का या उस से बात करने का एक ही तरीका बच गया था, असल में दो एक तो इंग्लिश की गाईड जो की इस समय सम्भव नहीं थी जिसकी वजह थी उसकी सहेली का उस गाईड को लेकर चले जाना और ऊपर से वो चली गई थी अपने मामा के घर क्योंकि उसकी नानी बीमार थी। मैंने मन में ही सोचा कम से कम गाईड तो दे जाती फिर जहां मर्जी जाती, इसलिये मुझे ना चाहते हुये भी दूसरे रास्ते की तरफ जाना पड़ा, मरता क्या ना करता?
मैं उसी की तरफ बढ़ चला था अब, अपने राज कुमार वाले रवैये को एक तरफ कर के एकदम मन उदास कर के और लटका हुआ चेहरा लेकर मैं दीदी के पास गया, और चुपचाप बैठ गया।
दीदी उस समय खाना बना रहे थे, मुझे देख कर बोली- क्या हुआ हीरो? मुँह क्यों लटकाया है क्या हुआ?
मैं कुछ ना बोला, फिर दीदी ने भी ज्यादा ध्यान नहीं दिया और अपने काम में लगी रही।
दीदी को दोबारा बोलता हुआ ना देख कर मैंने खुद ही बोलना शुरु किया, दीदी।
ह्म्म्म।
जवाब में सिर्फ हम्म्म्म! इसकी उम्मीद तो ना थी मुझे फिर भी मैंने कहा।
दीदी एक बात पूछूँ बताओगे क्या?
दीदी ने कहा थोड़ी देर रुक खाना बन जाएगा फिर बताना।
ठीक है। कह कर मैं किताब को जो कि मेज पर पड़ी थी उठा कर देखने लगा!
5 मिनट बाद दीदी आयी और बोली- “हाँ बोल कुछ पूछ रहा था ना तू?”
“मैने कहा! हाँ मैं पुछ रहा था कि 10वीं के बाद मैं नोन मैडिकल ले लूँ क्या?”
मैने एकदम बात को छुपाते हुये कहा।
“ये ही पूछना था तूने?”
दीदी ने कहा!
हा! मैं बोला।
“अभी 9वीं पास कर फिर 10वीं अभी से क़्यों इतना सोच रहा है अभी तो बहुत समय है अभी जिस क्लास में है उसको ध्यान से पढ़ के पास हो जा बाबू।“
मैंने भी चुपचाप रज़ामंदी में सिर हिला दिया।
दीदी फिर बोली!
“पक्का ये ही बात थी ना?”
मैने कहा हाँ ये ही बात थी और झूठी मुस्कान चेहरे पर लाकर अपनी बात को सच करने की नाकाम कोशिश की।
दीदी बोली!
“तूने वो वाला गीत सुना है क्या?”
“कौन सा दीदी?”
“पल्ले विच आग दे अंगारे नहीं लुक्दे,
इशक़ दे मुशक़ लुकाये नहीं लुक्दे”
ये कह कर वो हँस पड़ी, और मैं शर्म से पानी पानी हो गया।
फिर बोला अच्छा दीदी सच में मुझे देख कर ऐसे लगता है क्या कि मैं किसी को पसंद करता हूं?
“बोल तो ये भी बता दूं क्या कि किसको पसंद करता है?” दीदी ने चुटकी लेते हुये कहा!
अच्छा आप बता सकते हो मैंने भी ज़ोर देकर कहा की चलो अब बताओ कौन है?
“अच्छा मैं बता दूँ तो क्या देगा?”
ठीक है अगर बता दिये सही सही तो जो कहोगे वो दूंगा।
पक्का?
हां पक्का! अब बताओ ना।
“तो सुन वो ही लड़की है ना जो नयी-नयी आयी है तेरे बगल वाले घर में?”
मैंने बिना किसी प्रतिरोध के बिना सोचे समझे दीदी को सब बात बता दी और ये ही तो मैं चाहता भी था।
इस समय तक मैं अपने राज कुमार वाली बात को भूल कर एक आस के साथ दीदी को सब बता रहा था, कि दीदी अब बात करवा देंगे तो मैं बोल दूंगा।
दीदी ने बड़ा हौसला दिया और मेरे पूछने पर बताया कि वो लड़की हमेशा छिपछिप कर तुझे देखती है और जब तू सामने आता है तो भाग जाती है। मैं बात करूँ क्या तेरे लिए?
अब दोबारा से मेरा आत्मविशवास लौट आया था और मैं बोला नहीं दीदी बात तो अब मैं ही करूंगा, बस आप देखते जाओ और जब बात कर लूंगा तो सबसे पहले आपको बताने आऊंगा।
ठीक है देखती हूं। दीदी ने कहा!
अब इसे इतेफाक़ कहिये या कुछ भी मगर दीदी से ये बात करने के अगले दिन ही वो मेरे सामने आयी, एक पल के लिए तो ऐसा लगा कि दीदी के कहने पर हुआ है ये, और मेरे कुछ कहने से पहले ही वो खुद एक बात बोल कर मेरे पास से गुजर गई या यूँ कह लीजिये कि मुझे लगा कि उसने कुछ कहा, जिसे मैं सुन तो नहीं सका था अच्छे से पर एक अन्दाजा ही था मेरा जिसने मुझे अन्दर से बहुत ज्यादा उत्साहित कर दिया।
अब ये मेरा वहम था या हक़ीक़त ये मैं भी नही जानता।
मैंने जल्दबाजी मे दीदी के पास गया और जाते ही आवाज़ लगाई!
दीदी! दीदी! कहाँ हो आप?
अन्दर से आवाज़ आई हां बोल हीरो क्या बात है?
इतना चिल्ला क़्यों रहा है?
भूत देख लिया क्या? दीदी ने मजाक करते हुये पुछा!
नहीं चुड़ैल! मैंने भी उसी लहजे मे जवाब दिया, और दोनो हँस पड़े।
दीदी सामने आयी और कहा- “कहाँ देख ली चुड़ैल?”
मैंने भी हँसते हुये दीदी की तरफ इशारा किया और आयी मम्मी कह कर चीख पड़ा।
दीदी ने मुझे पकड़ लिया और दो थप्पड़ मारते हुये बोली तू होगा भूत और कह कर हँसते हुए पूछा-
“पूछा? बता क्या बात है मुझे काम है।“
मैंने भी समय को व्यर्थ ना गंवाते हुये कहा! दीदी उसने मुझे आज कमेंट किया है, जब सामने आई थी तब।
दीदी बोली क्या कह रही थी?
उसने कहा! अगर मन में कोई बात है तो बोल देना चाहिये दिल में नहीं रखनी चाहिये।
मगर मुझे ऐसा लग रहा है कि ये मेरा वहम है!
दीदी बोली!
अब बेवकूफों जैसी बात ना कर समझा ना अगर कहना है तो कह दे वर्ना मेरा दिमाग ना खाया कर।
अगली तेरे को इतनी हिम्मत दे रही है अब क्या चाहिये?
जाकर बोल दे बात बन जायेगी।
दीदी के इन शब्दों ने मुझमें एक नयी जान डाल दी थी और साथ में ये भी धमकी थी कि अगर बात नहीं किया तो मेरे पास आकर कभी बोलना मत अब इस बारे में।
एक समस्या खड़ी हो गयी अब तो करना ही पड़ेगा वर्ना दीदी से बात भी नहीं कर पाऊँगा।
फिर वो दिन भी आ गया जब सभी चिंतपूर्णी माता के दरबार मे जाने को तैयार हो गये! शनिवार था उस दिन और अगले दिन स्कूल की छुट्टी।
मुझे मेरे दोस्तों की तरफ से समय मिला इन दो दिनों का।
सख्त हिदायत के साथ कि अगर इन दो दिनों में तू बात ना कर सका तो ये सब चक्कर छोड़ देगा।
मैं तो दोनों तरफ से गया दीदी से बात नहीं कर सकता और अब इनसे भी उसके बारे में बात नहीं कर सकता हूं।
ये सोचते सोचते शनिवार बीत गया था।
10 अगस्त 2008
रविवार का दिन
शाम को 8:00 PM
मुझे नहीं पता चला दिन कैसे बीत गया।
शाम हो चुकी थी और मैं सब तरकीबें लगा चुका था उस से मिलने और बात करने की मगर कोई भी काम नहीं आयी थी।
बुझे मन से मैंने अपने भाई से कहा!
बाबू कल मेरा इंग्लिश का टेस्ट है जाना जरा इंग्लिश की गाईड लेकर आना उस लड़की से, और हुआ यूं कि अगले ही पल गाईड मेरे हाथ में थी, मैने गाईड रखी और बाहर जाने लगा।
कुछ सोच कर अन्दर वापस आ गया।
और सोचने लगा!
अन्दर लिख कर डाल दूं क्या?
अभी इतना सोच ही रहा था कि एक ख्याल ने मन को अशांत कर दिया।
अगर उसके भाई को मिल गया तो? वो भी तो ये ही गाईड यूज़ करता है?
कुटाई और उसके बाद का अंजाम दोनों का ख्याल एक साथ मन मे मेहमान बन कर आये, और इस योजना को समाप्त कर के वापस चले गये।
एक और योजना निष्फल हो चुकी थी और मैं पूरी तरह हताश हो चुका था।
घर के दरवाज़े में कुंडी लगा कर ज्यों ही बाहर निकला था कि ऐसा लगा की दोस्तों ने माता रानी के दरबार में मेरे नाम की मन्नत मांग ली है, और वो इतनी जल्दी पूरी होने के लिए एक आस भी नजर आ रही है। एक रोशनी की किरण मुझे नजर आयी उसके रूप में ही।
वो सामने से खुद ही चली आ रही थी, जब एकदम पास आ गई तो मुझ से कुछ कहा ना गया मैं दो पल के लिए सोच में पड़ गया कि कैसे बात शुरु करूँ।
अन्दर से फिर आवाज़ आयी बेटा ये ही एक मौका है अगर तो चौका मार दिए तो मैच जीत जाओगे वर्ना अफसोस करते रहना पड़ जायेगा हमेशा के लिए।
अभी मैं सोच में ही डूबा था कि वो आगे जा चुकी थी, उसे जाता हुआ देखकर सहसा ही मैं बोल पड़ा, सुनो।
उसने मुड़ कर स्माइल दी, और बोली कहिये।
कहिये!
वाह कितने प्यार से बोला करती है यार ये, कितनी स्वीट है!
मुझे चुप देख कर वो बोली कुछ कहना है आपने?
हड़बड़ी में बोल पड़ा मैं हां वो आप अपनी इंग्लिश वाली गाईड ले जाइये।
उसने कोई जवाब नहीं दिया और चुपचाप खड़ी हो गयी, मैं भी खड़ा होकर उसे देखता रहा।
उसने फिर आवाज़ दी लाइये दीजिये गाईड।
मुझे जैसे मौका मिला था बात को आगे बढ़ाने का मैंने भी थोड़ा अभिनय करते हुये कहा।
ओह! हाँ हाँ! सॉरी मेरा ध्यान कहीं और था।
वो कुछ नहीं बोली और चुपचाप खड़ी रही।
मैं अन्दर से गाईड ले आया और मन ही मन सोचने लगा कैसी लड़की है यार पूछा भी नहीं इसने तो कि कहाँ ध्यान था आपका? मेरा अभिनय काम ना आया और दिल में भी एक टीस सी उठ गई कि यार ये तो बड़ा मुश्किल काम लग रहा है।
तुमसे ना हो पायेगा।
फिर ख्याल आया कि अगर पूछ देती ना तो मैं पक्का बोल देता कि आपके उस पर ही था ध्यान मेरा।
मैंने गाईड आगे बढ़ाई और उसने भी हाथ बढ़ा कर उसे पकड़ लिया।
मगर मैंने उसे छोड़ा नहीं और पकड़ कर खड़ा रहा कुछ देर बाद वो बोली!
मैं जाऊँ ना?
गाईड को हाथ में पकड़े हुये मैंने कहा हाँ हाँ जाइये।
गाईड छोड़िये तभी ना जाऊंगी। और इतना कह कर वो खिला खिला कर हंस पड़ी।
मैं थोड़ा सा शर्मा गया मगर फिर खुश हुआ की चलो किसी बहाने हंसी तो सही।
फिर वो कहावत याद आ गई।
हंसी तो………..!
मैने सॉरी कहा और गाईड छोड़ दी।
वैसे आपका ध्यान कहां था उस समय?
मैं एकदम से चौंक पड़ा क्योंकि मुझे उस से इस सवाल की उम्मीद तो बिल्कुल भी नहीं थी।
मैं कोई जवाब नहीं दे पाया।
उसने अपने कदम अपने घर की तरफ बढ़ा लिए थे।
और मैं एक बार फिर उसे जाता हुआ देख रहा था।
अपने अन्दर के हिम्मत को फिर से जगा कर मैंने एक बार फिर उसे पुकार लिया।
सुनिये!
उसने मुड़ते हुये कहा!
कहिये!
कुछ नहीं, जाइये कुछ नहीं।
एक बार फिर उसके कदम बढ़ चले थे।
इस बार तो वो लगभग अपने दरवाजे तक पहुंच ही चुकी थी कि मैंने फिर से आवाज़ दे दी।
अच्छा सुन ही लीजिये।
कहिये! इस बार कहिये थोड़ा लम्बा बोला था उसने जैसे उसने मन में ही सोच लिया था कि कुछ कहना तो है नहीं बस यूं ही आवाज़ दिये जा रहा है।
मैंने भी हिम्मत जुटा कर कहा-
“क्या आप 10 बजे रात को बाहर आ सकती हैं? कुछ बात करनी है आपसे।“
अभी कह दीजिये।
कह दीजिये ये एक शब्द नया सुना था मैंने, पर इसे अनसुना कर मैं बोल पड़ा नहीं फिर जाइये कभी और कहूंगा।
वो अपने घर के अन्दर लगभग जा ही चुकी थी कि मैंने फिर से उसे आवाज़ दे दी, और मन ही मन सोचने लगा कि ये क्या कर रहा हूँ मैं इस बार तो जरुर उसे गुस्सा आ जायेगा मगर मेरी सोच के विपरीत वो वापस आयी और मेरे बिल्कुल पास आकर बोली-
“जिसने बोलना होता है ना वो इतना समय नहीं लेते हैं, आपके दिल में जो भी बात है आप सीधे-सीधे बोल दीजिये।“
समझे? इतना कह कर उसने गाईड एक तरफ से मेरे हाथ में थमा दी और दूसरी तरफ से खुद थाम लिया।
इस बात को सुनने की देर थी कि मेरे दिल की धड़कनें इतनी तेज़ गति से चलने लगी कि उसकी आवाज़ बिना स्टैथोस्कोप के भी साफ साफ सुनी जा सकती थी!
और वो आवाज़ उसने भी सुनी थी।
क्या हुआ?
आपका दिल इतनी ज़ोर से क्यों धड़क रहा है आप ठीक है ना?
अब उसे कौन बताये की जिसे प्यार हो जाये वो ठीक कहाँ से रहता है?
हां कहते हुये मैंने बोलना शुरु किया।
“देखिये ये मेरा पहली बार वाला एक्सपीरियंस है प्लीज अगर कुछ बुरा लगे या ना पसंद आये तो वैसे ही चले जाइएगा कुछ कहना मत, मेरा दिल इतना ज़ोर से धड़क रहा है वो आपकी वजह से, और इसी धड़कते हुये दिल पर हाथ रख कर बोल रहा हूँ, आज तक किसी लड़की की तरफ देखा तक नहीं है।
आपको देखते ही पता नहीं क्या हुआ बस आप बहुत अच्छे लगने लगे और उसी दिन से दिल में आप और आपकी सूरत बैठ गई।
दिल में बस आपका ही ख्याल आता है और उसी ख्याल की वजह से दिल पर ही हाथ रख कर बोल रहा हूं कि
“आई लव यू”
बिना रुके बिना सांस लिए और बिना किसी बात की परवाह किये मैंने एक सांस मे ही इतना कुछ बोल दिया था।
वो एकटक मुझे ही देखे जा रही थी। एक स्माइल के साथ बिना कुछ कहे।
मौसम सुहाना था मौसम में ठंडक थी हल्की हवा के थपेड़े उसके गालों को छू रहे थे और उसके बाल से निकलती हुई वो लट बार-बार उड़ कर उसके गालों को चूम रही थी।
माहौल शान्त था, झिंगुरो की किररर! किररर! की आवाज़ सुनायी दे रही थी, आसमान साफ था और चांद कहीं गायब था, क्योंकि शायद आज वो आसमान पर नहीं इस अन्धेरी रात में मेरे सामने खड़ा था, और मैंने अपने प्यार का इज़हार उस से आखिर कर ही दिया था।
कोई हमें नहीं देख रहा था और ना ही कोई हमें सुन रहा था, सिवाए एक “इंग्लिश की गाईड” के।
जिसे एक हाथ से उसने और एक हाथ से मैंने थाम रखा था!
……..

By- Mr. Vinod

Published by Devendra Gamthiyal

वर्णों से बनकर उपन्यास की ओर

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4 Comments

  1. bahut shandar likha hai aapne…. itni si chhoti love story ko aapne kitne badhiya se piroya hai bina kisi atirikt ghatna se aur ananvashyak prachlit ashleelata se….. aise hi badhiya kahani likhkar hamara manoranjan karte rahen.

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  2. बहुत बढ़िया तरीके से प्रेजेंट किया है आपने अपनी कहानी को, इंग्लिश की गाइड के कारण इतनी करामात हो गयी। लेखन करते समय शब्दों का चयन बहुत महत्वपूर्ण होता है और आपने एकदम सटीक शब्द चुने हैं।

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  3. कहानी की शुरुआत एक इंग्लिश की गाइड से हुई और अंत भी एक गाइड से हुई। बहुत अच्छी ,मज़ेदार कहानी लगी। शब्दो का चयन कहानी के मूड से बिल्कुल मेल खा रहा था। किशोरावस्था में प्यार के खट्टे ,मीठे पलो को आपने बहुत अच्छे से दिखाया। बीच बीच मे हल्की फुल्की कॉमेडी ने भी माहौल को बनाये रखा। कुल मिलाकर एक बहुत अच्छी कहानी।

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  4. What a beautiful story!. Absolutely brilliant. Words fall short when I want to describe the feeling that i was getting while reading this story, how masterfully the words were chosen, how beautifully the boy’s feelings were described, the hesitation, the excitement, the fear, the exhilaration. Just amazing. Well done..

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